ध्यान के द्वारा मन को विलीन कर के परमात्मा के दर्शन करना संभव हैं। जो योगी अभ्यास से ध्यान में उच्चतम सिद्धि प्राप्त करते हैं, उनके लिए परमात्मा में विलीन होना सहज हैं। किंतु अगर परमात्मा के पहले अनुभव पर आए तो इसे समझना कई लोगों के लिए कठिन हो जाता हैं। जब थोड़े और अनुभव होते है, व्यक्ति को बोध होता हैं।
इस लेख में परमात्मा में विलीन होने का पहले अनुभव कैसा होता हैं और जिन्होंने पहली बार इस घटना का अनुभव किया हैं वे इसे कई स्पष्ट कर सकते है जानते हैं.
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ध्यान में होने वाले अनुभव
मन में अनावश्यक विचार आना : ध्यान लगने पर मन में अनावश्यक विचार आना प्राकृतिक घटना हैं। मन की भावना के कारण ऐसा होता हैं। ध्यान के समय मन से नियंत्रण छूट जाता हैं। और मुक्ति प्राप्त होती हैं।
दो बुव्यों के बीच ध्यान जाना : अगर प्राकृतिक तरीके से पहली बार ध्यान हो जाए, तो मन के अज्ञानता के कारण इस घटना का अंतर विरोध होता हैं, जिसमे दुविधा की स्थिति भी तैयार होती हैं , ऐसे स्थिति आज्ञा चक्र पर ध्यान केंद्रित होने लगता हैं, मन को या व्यक्ति को इसे समझ पाना कठिन हैं ।
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डर लगना : पहली बार ध्यान लगने पर मन में अनावश्यक डर निर्माण होता हैं, इस यह डर ध्यान में गहराई में उतरने से लगता हैं। लेकिन बुद्धि के लिए इस अवस्था को जान पाना कठिन हैं।
विचित्र अनावश्यक शरीर की हरकते करना : भावना से अभिभूत होने के कारण व्यक्ति विचित्र हरकते करता हैं। यह मन के सांसारिक बंधनों से मुक्ति होने के कारण होता है ।
मुक्ति के आनंद का अनुभव : ध्यान में मन से ही मुक्त हुआ जाता हैं, मन के कारण कर्मफल और सांसारिक विषयों से आसक्ति होती है, इससे बंधन निर्माण होता हैं, मन को विश्राम देकर वास्तविक मुक्ति का आंनद आता हैं।
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शरीर का स्थिर हो जाना : ध्यान में गहरा होने पर शरीर स्थिर जान पड़ता हैं, यह भविष्य की चिंता छोड़ कर वर्तमान में स्थिर होने का आनंद हैं।
शरीर में झटके लगना : ध्यान करते समय शरीर में झटके आना अच्छा संकेत हैं, इसे ध्यान में उन्नति भी कह सकते हैं।
बोध होना : ध्यान में रखकर बोध प्राप्त होता हैं, दिव्य संकेत भी प्राप्त होते हैं, इन को समझकर जीवन के विभिन्न पहलुओं का बोध होता हैं। और सदगती होती हैं।
परमात्मा का अनुभव
परमात्मा का अनुभव परम आनंद का अनुभव हैं, इसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता , यह अनुभव निर्गुण, निर्लेप, निराकार परमात्मा का स्वरूप हैं। जब कोई व्यक्ति समाधि को प्राप्त होता हैं। यह घटना दिन के उजाले से भी साफ होती हैं। परमात्मा अनुभव से पहले का मन को जाना जाता हैं ।
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जीव और जीवन के बंधनों से मुक्ति : सत् चित् आनंद स्वरूप परमात्मा का आत्म का दर्शन होने मन को स्वयं से भिन्न जाना जाता हैं। मन आत्म को जीव और जीवन से मुक्त जानता हैं।
सत्य का ज्ञान : सांसारिक विषयों की आसक्ति सकाम कर्म मिथ्या है यह नश्वर हैं, तथा सत्य शाश्वत हैं, सत्य का ज्ञान होने से योगी संसार को मिथ्या जानकर इसके बंधन को भी जान जाता हैं ।
दिव्य प्रकाश का अनुभव : आत्म दिव्य प्रकाश स्वरूप है, इस प्रकाश को भौतिक प्रकाश नहीं है यह ज्ञान स्वरूप प्रकाश हैं, आत्म के अस्तित्व को जानने से सर्वत्र इस दिव्य प्रकाश को व्याप्त जाना जाता हैं ।
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शाश्वत आनंद का अनुभव : आनंद स्वरूप आत्म का आनंद किसी आधार के कारण नहीं है यह परम शुद्ध हैं। यह आंनद दिव्य और सुख दुख से परे हैं।
अहंकार से मुक्त अनुभूति : परमात्मा या आत्म में परमात्मा स्वरूप अहंकार रहित है, परमात्मा का अनुभव होने से अहम का अहंकार शून्य हो जाता हैं।
निष्कर्ष;
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आत्म में परमात्मा का अनुभव दिव्य हैं यह अहंकार, आसक्ति, कर्मबन्धन और सांसारिक विषयों से परे अनुभूति हैं।
FAQ;
परमात्मा का पहला अनुभव कैसा होता हैं?
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आत्म में परमात्मा का अनुभव दिव्य हैं यह अहंकार, आसक्ति, कर्मबन्धन और सांसारिक विषयों से परे अनुभूति हैं।
परमात्मा का ध्यान कैसे सफल करें?
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ध्यान में उच्च सिद्धि प्राप्त कर परमात्मा के दर्शन के लिए कर्मयोग का पालन करना अति आवश्यक हैं। सकाम कर्म मे प्रवृत्त होना परमात्मा में ध्यान से उल्टा सांसारिक बंधनों की और ले जाता हैं।