भगवान जगन्नाथ की कथा | Rath Yatra | kahani | Rahasya


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ओड़िशा राज्य के पूरी शहर में भगवान जगन्नाथ का भव्य मंदिर हैं। भगवान जगन्नाथ जी के कारण पूरी को भारत भर में जगन्नाथ पुरी भी कहते हैं। भगवान जगन्नाथ की पूरी सनातन के चार धामों में से एक हैं। हर साल सम्पूर्ण जगत से श्रद्धालु जगन्नाथ पूरी के भव्य रथयात्रा उत्सव में शामिल होते है।

भगवान जगन्नाथ जी के इस भव्य उत्सव की रथयात्रा न केवल भारत में बल्कि पाकिस्तान, चीन, अमेरिका, हॉन्गकॉन्ग के साथ अनेको देशों में भी श्रद्धालु भक्तों द्वारा निकाली जाती है।

आइए जानते है भगवान जगन्नाथ कोन है और भगवान जगन्नाथ रथयात्रा की क्या कहानी है और जगन्नाथ पुरी मदिर के कुछ ऐसे रहस्य जो विज्ञान भी आज तक नही समझ पाया हैं।


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भगवान जगन्नाथ कोन है.

भगवान जगन्नाथ कलियुग के साक्षात भगवान है। “जगन्नाथ” अर्थात जगत के नाथ (Lord Of Universe) भगवान जगन्नाथ और कोई नही बल्कि भगवान श्रीकृष्ण का ही विग्रह स्वरूप हैं। भगवान जगन्नाथ अपनी छोटी बहन सुभद्रा और  बड़े भाई बलराम के साथ भगवान जगन्नाथ पूरी में विराजमान हैं।

अवश्य जाएं – भगवान विष्णु ने कोन–कौनसे अवतार लिए यहां जानें 

भगवान श्रीकृष्ण के इस जगन्नाथ विग्रह का वर्णन हमे स्कंद पुराण में मिलता हैं।

भगवान श्री कृष्ण हमेशा उनके ब्रिज के भक्तों के याद में और ब्रिज वासियों का चिंतन करते थे, यह देख भगवान श्रीकृष्ण की पत्नीयों को ब्रिज वासियों की भगवान के लिए प्रेम और भक्ति के बारे में जानने की उत्सुकता हुई , भगवान श्रीकृष्ण की पत्नियां बलराम जी की माता रोहिणी से ब्रिज वासियों के भक्ति के बारे में पूछने लगीं। माता रोहिणी ने यह बात कही की भगवान उनकी बात सुन ना सके इसी लिए सुभद्रा को द्वार पर खड़ा कर दिया।

ब्रिज वासियों को भक्ति और प्रेम को माता रोहिणी से सुनकर सभी स्तब्ध हो गए भगवान भी उनकी पत्नियों और माता रोहिणी के अनजाने ने वहां उपस्थित हो गए।

भगवान श्रीकृष्ण के साथ छोटी बहन सुभद्रा और बालाराम भी यह सुन स्तब्ध हो गए। भगवान श्रीकृष्ण इसी करुणामय स्तब्ध स्वरूप को जगन्नाथ कहते हैं

विश्वुकर्मा जी द्वारा बनाई गई भगवान जगन्नाथ के विग्रह रूप की कथा।

पुरातन काल में भारत के मध्य भाग में राजा इंद्रद्युम्न का राज्य था राजा इंद्रद्युम्न भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे । वे पुण्यात्मा थे और हमेशा दान पुण्य यज्ञ आदि करते थे।

राजा इंद्रद्युम्न के चर्चे सम्पूर्ण मध्य भारत में होते है  एक बार राजा इंद्रद्युम्न के मिलने एक ऋषि आए ऋषि राजा से बोले के को ओडिसा में भगवान नीलमोहन का विग्रह रूप है । लेकिन ऋषि को ठीक तरह से नहीं पता था की ओड़िशा में निलमोहन का विग्रह रुप कहां स्थित हैं।

