मत्स्य अवतार भगवान के दशावतार में से पहला अवतार हैं। यहां भगवान विष्णु एक मछली के रूप में अवतरित हुए थे, लेकिन यह मछली कोई साधारण मछली जीव नहीं थी यह साक्षात भगवान विष्णु का पहला अवतार था ।
भगवान विष्णु जब सृष्टि पर अवतरित होते हैं, अधर्म का वर्चस्व समाप्त होता हैं, और धर्म पुनः स्थापित होता हैं। धार्मिक ग्रंथों में भगवान विष्णु के कुल 24 अवतारों का वर्णन हैं। आसुरी गुणों वाले व्यक्ति और दृष्ट राक्षस सदैव धर्म, अहिंसा, साधुपुरुष और मानवता को ठेस पहुंचाते हैं। भगवान विष्णु ने युगों-युगों में अवतार लेकर ऐसे लोगों और असुरों को पाप से मुक्त किया हैं।
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भगवान विष्णु को त्रिदेवोंमें से सबसे दयालु माना जाता हैं। श्रीविष्णु सदैव अपने भक्तों पर करुणा और प्रेम बरसाते हैं। उनका स्वरूप अति सुंदर और मनोहारी हैं। भक्त श्रद्धाभाव से विष्णु के विग्रह की पूजा करते हैं। और अतुलनीय नामजप कीर्तन कर भगवान विष्णु के प्रेम और करुणा के भागीदारी सुनिश्चित होते हैं।
प्राचीन काल में सत्यव्रत मनु नामक राजा एक धर्मात्मा थे, राजा भगवान विष्णु का भक्त थे। राजा को दर्शन देने लिएं और सप्तऋषि ( सात महान ऋषि) और मनु की आगामी जल प्रलय से रक्षा करने विष्णु मत्स्य रूप में अवतरित हुए। मत्स्य अवतार के साथ एक और कथा भी हैं, जब ब्रह्मा जी निद्रा में थे उनके नाक से हयग्रीव नामक राक्षस की उत्त्पति हुई, हयग्रीव ने वेदों को चुरा लिया और गहरे समुद्र में जाकर छुप गया जिससे संसार से ज्ञान लुप्त होने लगा। बाद में विष्णु के मत्स्य अवतार ने वेदों को पुनः प्राप्त किया और सृष्टि में ज्ञान की वृद्धि हुई।
भगवान विष्णु के पहले अवतार मत्स्य अवतार की कथा पढ़िए।
मत्स्य अवतार की कथा – भगवान श्रीविष्णु का पहला अवतार
पुण्यात्मा राजा मनु भगवान विष्णु के परम भक्त थे, वे पुण्यकर्म यज्ञ, पूजा, होम आदि किया करते थे, एक बार राजा कृतमाला नदी में स्नान करने गए , राजा नदी में खड़े होकर सूर्यनारायण को जल अर्पित कर रहे थे, उन्होंने अपने दोनों हाथों के अंजली में नदी का जल लिया। नदी से जल उठाने के कारण हाथोंकी अंजली में एक छोटी से मछली आ गईं। राजा की आंखे बंद थी वे सूर्य नारायण को जल अर्पण करने के बाद अंजली का जल नदी के वापिस डाल रहे थे उस समय एक आवाज आई।
राजन! मेरी रक्षा कीजिए।
राजा ने अगल-बगल देखा उसे कोई नहीं दिखाई दिया।
फिर आवाज आई राजन! मैं नदी से आपके हाथों के अंजली में आ गई हू अगर आप मुझे वापिस नदी के जल में डाल देंगे तो नदी में होने वाली बड़ी मछलियां मुझे आहार बना लेंगी, कृपा कर मेरे प्राण की रक्षा कीजिए।
राजा ने अपने दयालु स्वभाव के कारण मछली की रक्षा करने के लिए उसे अपने कमंडल में स्थान दिया । अपने वास-स्थान पर वापिस लौट आया।
अगले दिन राजा प्रातः काल में नींद से जाग गया और अपने नियमित ध्यान करने के लिए जाने लगा।
राजा को मछली ने आवाज देते हुए कहां , राजन! यह कमंडल मेरे लिए बहुत छोटा पात्र हैं। मैं यहां हिलाने डुलने के लिएं मुक्त नहीं हूं कृपया मेरी रक्षा कीजिए।
राजा ने देखा और उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ मछली का आकार एक रात में अनपेक्षित तरह से बढ़ गया था। राजा ने एक मटके जितने बड़े पात्र में मछली को डाल दिया, और राजा प्रातः की ध्यान साधना के लिए चला गया ।
अगले दिन की सुबह होने पर मछली का आकार अधिक बढ़ गया था वह मटके जितना बड़ा पात्र भी मछली के रहने के लिए उपयुक्त नहीं था। राजा को आचार्य हो रहा था केवल एक रात में ही इस मछली का आकार तेजी से बढ़ गया था।
अगले दिन जब राजा ने मछली को देखा तो मछली का आकार फिर बढ़ गया , राजा को विस्मय हो रहा था उसने एक सरोवर में मछली को डाला । अगले दिन सरोवर भी मछली के रहने के लिए उपयुक्त नहीं था। बाद में उसने नदी में और फिर अंत में समुद्र में डाल दिया । लेकिन अब समुद्र भी उपयुक्त नहीं लग रहा था।
राजा ने विस्मय भरे स्वर से कहां आप कोन हैं ? आप निश्चित ही कोई साधारण जीव नहीं हैं, यह सागर भी आपके लिए लिए उपयुक्त नहीं हैं, मेरी बुद्धि को विस्मय के सागर में डुबाने वाले आप कोन हैं?
