भगवान श्रीकृष्ण युगों–युगों से अपने भक्तों का उद्धार करते आए हैं। जब द्वापर युग में भगवान ने अवतार लिया , तब उनके मामा कंस के कारण शिशु अवस्था में ही संकट के काले बादल उनके और ब्रज वासियों पर मंडरा रहे थे । कंस एक से बढ़कर एक मायावी राक्षसों को भगवान का वध करने भेजता ।
अहंकार में चूर राक्षस भगवान को मृत्यु के घाट उतरना के लिए ब्रज गए । लेकिन भगवान ने इन राक्षसों का वध कर इन्हे परम धाम पहुंचा दिया । चाहिए जानते है कौन-कौनसे थे भाग्यशाली जिनका वध स्वयं भगवान के द्वारा हुआ।
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भगवान श्री कृष्ण ने किन राक्षसों को मारा था?
भगवान श्री कृष्ण ने बाल्यअवस्था से किशोरावस्ता तक कंस के भेजे हुए पूतना, शकटासुर, त्रिनावत, बकासुर, अघासूर, धेनूकासुर, प्रलंबासुर, अरिष्टासुर, केशी ये राक्षसों का वध किया । कंस का वध करने के बाद उन्होंने कई धूर्त राजाओं के साथ युद्ध कर उनका संहार किया।
राक्षसी पूतना – जब कृष्ण की आयु कुछ सप्ताह की ही थी । कंस ने मायावी राक्षसी पूतना को आसपास के सभी गांवों के नवजात शिशुओं का अंत करने का आदेश दिया। पूतना जब गोकुल में आई तब उसने कृष्ण को अपना विषभरा दूध पिलाकर मारने की योजना बनाई।
पूतना एक सुंदर स्त्री का रूप लेकर नंद जी के घर पहुंची थी और यशोदा से उसके नवजात शिशु को अपना दुध पिलाने का आग्रह करने लगी पूतना एक मायावी राक्षसी हैं और वो शिशु की हत्या की योजना बनाकर पहुंची है इस बात से माता यशोदा अनजान थी और यशोदा ने पूतना का आग्रह स्वीकार कर लिया ।
जब पूतना ने विषभरा स्तन भगवान के मुख में दिया तब बालकृष्ण उसका दूध पीने लगे पूतना को बहुत पीड़ा होने लगी और वो चिल्लाकर आकाश में उड़ गए और कृष्ण को अपने स्तन से छुड़ाने लगी लेकिन कृष्ण ने उसके शरीर का पूर्ण विष पीकर उसका वध कर दिया।
शकटासुर – भगवान कृष्ण की माता यशोदा ने बालकृष्ण को बैलगाड़ी के नीचे छाया में रखा था , दूर से शकटासुर नाम का राक्षस ये दृश्य देख रहा था, मौका पाकर कृष्ण का वध करने की उसके योजना बनाई ।
शिशु को छाया में रख कर माता यशोदा ने शिशु से नजरे हटा ली, मौका पाकर राक्षस कृष्ण की ओर बढ़ने लगा लेकिन कृष्ण ने बैलगाड़ी को पैर लगाया और बैलगाड़ी बिजली सी गति से जाकर सीधा राक्षस को जाकर लगा जिससे शकटासुर की मृत्यु हो गई।
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त्रिनावत – कंस ने त्रिनावत को बालकृष्ण का वध करने के लिए गोकुल भेजा, त्रिनावत भी एक मायावी राक्षस था और एक विशाल बवंडर बनकर बड़े गांवों और को कुछ ही पल में नष्ट कर सकता था।
जब त्रिनावत गोकुल पहुंचा तब वो बालकृष्ण को आकाश में ले गया बालकृष्ण ने अपना वजन बहुत बढ़ा लिया जिस कारण त्रिनावत की गति धीमी हो गई, बाद में बालकृष्ण ने त्रिनावत का गला दबा कर उसका वध कर दिया।
बकासुर – त्रिनावत के मृत्यु का समाचार कंस तक पहुंचते ही कंस ने बकासुर को बालकृष्ण का वध करने गोकुल भेजा, बकासुर की एक अत्यंत बलशाली राक्षस था और एक विशाल बगुले की तरह बकासुर का शरीर था।
