जानिए ईश्वर को कहाँ खोजा जाता है | Kya Atma Hi Ishwar Hai

kya-atma-hi-ishwar-hai

साधकों! ईश्वर को तो हर कोई खोजने में लगा होता हैं कोई बड़ा मंच हो या आम रोजाना की बातचीत कभी न कभी आपके साथ भी ऐसा हुआ होंगा किसीने ईश्वर के बारे में बात की होंगी!

लेकिन ईश्वर कोन है कहां रहता हैं यह बात हर किसी को पता नहीं होगी कई लोगों का मानना है की ईश्वर 7 आसमानों के ऊपर विराजमान है तो कुछ लोग कहते है वह ईश्वर इस ब्रह्माण्ड से अलग होकर सृष्टि का रचनाकार है। लेकिन ये तो मानने वाली बाते है इसका कोई प्रमाण संभवत किसके पास नहीं है, और शायद इन्ही मान्यताओं के कारण नास्तिक लोग को ईश्वर इस शब्द को नकारते हैं।

अगर हम बात करें सनातन धर्म के विज्ञान और दर्शन की तो हमारे प्राचीन ग्रंथ वेद और उपनिषदों में ईश्वर का ज्ञान प्राप्त होता हैं। आज हम इसी ज्ञान के द्वारा ईश्वर को कहां खोजा जाएं इसे जानेंगे।

ईश्वर को कहां खोजे?

ईश्वर तक पहुंचने के लिए साधक को माया से मुक्त होने के आवश्यकता हैं, साधकों! ईश्वर माया के परे हैं। इसी कारण अगर कोई ईश्वर तक पहुंचने में सफल होना चाहता है तो उसे इस मायाजगत से मुक्त होने की आवश्कता हैं।

अवश्य पढ़े :– माया क्या हैं जानिए भगवान विष्णु और नारद मुनि की कथा द्वारा

जब कोई साधक माया जगत से मुक्त हो जाता है तो वह स्वयं के ईश्वर को अनुभव करता हैं, इस अनुभव को ‘आत्मज्ञान‘ भी कहां जाता हैं। संभवतः अपने इसके बारे में सुना या पढ़ा होंगा!

साधकों अगर आप यह सोचते हैं की आप संपूर्ण ईश्वर को आपकी आंखों से देख सकते हैं कानों से ईश्वर की आवाज सुन सकते हैं तो आप गलत हो सकते हैं। हमारी इंद्रियां, और बुद्धि में ईश्वर को समझ पाने की सक्षमता नही हैं हम केवल तीन आयामी संसार तक ही सीमित हैं। वेदों में सृष्टि में कुल चोसट आयामों की बात की गई हैं और यह संपूर्ण आयाम उस ईश्वर के अधीन है तो हम इन इंद्रियों से ईश्वर को कैसे जान सकते हैं?

हम इंद्रियां या बुद्धि द्वारा भी ईश्वर को नहीं जान सकते लेकिन हम ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण करके ईश्वर को जान सकते हैं और उस तक पहुंच सकते हैं।

साधकों इस संपूर्ण सृष्टि में जो कुछ भी है संपूर्ण का कारण ईश्वर है, ईश्वर ही हमे अपने ऊपर धारण किए हैं । जैसे हम ऋषि मुनियों और श्रीमद भगवद्गीता के द्वारा जानते हैं वह परमात्मा सभी जीव को धारण पोषण करता हैं और सभी का पालनहार हैं।

क्या आत्मा ही ईश्वर हैं?

अगर हम एक वाक्य में इसका उत्तर दे तो हम यह कह सकते है की शुद्ध अहंकार रहित आत्मा ही ईश्वर हैं। जब कोई योगी आत्मज्ञान की समाधि प्राप्त करता हैं तो आत्म यानी स्वयं को ही ईश्वर जनता हैं। आत्मज्ञान साक्षात्कार होना एक दिव्य घटना है जो बहुत ही कम लोगों के साथ घटित होती हैं। यह वही लोग होते है जो किसी न किसी तरह से पूर्ण समरपन करते हैं। और मोह माया के परे हो जाते हैं। 

स्वयं को शुद्ध आत्मा अनुभव करना और स्वयं को शरीर समझना इनमे बहुत अंतर है साधकों , स्वयं को शरीर समझना बंधन की तरह हैं और आत्मज्ञान समस्त समस्त बंधनों से मुक्ति का परम आनंद हैं।

आत्मज्ञान अनंत सत्य की प्राप्ति है, जो योगी आत्मज्ञान की समाधि में स्थित हो जातें हैं वे परमात्मा यानी ईश्वर में विलीन हो जाते हैं। वे स्वयं के सत्य स्वरूप में ही स्थित हो जाते हैं और पुनः शरीर धारण कर किसी योनि जन्म नही लेते। उनका जन्म लेने का कोई कारण नहीं है । वह अद्वैत, मुक्त, शाश्वत आत्मा है। यह आत्मा का कोई आरंभ, मध्य और अंत नहीं है सृष्टि हो न हो ब्रह्मांड हो या न हो आत्मा इस सब अस्तित्व का कारण हैं। इस परम शुद्ध अविनाशी निरगुण निराकार आत्म को ही हम परमात्मा कह सकते हैं। जो समस्त माया जगत से परे है।

इसे भी देखें>>  परमात्मा कोन है विस्तार से पढ़िए

   Purity of Life    

Purity of Life

Join Us on WhatsApp

Leave a Comment

2 − one =

भगवान के दर्शन कैसे होते हैं? | GOD REALIZATION
आत्मा क्या है और अनात्मा क्या हैं? | SELF and NON-SELF in Hindi
जीवात्मा और आत्मा क्या हैं? || आध्यात्म
कर्म करते हुएं योग में सिद्धि कैसे हों? | What is karma Yoga in Hindi
मोक्ष किसे कहते है? | सुख-दुख से परे नित्य आनंदमय | What is Moksha in Hindi
सच्ची भक्ति के 9 संकेत | 9 Signs Of Devotion