तभी मछली ने अपना मुख खोला जिसमे से भगवान विष्णु प्रकट हुए। विष्णु के दर्शन कर राजा का विस्मय दूर हुआ और बुद्धि स्थिर हो गई। राजा नीचे मुख कर ऊपर की और हात जोड़ कर गुटने के बल बैठ गया ।
भगवान विष्णु ने उत्तर देते हुए कहां मनु! सात दिन बाद सृष्टि में जल प्रलय आने वाली हैं। मैंने तुम्हे, सप्तऋषि अन्य जीवों की इस प्रलय से रक्षा करने ले लिए और वेदों को प्राप्त कर सृष्टि में ज्ञान को प्रकट करने के हेतु मत्स्यरूप में अवतरित हुआ हूं, तुम एक विशाल नाव का निर्माण करों और सभी अन्न और औषधियों के बीज और सप्तऋषि के साथ नाव को इस जल प्रलय से निकाल कर हेमवन पर्वत पर ले । जाना और वासुकी नाग को अपने साथ लेना न भूलना। इतना कहकर मत्स्य वहां से चले गएं
राक्षस हयग्रीव गहरे समुद्र में वेदों के लेकर छिप गया था, जिसकारण सृष्टि से ज्ञान लुप्त होने लगा था। मत्स्य उस समुद्र में गए। हयग्रीव के मत्स्य को देखकर कुछ सोच समझ पाने से पहले ही मत्स्य उसपर प्रहार किया और वेदों को पुनः प्राप्त कर लिया।
इधर मनु ने नाव बनाने का कार्य शुरू कर दिया और कुछ दिन बाद एक विशाल नाव के निर्माण का कार्य पूर्ण हो गया । मनु ने अन्न और औषधियों के बीजों को नाव में रख दिया और सप्तऋषि, वासुकी नाग के साथ नाव में चला गया । ठीक सातवें दिन जल प्रलय आया।
मनु की नाव जल के ऊपर तैर रही थी जल की ऊंची लहरों के कारण नाव का संतुलन बार-बार बिगड़ रहा था। मनु के साथ सत्यऋषियों ने भगवान विष्णु का स्मरण किया , मत्स्य वह पर पहुंच गए मनु और सत्यऋषियों ने वासुकी नाग को मत्स्य और नाव के बीच में बांध दिया और मस्त्य उस नाव को प्रलय से सुरक्षित खींचकर हेमवन पर्वत पर ले गए ।
मत्स्य अवतार की आध्यात्मिक समानता
धर्म ग्रंथों की कथाओं में कई रहस्य होते हैं, इस कथा की एक समानता को ध्यान के समय समझ सकते हैं,
1. जब ध्यान प्रारंभ होता हैं, ये प्रारंभ में बहुत सुक्ष्म होता हैं । विचार एक-एक कर शांत होने लगाते है। यह उस मछली की तरह हैं।
2. जब ध्यान गहरा होता जाता हैं बुद्धि विस्मय होने लगती हैं। और अंत में जब योगी ध्यान की उच्चतम अवस्था को प्राप्त करता हैं वह परमात्मा में विलीन हो जाता हैं। बुद्धि स्थिर हो जाती है, और मन विलीन हो जाता हैं, यह भगवान विष्णु के दर्शन देने के तरह हैं, पश्चात मनु के विस्मय का अंत हो गया था।
3. जल प्रलय माया की तरह हैं और नाव मन की तरह। मन माया में अधीन होता है। ध्यान के दौरान मन के माया के लहरें को बहा जा सकता हैं, उससे ध्यान में हुआ व्यक्ति अशांत हो सकता हैं।
4. वासुकी नाग बोध की तरह हैं, जब व्यक्ति को स्वयं का बोध होता हैं , वह जान जाता ही की वास्तविक शांति और आनंद वह केवल परमात्मा में विलीन होकर ही प्राप्त किया जा सकता हैं। मन की बोध ही उसे परम शांति , परम आनंद तक बिना अशांत हुए ले जाता हैं।
5. हेमवन पर्वत श्रृंखला पर पुनः जीवन ध्यान घटित होने के बाद की अवस्था की तरह हैं। यहां उसके सभी पास नष्ट हो जाते हैं। और वह ताजगी के साथ जीवन की शुरवात करता हैं और अनासक्त होकर निर्णय लेता हैं।
6. जल प्रलय के समय हयग्रीव से वेदों वापिस लाना और सृष्टि को ज्ञान के प्रकाश करना, आत्म–ज्ञान की तरह हैं।
निष्कर्ष
मस्त्य अवतार भगवान विष्णु का पहला अवतार हैं। मत्स्य ने राक्षस हयग्रीव ने ब्रह्म जी से चुराए हुए वेदों को पुनः प्राप्त किया और मनु और सप्तऋषियों की जलप्रलय से रक्षा कर उन्हे सुरक्षित हेमवन पर्वत पहुंचा दिया।