आत्मज्ञान प्राप्ति के लिए आवश्यक तत्व


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आत्मज्ञान प्राप्ति के लिए आवश्यक तत्व

आत्मज्ञान साक्षात्कार से साधक अपने सच्चे स्वरूप को प्राप्त होता है; वही स्वरूप सत्य है। जो साधक आत्मिक उन्नति के लिए जागृत है; उन्होंने निसंदेह आत्मज्ञान की यात्रा में और अपना पहला क़दम रख दिया है। क्योंकि यह जागृति और जिज्ञासा हर किसी में नहीं हो सकती, केवल उन्हें छोड़कर जिनके मन में स्वयं के अस्तित्व पर ही प्रश्न खड़ा हो जाता हैं; और वे इसका उत्तर प्राप्त करना चाहते हैं; और वे साधक कहें जाते हैं।

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साधकों! आत्म ज्ञान साधना एक यात्रा की तरह है और इस यात्रा का लक्ष है स्वयं को पाना आत्मज्ञान साक्षात्कार करने के लिए साधना आवश्यक हैं। आत्मज्ञान साधना के कुछ महत्वपूर्ण तत्वों को जान लेते हैं।

आत्मज्ञान प्राप्ति के लिए आवश्यक तत्व

आइए जानते है आत्म ज्ञान प्राप्ति के लिए आवश्यक तत्व क्या है.

जिज्ञासा

आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए साधक को जिज्ञासु होना चाहिए, यह जिज्ञासा ही आत्मज्ञान साधना में पहला कदम हैं। जिस तरह से नदी से पर्याप्त पानी ले जाने करने के लिए घड़ा होना आवश्यक है उसी तरह ज्ञान प्राप्त करने के लिए जिज्ञासा की आवश्कता है। यह जिज्ञासा ही उसे ज्ञान प्राप्ति का और प्रबुद्ध बनने का अधिकार देती हैं।

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साधकों! जिज्ञासा ही वह बीज है जिसके कारण किसके भीतर ज्ञान जैसा वृक्ष बड़ा हो जाता हैं।

सत्य के प्राप्ति की तृष्णा

सत्य के प्राप्ति की तृष्णा ही साधक का अगला कदम है। सत्य के प्राप्ति की तृष्णा ही मिथ्या जगत के भ्रम को काटने का शस्त्र हैं। यही वह उत्सुकता है जो साधक को स्वयं के अस्तित्व, ब्रह्मांड और जीवन के उद्देश को प्राप्त करने में प्रेरित करती हैं।

अगर किसी में सत्य के प्राप्ति की लालसा ही नहीं तो वह इस मार्ग पर कैसे आगे बढ़ सकता हैं।

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स्वयं से सवाल पूछना

स्वयं से सवाल पूछना आत्मज्ञान साधना का एक महत्वपूर्ण तत्व हैं। यह साधक का ऐसा कर्म है जो उसे अपने भीतर में झांकने और स्वयं के मन और कर्मों पर गहराई से विचार करने में प्रेरित करता हैं। स्वयं से सवाल पूछकर ही साधक को अंतर्दृष्टि प्राप्त होती हैं। इसे भीतर की दुनिया के बारे में गहरी समझ मे विकास होता हैं।

सांसारिक विषयों और वासनाओं से विरक्ति

सांसारिक विषयों और वासनाओं से विरक्ति आत्मज्ञान साक्षात्कार करने के लिए महत्वपूर्ण है; यह माया जगत से मुक्त होने और स्वयं के सत्य स्वरूप को पाने की महत्वपूर्ण सीढ़ी हैं। भौतिक विरक्ति से ही साधक आंतरिक शांति का अधिकारी बनता हैं और परमशांति ही सत्य है।

विरक्ति से ही मन को शुद्ध आत्मा का मित्र बनाया जा सकता हैं। मन को अपनी शुद्ध आत्मा का मित्र बनाकर और उसपर नियंत्रण प्राप्त कर ही आत्मज्ञान घटित हो सकता हैं।

मन पर नियंत्रण से ही आत्म का माया जगत के माया जाल से मुक्ति होना ही आत्मज्ञान प्राप्ति के लिए स्वतंत्रता हैं।

