हिंदू धर्म में ईश्वर का महत्वपूर्ण स्थान है समस्त शास्त्रों में सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ श्रीमद भागवत गीता भगवान के ही मुख से ही प्रकट हुई है | परंतु तथागत ने अपनी शिक्षा में क्यों ईश्वर को स्थान नहीं दिया | जानते है तथागत बुद्ध की शिक्षा के अनुसार
तथागत बुद्ध ने क्यों ईश्वर को नकारा था? क्यों कहा धम्म को ईश्वर की कोई जरूरत नहीं?
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लगभग सभी धर्मों में ईश्वर का महत्वपूर्ण स्थान है परंतु महात्मा गौतम बुद्ध के दर्शन में हमें कही पर भी ईश्वर स्थान नहीं जान पड़ता है | बुद्ध के शिष्य बताते है की जब बुद्ध से किसी व्यक्ति ने पूछा “ईश्वर है की नहीं?” तो बुद्ध ने इसका देते हुए ईश्वर के अस्तित्व को नकारा था | गौतम बुद्ध नास्तिक थे | गौतम बुद्ध के दर्शन अनुसार इस संसार के सभी दुखों का कारण हमारे मन का अस्तित्व ही है और इसी अस्तित्व से मुक्त होना निर्वाण है; निर्वाण के लिएं किसी ईश्वर की आवश्कता नहीं है; ध्यान की आवश्कता है |
गौतम बुद्ध महात्मा थे, उन्होंने लोगों को तथ्य से अवगत कराया और धम्मपद रचना की और हजारों लाखों लोगों को मुक्ति का मार्ग दिखाया आज भी बुद्ध की शिक्षा का कई सारे लोग अनुसरण करते है और उन्हें एक महान गुरु का आदर देते है |
बुद्ध सरलता, दया और करुणा से भरे थे | बड़े ही सरलता से उन्होंने अपना राज्य, पत्नी, पुत्र और परिवार के मोह से मुक्ति पाकर एक भिक्षु बन कर रहने लगे | राजमहल के ऐश्वर्य, सुख-सुविधा और सत्ता से दूर वह नंगे पाव ही जंगलों में घुमा करते थे |
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कठोर तपस्या से उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया और लोगों की सहायता में लग गए | उनसे जो भी कोई मिलते आता था बुद्ध का अनुयाई बन जाता था और उनकी शिक्षा का अनुसरण करने लग जाता था | उनके मुख से निकला हर शब्द सरलता और करुणा को दर्शाता था |
साधकों आज कई बुद्ध के अनुयाई उन्हें भगवान मान कर उनकी पूजा करते है लेकिन भगवान का अर्थ यहां ईश्वर से नहीं केवल एक महान गुरु और लोगों का कल्याण करने वाला | कुछ अनुयाईयों को कहना है की बुद्ध ने ईश्वर के अस्तित्व को नकारा था जब उनसे पूछा गया की “क्या आप भगवान है या भगवान का अवतार है?” तो उन्होंने “नहीं” कहा | बुद्ध के दर्शन में ईश्वर की कोई आवश्कता नहीं है बिना किसी ईश्वरीय सहायता के मुक्ति को प्राप्त हुआ जा सकता है ऐसा गौतम बुद्ध का मत है |
तथागत बुद्ध अत्यंत सरल थे; वह साधु थे | सरलता ही बुद्ध की शिक्षा है; सरलता ही निर्वाण यानी मुक्ति का मार्ग है और सरलता ही आत्मा का वास्तविक स्वरूप है | बुद्ध के दर्शन में ईश्वर का कोई महत्व नहीं है परंतु सरलता का महत्व है |
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सनातन धर्म में ईश्वर का महत्व है क्योंकि ईश्वर की भक्ति और समर्पण से ही सरलता का अमृत जीवन में मिल जाता है | और इस मार्ग पर साधक परम शांति को प्राप्त हो जाता है |
बुद्ध ने ईश्वर को नकारा क्योंकि उन्होंने परम शक्ति प्राप्त कर ली थी | बुद्ध ने केवल सरलता के मार्ग पर चलकर निर्वाण को प्राप्त किया और उनके शिष्य भी उनका अनुसरण कर रहें थें | बुद्ध जानते थे की जिस तरह से उन्होंने परमशांति प्राप्त कर ली है वैसे ही उनके अनुयाई भी कर सकते है |
तथागत बुद्ध ने बुद्ध धर्म की स्थापना की | उनकी जहां अन्य धर्मों में ईश्वर का महत्वपूर्ण स्थान हैं | वही बुद्ध धर्म में केवल सरलता, जनकल्याण और सेवा का ही महत्वपूर्ण स्थान है और उन्हें निर्वाण के लिए ईश्वर की आवश्कता भी नहीं है |
अलग-अलग धर्मों में ईश्वर का स्वरूप और नाम भी अलग-अलग है परंतु वह ईश्वर सभी नामों से परे इसी लिए उसका कोई नाम नहीं या फिर सभी नाम उसके ही है |
