भगवान ने सृष्टि क्यों बनाई? क्या सच में भगवान ने ही बनाई? | जानिए पूरी बात
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भगवान ने सृष्टि क्यों बनाई? क्या सच में भगवान ने ही बनाई? | जानिए पूरी बात

क्या सच में सृष्टि भगवान ने ही बनाई?

bhagwan ne srishti kyon banai

 

भागवत पुराण: कई धार्मिक समुदायों में ईश्वर को सृष्टि का रचनाकार माना जाता है और इस मान्यता के आधार पर यह प्रश्न खड़ा होता है की भगवान ने सृष्टि क्यों बनाई? क्या सच में भगवान ने ही बनाई? | साधकों! यहां हम सनातन धर्म के विज्ञान के आधार पर सृष्टि रचना के कारण पर गहराई से विचार करने वालें है इसे पढ़कर आपको अवश्य ही बोध प्राप्त हो जायेगा न केवल वह बाहरी सृष्टि का बल्कि वो भी सृष्टि जो आपके ही भीतर है |

सबसे पहले तो ये बात समझ लीजिए; भगवान ने इस सृष्टि को नहीं बनाया है; वह इसका कारण है | कारण और कर्ता दो अलग-अलग तत्व है |

सनातन धर्म में ब्रह्मा जी को रचनाकार माना जाता है लेकिन ब्रह्मा जी परमात्मा नहीं है, परमात्मा भगवान कृष्ण है | भगवान कृष्ण ही सभी भौतिक और आध्यात्मिक लोकों के कारण है | जिस तरह से एक बीज एक वृक्ष का कारण होता है | वृक्ष को बनाने वाला बीज नहीं है वह वृक्ष का कारण मात्र है, वृक्ष तो स्वयं बन कर तैयार हो जाता है | इसी तरह से भगवान कृष्ण ने सृष्टि को नही बनाया है वे इसका कारण है |

सनातन धर्म के विज्ञान के अनुसार भगवान नारायण (भगवान कृष्ण का ब्रह्म स्वरूप) के नाभी कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई थीं और ब्रह्मा से सृष्टि आरंभ हुआ जब उन्होंने चारों और देखा तो चार दिशाओं में उनके चार मुख बन गए | लेकिन भगवान नारायण ने ब्रह्मा जी को नहीं बनाया; कालशक्ति और रजोगुण के प्रभाव से वे स्वयं बन गए इसी लिए उन्हें स्वयंभू भी कहा जाता है | इसी तरह से सृष्टि को बनाने वाले भगवान नही है | ब्रह्मा से सृष्टि का आरंभ हुआ है इसीलिए यह काल के प्रभाव से अपने आप में ही बनती है टिकती है और मिटती है | मिटने के लिए टिकना और टिकने के लिए बनना आवश्यक होता है | सृष्टि के तरह ब्रह्मा भी काल के अधीन है |

भगवान नारायण अनादि और अविनाशी है परंतु इस सृष्टि का ब्रह्मा नश्वर है बिलकुल उसी तरह जैसे ये सृष्टि भी नश्वर है | ब्रह्मा के जन्म के साथ सृष्टि बनाती है और उनके मृत्यु के साथ समाप्त हो जाती है |

साधकों! अगर आपको सृष्टिकर्ता ब्रह्मा और इस सृष्टि के कारण भगवान नारायण के स्वरूप का बोध हो जाता है तो आपको इस सृष्टि के निर्माण का भी बोध हो जायेगा, इसी लिए हम पहले सृष्टिकर्ता ब्रह्मा और कारण विष्णु का स्वरूप के बारे में संक्षिप्त में जानने वाले है |

भगवान नारायण : नारायण को परब्रह्म परमात्मा माना जाता है, हिंदू धर्म दर्शन के अनुसार परब्रह्म सर्वोच्च ब्रह्म है वह सर्वशक्तिमान, सर्वचैतन्य, सर्वतेजोमय, सर्वज्ञ है। वह सभी गुणों से परे गुणानतित, भावातीत और माया के तीनों गुणों के अधीन नहीं है बल्कि ये गुण भगवान नारायण के अधीन है | 