कृष्ण, बलराम, और अन्य ग्वालों के साथ थे तब बकासुर ने मौका पाकर कृष्ण को अपने चोंच में दबा दिया। लेकिन कृष्ण ने अपने दोनों हात से बकासुर के चोंच को तोड़ कर बकासुर का वध कर दीया।
अघासुर – अघासुर का शरीर किसी गुफ़ा जितने बड़े अजगर की तरह था । कृष्ण को का वध करने के अघासुर ब्रज में गया । अघासुर ने बाल-ग्वालों के गाय चराने के जगह अपना गुफा जैसा मुंह खोल के बाल-ग्वालों का प्रतीक्षा करने लगा । जब ग्वाल और कृष्ण के साथ गायों को चराने गए उन्हें नई बनी गुफा को देख कर उत्सुकता हुई और वे इसे गुफा समझकर अघासुर का जबड़े के अंदर चले गए,
भगवान अघासुर को योजना से अनजान नहीं थे । वे जानते थे सब ग्वालों के अंदर जाने पर वह अपना जबड़ा बंद कर देगा। सबके अंदर जाने के बाद अघासुर ने जबड़ा बंद कर दिया। भगवान ने अपने शरीर का आकार बड़ा किया और अघासुर का जबड़ा फाड़ कर सभी ग्वालों को बाहर निकाला ।
धेनुकासुर – धेनुकासुर और उसका साथी विशाल घोड़े या गढ़े की तरह शरीर के थे। वे दोनों ही भयानक राक्षस थे। महाराज कंस के आदेश पर धेनुकासुर अपने साथी के साथ यमुना किनारे गया कृष्ण ने अपने बड़े भाई बलराम के साथ मिलकर उन मायावी राक्षसों का वध कर दिया ।
प्रलंबासुर – बाल कृष्ण और ग्वाल बाल खेल रहे थे । जो इस खेल में हार जायेंगे उन्हें जितने वाले ग्वालों को कंधे पर उठाकर घूमना होंगा । प्रलंबासुर ने यह सुन एक बाल ग्वाल का रूप ले लिया और वह बलराम से हार गया । उसे अब बलराम को कंधे पर उठाकर घूमना था । प्रलंबासुर ने बलराम कंधे पर उठाकर बाकी ग्वालों से दूर ले गया और अपने वास्तविक राक्षसी रूप में आ गया बलराम में प्रलंबासुर में सर पर मुक्का मारा, जिससे प्रलंबासुर खून की उल्टी कर मारा गया ।
शंखचूड़ – शंखचूड़ नामक राक्षस गोपियों का अपहरण कर भाग रहा था । कृष्ण ने उसका पीछा किया और उसे पकड़ कर मुक्के से उसके मस्तक पर प्रहार किया ।
अरिष्टासुर – अरिष्टासुर का शरीर विशाल और शक्तिशाली सांड के तरह था । अरिष्टासुर ब्रीज में आ गया । अरिष्टासुर के भय से सभी ब्रजवासी हड़बड़ा गए और प्राण बचाने के लिए उधर भागने लगे । भगवान श्री कृष्ण ने अरिष्टासुर ने श्री कृष्ण पर उसके सींगों से प्रहार किया लेकिन श्री कृष्ण ने उसके सिंग पकड़ कर तोड़ दिए और उसे गीले कपड़े के तरह घुमाकर जमीन पर पटक दिया ।
केशी – केशी घोड़े की तरह शरीर का राक्षस था लेकिन ये घोड़े से चार गुना बड़ा और शक्ति शाली था । केशी ने अपने अगले दो पैरो से कृष्ण पर प्रहार किया लेकिन कृष्ण ने उसके पैर पकड़ कर उसे जमीन पर पटक दिया और उसके जबड़े में हात डाल कर उसका गला बंद किया।
भगवान श्री कृष्ण ने अपने बाल्यावस्था से किशोरावस्था में इन राक्षसों का वध कर दिया और अपने पूर्ण जीवन काल में उन्होंने और धूर्त राजाओं और राक्षसों का वध किया।
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