Jivan Ka Satya Kya Hai – जीवन का सत्य क्या हैं?
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Jivan Ka Satya Kya Hai – जीवन का सत्य क्या हैं?

Jivan Ka Satya Kya Hai
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अध्यात्म में सत् (परम सत्य) कहां या बताया नहीं जा सकता बल्कि सत् को केवल उपलब्ध हुआ जाता हैं। सत् को उपलब्ध होना दिव्य अनुभूति हैं। इसे सम्बोधन के लिए समाधि, मोक्ष, परमगति, मुक्ति इत्यादि शब्द हैं।

इस संसार में जो अजन्मा, अंतरहित, शाश्वत तत्व है, वह सत् कहा जाता हैं, सत्  मन, बुद्धि और इंद्रियों के द्वारा नहीं जाना जा सकता हैं।

मन बुद्धि इन्द्रियों के साथ संपूर्ण भौतिक शरीर नश्वर हैं, भौतिक संसार भी नश्वर हैं , परंतु सत् (परम सत्य) अजन्मा, शाश्वत हैं।

भौतिक संसार में में जो जन्म लेता है या उत्पन्न होता हैं, वह समय के साथ अपने अंत या मृत्यु के पथ पर आगे बढ़ता हैं। जीवन का मिथ्या (असत्य) है  , मृत्यु अटल और शाश्वत हैं, किसी न किसी दिन यह घटना घट ही जायेगी मृत्यु जीवन का सत्य हैं।

परंतु जीवन और मृत्यु से परे परम सत्य हैं, परम सत्य को केवल प्राप्त हुआ जाता हैं, मृत्यु समय में होने वाली एक घटना है इसे ठुकराया नहीं जा सकता । किंतु परम सत्य समय से परे है। परम सत्य को जीवन में किसी भी समय प्राप्त हुआ जा सकता हैं और जीवन भर परम सत्य को प्राप्त होने से वंचित रहना भी संभव हैं।

भौतिक संसार की आसक्तिया, अहंकार, सम्पूर्ण संसार का भोक्ता बनना और कर्तव्यों के बंधन में रहना परम सत्य से वंचित रखती हैं । परम सत्य से वंचित होकर केवल मिथ्या ही हैं। 

परम सत्य को प्राप्त होना एक अनुभूति हैं यह अनुभव समस्त भौतिक आसक्तियां , अहंकार और भौतिक संसार से परे हैं, परम सत्य को होना यानी ब्रम्ह स्वरूप (इश्वर) में विलीन हो जाना। निराकार, निर्गुण, निर्लेप, शाश्वत अनंत ब्रम्ह का स्वरूप ही परम सत्य है।

भौतिक संसार माया के अधीन है परंतु ब्रम्ह माया के अधीन नहीं बल्कि माया ब्रम्ह के अधीन हैं। समस्त संसार माया के कारण उत्पन हुआ हैं संसार मिथ्या है।

परम सत्य को प्राप्त होकर व्यक्ति वह अवस्था प्राप्त करता है जो समस्त भौतिक संसार से परे हैं इसे मोक्ष कहां जाता हैं। परम सत्य को प्राप्त होने पर मन का अस्तित्व नष्ट हो जाता है या मन आत्मा में विलीन हो जाता हैं। मन न होने से भौतिक शरीर का शरीर का अहंकार ( शरीर को “मैं” मानना ) नष्ट हो जाता है तथा समस्त ज्ञानेंद्रिया और कर्मेंद्रियां की जागरूकता विलीन हो जाती हैं।

परम सत्य (मोक्ष) अवस्था में योगी पुरुष परम चेतना के अस्तित्व को जनता हैं, यह परम चेतना योगी के शरीर से परे होती हैं योगी स्वयं को यह परम चेतना जनता है और शरीर को स्वयं से भिन्न जनता हैं। और इस परम चेतना में ही विलीन हो जाता हैं। और समाधि (मोक्ष) की अवस्था प्राप्त करता हैं।

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यही जीवन का परम सत्य है जिसने जीव वंचित रहते हैं। ध्यान साधना, भक्ति, मंत्र जाप से इस अवस्था का अभ्यास होता है और इसे प्राप्त किया जा सकता हैं।

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