कुछ समय बाद राजा के स्वप्न में भगवान विष्णु आए और राजा से उनका एक मंदिर बनवाने को कहां । राजा को यह बात पता थी को ओड़िशा में कही भगवान नीलमोहन का विग्रह रूप पूजा जाता हैं।

राजा ने नीलमोहन के विग्रह रूप को उस मंदिर में स्थित करने की इच्छा की और नीलमोहन को ढूंढने के लिए उनके गुप्तचर के साथ उनके राज्य के मुख्य पंडित के भाई को भेज दिए वे भी पंडित थे।

नीलमोहन जी को ढूंढने के लिए जब पंडित एक जंगल से गुजर रहा था तभी पंडित के सामने एक बाघ आ गया बाघ के पंडित पर हमला करने से पहले एक युवती ने उसे बचा लिया यह युवती एक कबीले से थी युवती के पिता कबीले के सरदार या मुखिया थे।

युवती पंडित को अपने कबीले में ले आ गई और उसके पिता को पूर्ण घटना बताई। पंडित कबीले में ही रहने लगे कुछ समय बाद पंडित और युवती के बीच में प्रेम हो गया और उनकी विवाह भी हो गया ।

पंडित को कुछ समय बाद यह पता चला की जिस मूर्ति को वो ढूंढ रहे है वो मूर्ति कबीले के ही पास है। लेकिन जहां वह मूर्ति स्थापित है वह स्थान सिर्फ कबीले के सरदार को ही पता हैं। पंडित ने कबीले के सरदार से नीलमोहन के दर्शन करने की इच्छा जताई लेकिन सरदार ने माना कर दिया पंडित के बार – बार बिनती करने पर सरदार मन गए और उनके आंख पर पट्टी बांधकर पंडित को उस गुप्त स्तान पर ले गए यह एक गुफा थी । वहां पहुंचकर पंडित ने विग्रह रूप के दर्शन किए । लेकिन पंडित ने वहां से निकलते समय मुट्ठी में सरासों के बीज भर लिए ।

सरदार ने उसके आंख पर पट्टी बांधी और उसे गुफा से वापिस कबीले में ले आए । लेकिन पंडित ने जो सरसों के बीज मुट्ठी में दबा लिए थे तो पूरे रास्ते में एक एक बीज को जमीन पर छोड़ता हुआ आया ।

कुछ महीने बाद उन सरसों के बीजों से पौधे निकल आए पंडित ने उस गुफा का पता लगा लिया और राजा को लेकर उस गुफा में गया । लेकिन विग्रह रूप वहां पर नहीं था, वे निराश होकर वापस लोट आए।

कुछ समय बाद राजा के स्वप्न में फिर से भगवान विष्णु आए, भगवान विष्णु के राजा को समुद्र के तैरती हुई एक लकड़ी के को तराश कर मूर्ति बनाकर उसे मंदिर में स्तापित करने को कहां और साथ में ये भी कहां की इस लकड़ी को केवल वह सरदार ही उठा कर ला सकता है।

राजा अगले दिन अपने  कुछ सैनिकों के साथ समुद्र के टथ पर गए उन्हें वह एक बड़ी सी लकड़ी समुद्र के किनारे तैरती हुई दिखी सैनिकों ने इस लकड़ी को समुद्र से बाहर निकलने का प्रयास किया लेकिन वे असफल रहे । राजा ने कबीले के सरदार को बुलाया और लकड़ी को लेकर राज्य में आ गए ।

राजा ने लकड़ी को से मूर्ति का निर्माण करने के लिए अपने राज्य के बेहेटर से बेहेटर कारीगर बुलवाए लेकिन वे कारीगर कुछ नही कर पाए। थोड़ी देर बाद विश्वकर्मा एक बूढ़े व्यक्ति का वेश बनाकर आए और राजा को मूर्ति निर्माण करने का वचन दिया ।