सृष्टिकर्ता ब्रह्मा : ब्रह्माजी सभी गुणों को साथ है वह माया के अधीन है, ब्रह्मा रजोगुणी है | जहां ब्रह्म निराकार और निर्गुण है उससे अलग ब्रह्मा जी साकार है | ब्रह्मा भी सृष्टि का ही विषय है इसीलिए वह काल के अधीन है; ब्रह्मा की आयु सभी से ज्यादा कही गई है |

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साधकों ! इस सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा जी माया के अधीन है उनमें रजोगुणी है, रजोगुण से उगम हुए कमल में ही ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई है | रजोगुण असीम आकांक्षाओं, तुष्णाओं और सकामकर्म को दर्शाता है |ये सृष्टि जो लगातार बन रही है, टीक रही है और मिट रही है इसके के पीछे माया ही है | माया के कारण ही कमल में ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई और माया वह है जो वहां नहीं है; माया को ओढ़कर परमात्मा ही सर्वत्र व्याप्त है | माया भ्रम है और वास्तविकता परमात्मा है |

इसका अर्थ यह सृष्टि वैसी नहीं है जैसी दिख और सुन और महसूस हो रही है | हमारे पास आंखें है तो माया के प्रभाव से हमे यह सृष्टि दिखाई देती है, कान से सुनाई देती है , त्वचा से महसूस होती है| बुद्धि, मन है तो उसका बोध होता है | लेकिन यह इतने में ही सीमित नहीं है यह अनंत संभावनाओं से भरी है इसका कारण परम स्वतंत्रता चैतन्य यानी परमात्मा है, वह स्थान और समय के परे है |

जिस तरह से वृक्ष पर फूल खिलते रहते है इसके खिलने का कोई उद्देश नहीं होता या जैसे कोई नन्हा शिशु चैतन्य होने के कारण अपना हात पाव हिलाता रहता है, या जैसे तालाब का शांत पानी अपने में चंद्र को प्रतिबिंबित करता है, समुद्र है तो उसमे असंख्य लहरे उठाती रहती है | इन सबका कोई उद्देश नहीं है ये इनका स्वभाव ही है | उसी तरह से इस सृष्टि के बनने के पीछे भी कोई उद्देश या आवश्कता नहीं है बनाना टिकना और मिटना प्रकृति का स्वभाव है |

भगवान ने सृष्टि को नहीं बनाया वो इसका कारण मात्र है | वह चिदानंदरुपम यानी चैतन्य मात्र है | वह सर्वशक्तिमान है इसी लिए उसकी शक्ति से इसमें जान है | वह सर्वज्ञ है इसी लिए इस सृष्टि में ज्ञान है | वह निर्गुण है निराकार है इसी लिए इस सृष्टि में असंख्य गुण आकर का जन्म होता है | वह अकर्ता है इसी लिए सृष्टि में गतिशीलता है | वह अव्यक्त है इसीलिए यह व्यक्त होती रहती है | वह सत्य है इसीलिए सृष्टि नश्वर और परिवर्तनशील है |

अगर कोई व्यक्ति सृष्टि की और देखता और सोचता है की इसे किसने बनाया या क्यों बनाया या इसको बनाने वाला कोई है या नहीं? तो साधकों! इन प्रश्नों का उत्तर भी उसे अपने अंदर से ही प्राप्त होना संभव है |

जो इस सृष्टि में जन्म लेता है उसी क्षण से यह माया की त्रिगुणात्मक सृष्टि बनना टिकना और मिटना शुरू हो जाती है पहले उसके माता, पिता परिवार और थोड़ा बड़ा होने के बाद दोस्त बाद में पत्नी, पुत्र, पुत्री | वह अपने आस पास देखता है तो उसे भूमि, भवन, पर्वत, नदी पशु पक्षि दिखाई देते है ऊपर आकाश दिखाई देता है | इन्हे बनाने वाला भगवान नहीं है बल्कि वह खुद है उसकी इंद्रियां, बुद्धि मन ने ही इसे बनाया है |

