इस भौतिक जगत में अगर जो कुछ भी उत्पन्न होता है या जन्म लेता है, वो समय के साथ नष्ट भी हो जाते हैं , सम्पूर्ण ब्रह्मांड ही उत्पन हुआ है और ये नष्ट भी होंगा। जो उत्पन्न होता है वो मिथ्या या असत (असत्य) कहा गया हैं।
अगर हम किसी जीव की चर्चा करेंगे तो जीव जन्म पाता है, और समय के साथ वो अपने मृत्यु की तरफ बढ़ता जाता हैं, जीवन के हर पल के साथ मृत्यु निकट होती जा ती है, मृत्यु को टाला भी नही जा सकता।
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लेकिन इस संसार में कुछ अगर शाश्वत है, वो लय को भी प्राप्त नहीं हो सकता उसे हम परम सत्य कहते हैं।
कुछ लोग अज्ञानता के कारण सत्य और परमसत्य का सामान अर्थ समझते है। और इसी कारण वे लोग परम सत्य क्या है इसकी वास्तविक व्याख्या नहीं जानते।इस लेख के में ज्ञान के प्रकाश से इसी अज्ञानता के अंधकार को दूर करने के प्रयास करेंगे। और परम सत्य को कैसे प्राप्त हो सके भी जानगे.
परम सत्य क्या है?
इस भौतिक जगत से अलग जो कभी न बदलने वाला, निर्लेप, अनादि, अजन्मा, अभेद और शाश्वत है उसे परम सत्य कहा गया हैं।
परम सत्य एक या अद्वैत है । अद्वैत वेदांत में इसी परम सत्य को ब्रह्म या आत्मा कहा गया है। इस भौतिक संसार में जो जागरूकता या चेतना को परम सत्य कह सकते है। चेतना परमात्मा का ही प्रकाश स्वरूप हैं परमचेतना जगत के कण-कण में व्याप्त हैं और परमात्मा समस्य जीवों में भी विराजमान है ।
आत्मा परम सत्य है शरीर में मारे जाने पर या नष्ट होने पर आत्मा नही मारी जाती आत्मा सर्वव्यापी, अभेद, अनादि और अंतराहित है।
तत्वज्ञानी पुरष इस भौतिक जगत से भिन्न आत्मा का दर्शन करते है इसे आत्म ज्ञान या आत्म साक्षात्कार कहां गया है। आत्म ज्ञान प्राप्त कर तत्वज्ञानी पुरुष असत्य और परम सत्य समझ जाए हैं।
भौतिक की सत्ता नही हैं, और परम सत्य का कभी आभाव नहीं है।
परम सत्य को कहां नहीं जा सकता है। परम सत्य को केवल उपलब्ध हुआ जा सकता है।
परम सत्य को उपलब्ध होने को ही समाधि धारण करना, मोक्ष प्राप्त करना या ब्रह्म स्वरूप में विलीन हो जना कहा गया है कहां गया है।
समाधि की अवस्था में स्थित योगी तटस्थ या स्थिरप्रज्ञ होता है समाधि में योगी भौतिक संसार से मुक्त होकर परम सत्य में विलीन हो जाता है।
सत्य और परमसत्य के बीच अंतर क्या है?
अज्ञानता के अंधकार के कारण कई बार लोग सत्य को या सत्य वचन को परम सत्य कहते हैं। सत्य को कहा जा सकता है किसी घटना के कथन को वास्तविक कहने के लिए हम इसे सत्य कहते हैं।
लेकिन परम सत्य को हम किसी वास्तविक घटना के कथन के साथ नहीं जोड़ सकते इसे केवल उपलब्ध हुआ जा सकता है ।
सत्य अनेक हो सकते हैं लेकिन परम सत्य एक है इसे ही अद्वैत कहते हैं ।
परमसत्य को प्राप्ति कैसे हो सके?
हम परम सत्य को नहीं प्राप्त कर सकते हैं बल्कि हम परम सत्य को उपलब्ध हो सकते हैं परम सत्य बहुत बड़ा है और हम बहुत छोटे हैं परम सत्य को प्राप्त होने के लिए आपको स्वयं की खोज करनी होगी करने की आवश्यकता है , आप स्वयं ही परम सत्य स्वरूप है लेकिन भौतिक विषयों की आसक्ति के कारण आत्मा की अनुभूति से अनजान हो सकते हैं ।
परम सत्य को उपलब्ध होने के लिए आपको असत्य के परदे हटाने की आवश्यकता है। जब आप स्वयं को “मैं” केहेते हैं तब आप परम सत्य से भिन्न स्वयं को भौतिक शरीर कहते हैं स्वयं को “मैं” कहना आपका अहंकार है । “मैं यह शरीर नहीं हूं” इसे सिर्फ कहन से आप परम सत्य को प्राप्त नहीं हो सकते आपको भीतर से इसे जानना पड़ेगा जहां आपका अहंकार शून्य हो जाता है इसे पूर्ण समर्पण कहते हैं।
पूर्ण समर्पण (जहां अहंकार शून्य हो जाता है) कर आप परम सत्य में विलीन हो जाते हैं । या परम सत्य को प्राप्त हो जाते हैं। इसे मोक्ष धाम को प्राप्त होना कहते है अगर आप मोक्ष की अवस्था को जानना चाहते है और मोक्ष धाम को प्राप्त किसे हो सके इसे जानने के इस लेख को पढ़कर आप मोक्ष की तरफ आपकी यात्रा शुरू कर सकते हैं ।
मोक्ष क्या है, मोक्ष धाम को प्राप्त होने के उपाय
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निष्कर्ष
अजन्मा, शाश्वत, अविनाशी, निर्गुण, निर्लेप ब्रह्म ही परम सत्य हैं।