ध्यान के द्वारा न केवल स्वयं का बल्कि जीवन मृत्यु के चक्र से परे परमसत्य तक का भी बोध प्राप्त होता हैं। तथा ध्यान में ऐसे गुण भी है जो किसी चमत्कार से कम नहीं हैं यह आपको स्वस्थ रहने में सहायता करता हैं, बुद्धि को तीव्रता देता हैं इत्यादि।
लेकिन ध्यान को लेकर ज्यादातर लोगों में कठिनाइयां आती हैं, क्योंकि वे लोग ध्यान का सही अर्थ ही नही जानते ध्यान के लिए स्वयं को उस योग्य करने की आवश्कता हैं जहां सहज ही गहरे ध्यान में प्रवेश कर सकते हैं। चलिए जानते है कुछ प्रभावशाली उपाय जिनसे ध्यान में सिद्धि प्राप्त की जा सकती हैं।
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गहरे ध्यान में कैसे जाएं.
ध्यान में सिद्धि प्राप्त करने के लिए ध्यान क्या है तथा ध्यान का सही अर्थ जानने की आवश्कता हैं, ध्यान किया जाए इसकी आरंभ का पथ एक ही हैं जो इसकी गहराई की ओर ले जाता हैं।
ध्यान क्या हैं? सही अर्थ
ध्यान का अर्थ है स्वयं को विचार, कर्म और अहंकार से भिन्न जानना और यही ध्यान का लक्ष भी हैं।
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ध्यान को केवल वह नहीं समझना चलिए जो पूरी तैयारी से आसन लगाकर बैठ कर किया जाए , असल में ध्यान एक प्राकृतिक घटना है जो सभी के साथ होती हैं और किसी भी स्थिति में हो सकती है ध्यान न केवल बैठकर बल्कि चलते भागते भी लग सकता हैं। किन्तु वे ध्यान की अवस्था को उस स्थिति या समय पर नहीं जान पाते।
जब ध्यान की अवस्था प्राप्त होती है जीवन में क्या चुनने योग्य है इसका भी बोध होता हैं। और जो अनावश्यक विषय हैं। जिनसे मन बुद्धि भ्रमित हो जाती है इनका मूल्य समाप्त हो जाता हैं। ये त्यागने योग्य जान पड़ते हैं। यह अवस्था मन की होती हैं।
इस अवस्था में पार कर ध्यान में और थोड़ा गहरा उतरने पर मन का अस्तित्व आत्मा में विलीन हो जाता हैं। यह ध्यान की वह उच्चतम अवस्था है जिसे समाधी भी कहा जाता हैं।
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गहरे ध्यान में प्रवेश करने के उपाय
किसी भी तरीके से ध्यान की गहराइयों में प्रवेश करने के लिए कर्मयोग का पालन करना अति आवश्यक है।
कर्मयोग (निष्काम कर्म)
ध्यान में उन्नति करने के लिए कर्मयोग से ही प्रारंभ करने की आवश्यकता हैं, और ध्यान की चरम अवस्था भी कर्मयोग ही होती है , कर्मयोग का महत्व हमे श्रीमदभगवद्गीता में भी मिलता हैं।
कर्मयोग का सीधा अर्थ है कर्मबंधनों और फल की आसक्ति से मुक्ति प्राप्त करना
अगर फल से आसक्त होकर कर्म किया जाए तो यह कर्मयोग नही और ध्यान करना सम्भव ही नहीं हैं। कर्मयोग को जीवन में स्वीकार करने के लिए, कर्म के फल प्राप्ति की आसक्ति को त्याग देना हैं, और निष्काम भाव से कर्म करना हैं, या कर्म के फलों से आसक्त न होकर भगवानभावनामृत होकर कर्म करना श्रेष्ठ हैं।
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जब ध्यान की अवस्था प्राप्त होती है, तब वो नही जना पाते की कर्म क्यों कर रहे है कर्म का लक्ष क्या है, (ये कर्म विचार और सभी तरह के कर्म होते है) केवल बिना किसी लक्ष के केवल कर्म ही करते है और गहरे ध्यान में प्रवेश करते है।
ध्यान करने के लिए शांत स्थान को चुने।
वैसे ध्यान करने के लिए किसी विशेष स्थान की आवश्कता नहीं है ध्यान एक प्राकृतिक घटना हैं जो किसी भी समय में घट सकती हैं।
परन्तु कृत्रिम रूप से ध्यान करने के लिए शांत स्थान का महत्व हैं, अशांत वातावरण में ध्यान करने में बाधाए आती हैं। जिस कारण ध्यान नहीं हो पाता
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ध्यान कैसे करे
ध्यान में डूबने के लिए इन 3 तरीके बताए हैं इन तीनों को एकसाथ करने की आवश्कता नहीं किसी एक तरीके को चुनना ही उत्तम है।
