समाधि क्या हैं? समाधि का अनुभव कैसा है? – Samadhi Kya Hai


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इस लेख में समाधी क्या है? श्रीमद भागवत गीता में समाधी का वर्णन, और समाधि की अवस्था को कैसे पाया जा सकता है इन विषयों पर जानकारी दी गई है।

Samadhi Kya Hai

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समाधि क्या हैं?

समाधि की व्याख्या अगर दी जाएं तो हम यह बोल सकते हैं की जब योगी ध्यान के माध्यम से स्वयं का अहंकार जो “मैं” से हैं उसे नष्ट कर ब्रम्हस्वरूप में विलीन हो जाता है इस अवस्था को समाधि कहते हैं ।

समाधि संस्कृत शब्द  “सम” और “धा” धातु से बना है, “सम” अर्थात संतुलन या एक करना । और “धा” बुद्धि से संबंधित है । समाधि घटित होते ही, पांच कर्मेंद्रिया, पांच ज्ञानेंद्रिया की जागरूकता शांत होकर मन के साथ समाधि में लीन हो जाती है और परम आनंद समाधी घटित होती हैं।

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समाधि ध्यान में थोड़ा गहरा उतारने के बाद होने वाली दिव्य अवस्था है । जब कोई योगी ध्यान किया जाता है । ध्यान को एक जगह स्थित करता हैं । ध्यान को एकाग्र करने के लिए अपने मन को मंत्रों के उच्चारण पर स्थित करता हैं कोई मन में भगवान के स्वरूप को बनाकर उस रूप पर मन को एकाग्र करता हैं। या कोई कर्म योगी अपने सासों पर मन एकाग्र करता हैं। ध्यान में थोड़ा गहरा उतरने पर योगी अपने मन के ध्यान को पीछे छोड़ देता है और मन में ही मन को विलीन कर देता है वह अद्वैत अवस्था में चला जाता है, तटस्थ या स्थिरप्रज्ञ हो जाता है। और उसे समाधि की अवस्था प्राप्त होती हैं। 

समाधि का अनुभव कैसा है?

योगी समाधि की अवस्था प्राप्त करते ही संसार से मुक्त हो जाता है। और वो स्पर्श, गंध, रूप, शब्द, भेद, मान–अपमान, सुख–दुख, सर्दी–गर्मी, और सभी अनुभवों से परे की अवस्था प्राप्त करता हैं। इस अवस्था को जन्म और मृत्यु से परे मोक्ष, परम आनंद भी कहते हैं।

जिन्होंने समाधि की अवस्था को नही पाया हैं वे कभी समाधि के बारे में सोच भी नही सकते क्योंकि समाधि कोई मन की अवस्था बिल्कुल नही यह एक अलौकिक या ईश्वरीय घटना हैं।

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समाधि क्या हैं श्रीमद भागवत गीता के अनुसार?

श्रीमद्भगवद्गीता में अध्याय छह का २०, २१, २२ और २३ वा श्लोक है,

यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योग सेवया | यत्र चैवत्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति || २० ||

सुखमात्यन्तिकं यत्तद्बुद्धिग्राह्यमतीन्द्रियम् | वेत्ति यत्र न चैवायं स्थितश्चलति तत्त्वतः || २१ ||

यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः | यास्मन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते || २२ ।

तं विद्याद्दुःखसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम् || २३ ||

भावार्थ : सिद्धि की अवस्था में, जिसे समाधि कहते हैं, मनुष्य का मन योगाभ्यास के द्वारा भौतिक मानसिक क्रियाओं से पूर्णतया संयमित हो जाता है। इस सिद्धि की विशेषता यह है कि मनुष्य शुद्ध मन से अपने को देख सकता है और अपने आपमें आनन्द उठा सकता है। उस आनन्दमयी स्थिति में वह दिव्य इन्द्रियों द्वारा असीम दिव्यसुख में स्थित रहता है। इस प्रकार स्थापित मनुष्य कभी सत्य से विपथ नहीं होता और इस सुख की प्राप्ति हो जाने पर वह इससे बड़ा कोई दूसरा लाभ नहीं मानता | ऐसी स्थिति को पाकर मनुष्य बड़ीसे बड़ी कठिनाई में भी विचलित नहीं होता | यह निस्सन्देह भौतिक संसर्ग से उत्पन्न होने वाले समस्त दुःखों से वास्तविक मुक्ति है।

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समाधि कैसे लेते हैं?

अगर समाधि लेने की इच्छा रखकर समाधी तक पहुंचने का प्रयास किया जाए तो समाधि कभी नहीं घट सकती हैं। ऐसा करने से समाधि की तरफ नही बल्कि समाधि से उल्टी दिशा में जाने लगेंगे। इच्छा मन करता हैं और मन में यह इच्छा होंगी तो मन आपके समधी के मार्ग में दीवार की तरह आपको रोकेंगा।

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समाधि धारण करने के लिए आपको आपके मन को विषयों से हटाने का अभ्यास करना होंगा अभ्यास से मन पर नियंत्रण रखना संभव हैं।

बोहोत सारा अनात्म ज्ञान भी बाधा ला सकता है। सरलता और मन को पूर्ण खाली रखकर ध्यान से समाधि तक पहुंचाने का अभ्यास किया जा सकता हैं।


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