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इंद्रियतृप्ति के विषयों से विरक्ति

इंद्रियतृप्ति के सुख की चाहत माया जगत का जाल है। यह व्यक्ति को आध्यात्मिकता से दूर ले जाता हैं । इंद्रियतृप्ति की वासनाओं से जीवन में अशांति पैदा होती हैं।

ये भौतिक माया जगत के विषय बाधा है । आत्मज्ञान साक्षात्कार करने के लिए साधक की चेतना इंद्रियतृप्ति के सुख की चाहत से मुक्त होनी चाहिए। तभी वह अपने मन को निर्मल कर सकता हैं और स्व को पाने के लिए भीतर को खोज शुरू कर सकता हैं।

भौतिकता से परे दृष्टि

आत्म ज्ञान प्राप्त करने के लिए साधक में भौतिक जगत से परे की दृष्टि होना चाहिए। आत्मा भौतिकता से परे है। चंचल मन के भौतिकता से चाहत के कारण आत्म आसक्त हो जाता है। भौतिक संसार माया है । माया जगत से ऊपर उठकर ही कोई आपने सच्चे स्वरूप या सत्य को प्राप्त हो सकता हैं।

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अंतर्मुखी होना

आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए अपने भीतर देखना चाहिए। इसे साधक अपने बारे में गहरी समझ प्राप्त कर सकता हैं। इसे मन को एकाग्र करने में सहायता मिलती हैं। और अनावश्यक विषयों से छुटकारा मिलता हैं।

निर्भयता

आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए निर्भयता को साधना जरूरी हैं। लेकिन आत्मज्ञान की निर्भयता बाहरी जगत से संबधित नहीं हैं। यह आपके आत्मिक उन्नति से संबंधित हैं। कई साधक आत्मज्ञान साधना में भयभीत हो जाते हैं । यह अवचेतन मन के कारण होता हैं जो उन्हें ध्यान करने से रोकता हैं यह भीतरी जगत का अज्ञान का अंधकार है। इस पर विजय प्राप्त कर ही आत्मज्ञान तक पहुंचा जा सकता हैं।

कार्ताभाव और अहंकार का अभाव:

कार्ताभाव और अहंकार का अभाव ही साधक को सत्य के समीप ले जाता हैं। इसी गुण से कर्मबधनों और अज्ञानता से मुक्ति प्राप्त हो सकती हैं।

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गुरु का मार्गदर्शन

आत्मज्ञान साक्षात्कार में गुरु का मार्गदर्शन भी अनिवार्य है। गुरु की कृपा से ही साधना में उन्नति होगी है। गुरु शिष्यों के अज्ञान को जानकर उसे प्रकाश जैसे ज्ञान से दूर करते हैं और उसे आत्मज्ञान की और ले जाते हैं।

सत्संग

सत्संग यानी संतों का संग। लोगों के संगत से ही व्यक्ति को सही गलत मार्ग प्रेरित किया जाता है। जब कोई संत महात्माओं का संग करता कोई संत का ग्रंथ पढ़ता है तो वह आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता रखता हैं संत महात्मा अपने अंदर ज्ञान का सागर समाए हुए होते हैं। उनके संग से मुक्ति की समझ और उत्तम ज्ञान प्राप्त होता हैं। और मुक्ति को परम कल्याण जानकर साधना कर सकता हैं।

योग और ध्यान

आत्मज्ञान प्राप्ति के लिए योग एक महत्वपूर्ण हिस्सा है ध्यान से ही मनुष्य अपने भीतर देख सकता हैं और सच्चे स्व को प्राप्त कर सकता हैं। योग जीवन की कला है यह सूक्ष्म विज्ञान हैं। योग से ज्ञान, मुक्ति और उद्धार होता हैं।

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निष्कर्ष:

आत्मज्ञान साधना के प्रमुख तत्व जिज्ञासा, सत्य की तृष्णा, स्वयं से प्रश्न, सांसारिक मोह से विरक्ति, इंद्रियों पर नियंत्रण, भौतिकता से परे दृष्टि, अंतर्मुखी होना, निर्भयता, कार्ताभाव और अहंकार का अभाव, गुरु का मार्गदर्शन, सत्संग और योग और ध्यान


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