1. विचारों के प्रवाह को देखें।
ध्यान में ज्यादातर साधक भूल करते हैं जिससे कभी गहरे ध्यान में प्रवेश नहीं किया जा सकता वे अपने विचारो में प्रवाह में बहते चले जाते हैं।
विचारों पर नियंत्रण करना सहज नहीं हैं, जितना विचारों पर नियंत्रण का प्रयास करेंगे इनमे ही डूबते चले जायेंगे। ध्यान करने के प्रयास में शांत होकर केवल विचारों को देखने की आवश्कता हैं, यही से ध्यान की शुरवात होती हैं ।
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ध्यान थोड़ा गहरा होने पर अनावश्यक और त्याग करने के योग्य विचार आते हैं, यही गहरे ध्यान में प्रवेश का द्वार है । कुछ समय में प्राकृतिक रूप से ही इन अनावश्यक विचारो का त्याग होता है और योगी गहरे आनंदमय ध्यान में डूबता है।
इस तरीके के से ध्यान में उतरने के लिए कर्मयोग का पालन करना अती आवश्यक है।
2. सासों के अंदर और बाहर निकलने की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित कीजिए।
ध्यान में डूबने के लिए सासों के अंदर और बाहर निकलने की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करना भी एक अच्छा तरीका हैं। तथा इस तरीके से ही ध्यान का अभ्यास करते हैं। कई योगी ध्यान करते समय मन में सोsहम का जाप करते है, स्वास अंदर आते समय ‘सो’ का जाप होता है तथा स्वास बाहर करते हुए ‘हम’ का जाप होता हैं।
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3. भगवाननाम जाप या मंत्र जाप करे कीजिए।
भक्ति योगी के लिए भगवाननाम जाप या मंत्र जाप उत्तम तरीका है, जाप करते समय केवल जाप पर ही ध्यान देना और जाप कीर्तन में ही मग्न होना चाहिए और भक्ति योगी ऐसा करते भी हैं। नियमित निष्काम भाव से (भगवानभावनामृत) भगवाननाम जाप या मंत्र जाप से वे ध्यान में उच्च कोटि की सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं। जाप करते समय भी कर्मयोग का पालन करना आवश्यक है।
ध्यान का अभ्यास करें।
ध्यान में उच्च सिद्धि प्राप्त करने के लिए समय ओर अभ्यास की भी आवश्कता होती हैं, केवल एक दिन , एक सप्ताह या एक महीने तक ध्यान करने से ध्यान में सिद्धि नही प्राप्त होती किंतु ध्यान के अभ्यास अवश्य हो जाता हैं, जी सिद्धि का मार्ग ही हैं। नियमित अभ्यास कर और विशेष रूप से कर्मयोग का पालन कर ध्यान में सिद्धि के पथ पर आगे बढ़ा जा सकता हैं।
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ध्यान गहरा होने के लक्षण
जब प्राकृतिक रूप से ध्यान की अवस्था प्राप्त होती हैं। तब डर लगना साधारण हैं ये मन का दर है क्योंकि अहम का अंत हो गया हैं। इस डर पर विजय पाकर ही समाधि में प्रवेश होता हैं।
- भौतिक जगत से वैराग्य हो जाता हैं।
- मन को सत्य के मार्ग का बोध होना ।
- त्यागने योग्य डर लगना ।
- ध्यान में गहरा उतरने से डर लगना।
- सतर्क हो जाना।
- शरीर में झटके आना।
- निष्काम कर्म में आनंद आना।
- साकम कर्म भावना से मुक्ति।
- विचार को नियंत्रित नहीं कर पाना।
- अनावश्यक त्यागने योग्य विचार आना।
ये सभी लक्षण मन के है, ब्रह्म का कोई गुण नहीं वह निर्गुण है। समाधि प्राप्त होने पर यह लक्षण भी समाप्त हो जाते हैं।
अवश्य पढ़े >> “अहम ब्रह्मास्मि” वाक्य क्या है.
निष्कर्ष ;
इस लेख में ध्यान करने के लिए कर्मयोग का महत्व बताया है केवल कर्मयोग से ही ध्यान संभव है।ध्यान को केवल वह नहीं वह नहीं समझना चाहिए जिसे पूरी तैयारी से किया जाए , ये प्राकृतिक घटना है जो कभी भी हो सकती हैं । ध्यान की अवस्था प्राप्त होने पर मन और अहम समाप्त हो जाता है । और ब्रह्म स्वरूप की प्राप्ति होती हैं।
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