 

दुनिया का अहसास हमें तब होता है जब हम इंद्रियों से और बुद्धि से इसे समझते है | सृष्टि का अहसास करवाने वाली इंद्रियां है इंद्रियों का समझ मन का अज्ञान है | और ऐसी अज्ञान के कारण यह सत्य जान पड़ती है | जब कोई व्यक्ति चेतना को इंद्रिय विषयों से हटाता है तो उसे वास्तविकता का दर्शन होता है | और वह यह भी समझ लेता है की ये इंद्रियों से मन के अज्ञान से भसाने वालीं यह दुनिया मिथ्या है |

वास्तविकता तो कुछ और ही है | अगर आपके मन में यह सवाल उठ रहा है की सृष्टि को किसने बनाया इसका अर्थ है आप सृष्टि को ही सत्य मान बैठे है जिसे आपकी भौतिक इंद्रियां अनुभव कर रही है | यह अज्ञान है | जिस प्रश्न का आधार ही अज्ञान है उसका उत्तर वह नहीं जो आप सोच रहें है |

इस सृष्टि को बनाने वाला कोई नहीं है यह अनंत संभावनाओं में से एक संभावना है | अनंत संभावना ही मुक्ति है और वही ईश्वर है |

जिस तरह से धागे में मोती गूथे होते है उसी तरह से यह संपूर्ण संसार ईश्वर पर आधारित है | जो दुनिया मनुष्य और जीव को इंद्रियों से भासती है वह मन का अज्ञान है | आत्मज्ञान ही पूर्ण ज्ञान है वही ईश्वर का ज्ञान भी है और दुनिया का भी |

 

भीतर की सृष्टि क्या है और इसे इसने और क्यों बनाया?

शास्त्रों को कथाएं सांकेतिक होती है इसने कई संकेत प्राप्त हो सकते है |

साधकों! सृष्टि कैसे बनी इसका उत्तर मैने आपको पुराण कथाओं के आधार पर दे दिया परंतु यह उत्तर केवल बाहरी सृष्टि तक ही सीमित नहीं है बल्कि ये आपके अंदर की सृष्टि का भी रहस्य उजागर करता है | आइए इसपर भी प्रकाश डाल लेते है |

जो सृष्टि आपके बाहर है वैसी ही आपके भीतर भी होती है, ये भी मिथ्या ही है और यहां भी वास्तविकता परमात्म यानी की शुद्ध आत्म ही है |

जैसे बाहर की सृष्टि परमात्मा में विद्यमान होती है वैसे ही भीतर की सृष्टि आत्मा यानी स्व में विद्यमान होती है | माया के रजोगुण के कारण उगम हुए कमल में जिस तरह से ब्रह्मा की उत्त्पति हुई और बाद में सृष्टि की उत्त्पति हुई | उसी तरह जब आत्मा मनुष्य देह धारण कर जन्म लेती है वह गुणों को और आकार को प्राप्त करती है | और मन के भीतर सृष्टि की रचना का प्रक्रिया शुरू हो जाती है |

जिस तरह परमात्मा निर्गुण, निराकार है और ब्रह्मा सभी गुणों और आकार को धारण करता है उसी तरह आत्मा निर्गुण है और भौतिक शरीर और मन जीवन काल में गुण और आकार धारण करता है |

जिस तरह से ब्रह्मा का जन्म माया यानी रजोगुण के प्रभाव से उगम हुए कमल में हुआ है | उसी तरह जीवात्मा माया के प्रभाव के कारण ही संसार में जन्म लेती है |

आखरी शब्द :

परमात्मा ने सृष्टि को नहीं बनाया वह इसका कारण है | जो दुनिया इंद्रियों और बुद्धि का एक धोका है; यह मिथ्या है | वास्तविकता परमात्मा है |

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I'm a devotional person, named 'Vaishnava', My aim is to make mankind aware of spirituality and spread the knowledge science philosophy and teachings of our Sanatan Dharma.

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