ऋषियों ने साधना में सिद्धि से महाज्ञान प्राप्त किया और जैसा देखा वैसा ही नई पीढ़ी के लिए लिख दिया | ‘तत् त्वम् असि’ यह श्लोक छांदोग्य उपनिषद का है | ‘तत् त्वम् असि’ का अर्थ है “वह तुम ही हो” या “वह ब्रह्म तुम ही हो” ‘तत् त्वम् असि’ क्या है इस समझने के लिए इस लेख को पढ़िए |
नेति-नेति | न ऐसा, न वैसा | क्या है समझिए
नेति-नेति का अर्थ है “यह नहीं, वह नही” यह श्लोक साधक को आध्यात्मिक विकास और आत्मज्ञान साक्षात्कार करने में एक साधन का काम करता है