मन और आत्मा में क्या अंतर है?
आत्मा और मन मिलकर जीवात्मा कहीं जाति हैं परंतु आत्मा जीवात्मा से भिन्न हैं, जीवात्मा ही मन के ना होने से यह पवित्र आत्मा होती हैं। आत्मा शुद्ध होती हैं। मन के कारण अहंकार होता
आत्मा और मन मिलकर जीवात्मा कहीं जाति हैं परंतु आत्मा जीवात्मा से भिन्न हैं, जीवात्मा ही मन के ना होने से यह पवित्र आत्मा होती हैं। आत्मा शुद्ध होती हैं। मन के कारण अहंकार होता
Bhagwan kahan rahte hain हम अपने आस पास की प्रकृति जीवन को देखते हैं तो मन में यह प्रश्न आना साधारण हैं की इस की रचना किसने की होंगी। चंचल मन के कारण ये भी
यह मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” ज्यादातर कृष्णभक्तों और हरिभक्तों का प्रिय मंत्र है यह प्रमुख वैष्णव मंत्र है, इस मंत्र का शाब्दिक अर्थ, मंत्र का महत्व और नियमित जाप करने के लाभ यहां जानिए…
अध्यात्म में सत् (परम सत्य) कहां या बताया नहीं जा सकता बल्कि सत् को केवल उपलब्ध हुआ जाता हैं। सत् को उपलब्ध होना दिव्य अनुभूति हैं। इसे सम्बोधन के लिए समाधि, मोक्ष, परमगति, मुक्ति इत्यादि
भगवान शिव के अनन्य भक्त शिव का स्मरण करते है; वे “ॐ नमः शिवाय” इस मंत्र का जाप करते है | यह मंत्र बहुत ही शक्तिशाली और महत्वपूर्ण मंत्र माना जाता है | इसका जाप
‘राम’ नाम चारों युगों में जपा जाता हैं, भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्री राम का जन्म त्रेतायुग में हुआ था परंतु ‘राम’ नाम जाप उनके जन्म के पूर्व से ही जपा जाता हैं, राम
Shri krishna virat roop भगवान श्रीकृष्ण के विराट रूप को विश्वरूप भी कहां जाता हैं, सम्पूर्ण जगत, अनंत ब्रम्हांड, तीनों लोक भगवान के इस अनंत व्याप्त रूप में समाया हुआ हैं। भगवान के इस रूप
मृत्यु किस स्थिति, स्थान और समय पर हो जाएं कोई नहीं कह सकता, जितना कोई साधारण व्यक्ति मृत्यु के बारे में सोच सकता है और जानता है, मृत्यु के पश्चात जीव संसार से चले जाते
बंधन क्या होता हैं ? बंधन का अर्थ बंधन अलग-अलग प्रकार का हो सकता है, लेकिन बंधन का अर्थ केवल एक ही है, जो मुक्ति से वंचित रखता है उसे बंधन ही कहां जाएंगा,अगर मुक्ति
अहंकार करना उचित नहीं होता अहंकार को एक शत्रु भी कह सकते हैं, यह शत्रु मन बुद्धि पर अधिकार कर लेता हैं, व्यक्ति को पता भी नहीं चलता की अहंकार उसे अज्ञानता घोर अंधकार में