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सभी धर्मों और समुदायों का सार अगर निकले तो केवल मोक्ष प्राप्त करना ही जीवन का उद्देश होना चाहिए | मोक्ष ही मनुष्य जीवन का उद्धार है | इसी लिए उस एक परमसत्ता के आगे समर्पण के लिए कई धर्मों और समुदायों की उत्पत्ति हुई है |
भागवत गीता में भी भगवान कृष्ण यही बताते है की “जीवन का प्रधान उद्देश परमशांति को प्राप्त होना है” इसी लिए वह अर्जुन को मुक्ति के साधन यानी योग की शिक्षा देते है | तथागत बुद्ध की शिक्षा और भगवान कृष्ण की शिक्षा एक दूसरे से अलग नहीं है दोनों ही समर्पण सरलता का उद्देश देते है | परम सत्य शब्दों से परे है उसे केवल हम निर्वाण, मोक्ष, आत्मा, या ईश्वर कहना आवशक नहीं है | सत्य कोई नाम देने की चीज नहीं है; लेकिन उसे पाना और उसमे अहम को मिटा देना आवश्यक है |
इसके बाद भी कई लोगों को लगता है बुद्ध और कृष्ण एक दूसरे के विपरित शिक्षा देते है | इसका कारण अज्ञान है | न तो उन्होंने तथागत बुद्ध की शिक्षा को समझा है और न ही भगवान कृष्ण की शिक्षा को |
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आस्तिक और नास्तिक की परिभाषा के अनुसार गौतम बुद्ध वह केवल एक आस्तिक नहीं बल्कि सच्चे आस्तिक थे | जैसे कोई आस्तिक भक्त भगवान को परमसत्य जानकर पूर्ण समर्पित होता है | वैसे ही बुद्ध ने जनकल्याण के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया |
वैसे ही बुद्ध मन, वचन, कर्म से जिसे निर्वाण (सत्य) को समर्पण कर चुके थे और उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ | ईश्वर को सिर्फ मानना या ना मानना इतना ही आवश्यक नहीं है लेकिन उसके प्रति श्रद्धा, समर्पण करना आवश्यक है |
सनातन धर्म में मोक्ष पाने के लिए योग साधन है | भगवान का भक्तिभाव सह भजन, कीर्तन, चिंतन कर ईश्वर को प्राप्त हुआ जाता है और परमशांति को प्राप्त होकर जन्ममृत्यु के चक्र वाले इस संसार से मुक्त हुआ जा सकता है | सनातन धर्म में भक्तियोग के साथ ज्ञानयोग, कर्मयोग और ध्यानयोग की भी शिखा है |
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गौतम बुद्ध में केवल ध्यान की शिक्षा दी इसी लिए और उन्होंने भी ध्यान को साधन बनाकर ही परमशांति को प्राप्त किया था | इसी लिए गौतम बुद्ध के दर्शन और उनके धम्मपद में ईश्वर का भक्तियोग का वर्णन नहीं है |
जिस जिस संत ने जिस जिस तरह से उसे प्राप्त किया उन्हें जैसा देखा वैसी ही शिक्षा दी संत मीराबाई, संत तुकाराम, संत तुलसीदास, संत कबीर इन्होंने भक्तिमार्ग से परमशांति को प्राप्त कर लिया इसी लिए यहां ईश्वर का महत्व है | आदि शंकर, अष्टावक्र, रमन इत्यादि ज्ञानयोगिने ज्ञान की शिक्षा दी | वैसे ही गौतम बुद्ध ने साधना के लिए ध्यान की शिक्षा दी |
गौतम बुद्ध के ईश्वर को नकारने और उसे विपरित गीता के ईश्वर की महिमा गाने से इनमें से कोई गलत नहीं हो जाता | बुद्ध का दृष्टिकोण अलग है और गीता का ज्ञान यथार्थ है | बुद्ध में केवल वही कहा जो वो जान पाए थे | गीता में भी भगवान कृष्ण कहते है “मुझे किसी तप, यज्ञ, ज्ञान से या कर्मकांड से नहीं जाना जा सकता परंतु केवल भक्तिभाव से मैं जाना जाता हूं |”
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आखरी शब्द:
गौतम बुद्ध नास्तिक थे | उन्होंने निर्वाण प्राप्ति के लिए केवल ध्यान योग का ज्ञान अपने अनुयाई को दिया |
FAQs
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क्या गौतम बुद्ध भगवान विष्णु का अवतार है?
गौतम बुद्ध भगवान विष्णु का अवतार नहीं है, गौतम बुद्ध का जन्म क्षत्रिय परिवार में हुआ था और उन्होंने धम्म की स्थापना की, परंतु भगवान विष्णु का नववा अवतार भगवान बुद्ध है उनका जन्म ब्राह्मण परिवार में पिता कश्यप और माता जयनी के गर्भ से हुआ था वैदिक धर्म की रक्षा के लिए और अननिधिकारियों से वेदों को दूर करने के लिए उन्होंने अवतार लिया था |
क्या गौतम बुद्ध भगवान है?
गौतम बुद्ध एक महान कल्याणकारी गुरु और समाज सुधारक थे उनके अनुयाई उन्हें भगवान कहकर संबोधते है | परंतु गौतम बुद्ध ईश्वर या अवतार नहीं है |