कोई भी कारीगर मूर्ति नही बना पा रहा था राजा के पास कोई पर्याय नहीं था तो राजा ने उस बूढ़े व्यक्ति को लकड़ी से मूर्ति का निर्माण करने की आज्ञा दे दी। बूढ़े व्यक्ति ने लकड़ी को मंदिर के अंदर ले जाने को कहा और यह भी कहां की जब तक मूर्ति बन कर तैयार नहीं हो जाती मंदिर का द्वार बंद रहेंगे और किसी को भी मूर्ति का निर्माण होते हुए देखने नही दिया जायेगा ।

मंदिर का द्वार बंद कर दिया गया अगले दस दिन तक बूढ़ा व्यक्ति ने मूर्ति का निर्माण किया और ग्यारवे दिन वह वह मंदिर में नही था । लेकिन भगवान जगन्नाथ के साथ सुभद्रा और बालाराम जी का विग्रह रूप बन कर तैयार था । विग्रह रूप का निर्माण होने के बाद राजा  यह भी पता चला की वह बूढ़ा व्यक्ति और कोई नही बल्कि विश्वकर्मा थे।

अवश्य पढ़े –

जगन्नाथ पुरी मंदिर के रहस्य जो विज्ञान भी आजतक नही समझ पाया है।

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  • जगन्नाथ पुरी मंदिर के शीर्ष पर लगे ध्वज का रहस्य विज्ञान के नियमों का पालन नहीं करते दिखाई हैं । और हवा के बहने के उल्टी दिशा में लहराता है। कई बार तेज हवाओं में भी यह ध्वज हवा को चीरते हुए उल्टी दिशा में लहराता दिखा है।
  • जगन्नाथ मंदिर के शीर्ष का ध्वज हर दिन बदला जाता हैं। मान्यता यह है की अगर ध्वज नही बदला गया तो मंदिर अगले आठरा सालों के लिए बंद हो जायेगा।
  • जगन्नाथ पुरी मंदिर के शीर्ष पर भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र की प्रतिमा है । यह सुदर्शन चक्र की प्रतिमा अष्टधातु ( आठ धातु) से बनाई गई है। इसकी बनावट इतनी अदभुत है की पूरी के किसी भी कोने से चक्र को देखने पर यह सीधा ही दिखाई देता हैं।
  • किसी भी इमारत या मंदिर पर पक्षियों का उड़ना या बैठना साधारण है। लेकिन भगवान जगन्नाथ जी के इस मंदिर पर सैकड़ो सालो में कोई भी पक्षी का ना उड़ना या बैठना असाधारण हैं।
  •  मंदिर के परछाई किसी भी महीने में या सुबह, दोपहर, शाम नहीं पड़ती। भगवान जगन्नाथ का यह मंदिर चार लाख वर्ग फिट में फैला है मुख्य मंदिर की ऊंचाई 214 फीट है। लेकिन अदभुत बात यह है की इस मुख्य मंदिर की परछाई कभी नहीं देखी गई हैं।
  • मंदिर के बाहर समुद्र की लहरों की ध्वनि आती है , लेकिन मंदिर के द्वार में प्रवेश करते ही लहरों की ध्वनि नहीं सुनी देती।
  • अक्सर समुद्र से हवा टथ के तरफ बहती है और रात के समय समुद्र की तरफ बहती है , लेकिन पूरी शहर में इस नियम के विपरित हवा टथ से समुद्र की तरफ बहती हैं। और रात के समय समुद्र से टथ की तरफ बहती है।
  • जगन्नाथ पुरी मंदिर के परिसर में दुनिया की सबसे बड़ी रसोई हैं। लाखों भक्तों के प्रसाद ग्रहण करने पर भी इस कभी प्रसाद काम नही पड़ा है। और जब संध्या के समय मन्दिर का द्वार बंद होता है प्रसाद समाप्त हो जाता हैं।
  • भगवान जगन्नाथ जी का यह प्रसाद प्राचीन काल से ही मिट्टी के बर्तनों में और लकड़ियों में बनाया जाता है । एक के उपर एक सात मिट्टी के बर्तन रखकर प्रसाद तैयार होता है,  प्रसाद सबसे उपर वाले बर्तन से नीचे के बर्तन में तक पकता हुआ आता हैं।

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