परम सुख या परमानंद क्या होता हैं, ये आपको परमानंद को वास्तविक रूप में पा लेकर ही इसे समझ सकते हैं। लेकिन आपने जीवन में परमानंद नहीं पाया या कभी आपको परमानंद की अवस्था प्राप्त भी हुई हो लेकिन आप इसे समझ नही पाए । आपको पता नही है की परमानंद क्या होता हैं । तो इसका आप एक अनुमान लगा सकते है। लेकिन अनुमान लगाना और वास्तविकता में अनुभव करने में बोहोत अंतर हैं।
सुख क्या है? और सुख और परमानंद में अंतर
कई लोग सुख की अवस्था को ही परमानंद की अवस्था समझ लेते हैं। या सुख की अवस्था की तरह ही परमानंद अवस्था का अनुमान लगाते हैं। लेकिन सत्य ये है की सुख और परमानंद में बोहोत अंतर हैं।
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आपने जीवन में कभी सुख पाया ही होंगा अगर आप सुख की अवस्था पर ध्यान दे, तो आप पाएंगे की सुख किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थिति और घटना पर आधारित हो सकता है, या ये सुख के कारण हो सकते हैं , इनके बिना सुख नहीं पाया जा सकता था और सुख को हमेशा टिकाए भी नही जा सकता।
सुख की अवस्था के उदाहरण ;
- एक दाम्पत्य को संतान की प्राप्ति हुई, वे बोहोत सुख में हैं, उनके सुख का कारण उनकी संतान हैं। थोड़ी देर बाद उनको डॉक्टर से यह पता चलता हैं की उनके संतान को एक बोहोत गंभीर बीमारी हैं जिस कारण संतान की मौत भी हो सकती हैं। उसके बाद दाम्पत्य का सुख थोड़ी ही देर में घोर दुख में बदल जायेगा।
- कोई छात्र अच्छे परीक्षा में अच्छे गुण आए वह बोहोत सुखी हो गया और नाच रहा हैं। यहां इसके सुख का कारण परीक्षा में अच्छे गुण आना हैं। और थोड़ी देर बाद उसको यह पता चला की उसके पड़ोसी के बेटे के परीक्षा में उससे भी ज्यादा गुण आए हैं। तो उसके सुख पर इसका अच्छा असर दिखेगा।
इन उदाहरणों से आप सुख की अवस्था को ठीक समझ गए होंगे, सुख की अवस्था कोई कारण होता है और सुख की अवस्था को हमेशा टिकाए नही रखा जा सकता ।
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परमानंद क्या होता हैं?
अभी आपने सुख की अवस्था को समझा , सुख हो या फिर दुख दोनों असत्य हैं। लेकिन परमानंद सत्य और शाश्वत हैं। परमानंद किसी भी वस्तु, व्यक्ति, स्थिति, और घटना पर आधारित नहीं होता है। परमानंद भौतिक आनंद से अलग हैं परमानंद आपकी भीतर के आत्मा का आनंद स्वरूप हैं। जब योगी पुरुष या स्त्री, कार्यव्यो और भौतिक विषयों की आसक्ति का त्याग कर देते हैं। तो उनकी आत्मा आनन्द स्वरूप जानते हैं, और परमानंद अवस्था में पहुंच जाते है।
भौतिक विषयों की आसक्ति का त्याग कर वे मोक्ष या समाधि की अवस्था प्राप्त करते है मोक्ष या समाधि की अवस्था ही परम आनंद की अवस्था है।
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परमानंद अवस्था कैसी होती है?
अगर आप बिना परमानंद का स्वाद चखे परमानंद की कल्पना करना चाहते है । तो यह कठिन हो सकता है क्योंकि परमानंद कोई मन की अवस्था नही हैं, परमानंद शुद्ध आनंद हैं।
अगर आपको किसी को जलेबी का स्वाद चखवाना है तो आपको उसे जलेबी खिलवानी पड़ेंगी आप सिर्फ शब्दो यह नही कर सकते। जलेबी का स्वाद कैसा है यह तो सिर्फ जुबान ही मन को बता सकती हैं। कान मन को नही बता सकते ।
इसी तरह परमानंद कैसा है यह आत्मा ही जान सकती है। आत्मा को कोई आनंद या परमानंद नहीं होता बल्कि आत्मा ही आनंद है । शुद्ध आत्मा का आनंद स्वरूप ही परमानंद है।
निष्कर्ष ,
परमानंद आत्मा का आनद स्वरूप है यह किसी आनंद की तरह किसी व्यक्ति, स्थिति, वस्तु, घटना इत्यादि पर आधारित नहीं होता बल्कि यह भौतिक से परे परम शुद्ध होता हैं।
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अक्सर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर
आनंद और परमानंद में क्या अंतर है?
आनंद किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थिति, या घटना से आधारित होता हैं, लेकिन परमानंद परम शुद्ध आत्मा का आनंद स्वरूप होना होता हैं।
परमानंद कब होता हैं?
जब योगी का मन कर्तव्यों से, भौतिक विषयों की आसक्ति से, अभी इच्छाओं से मुक्त होता हैं, तो योगी परमानंद की अवस्था प्राप्त करता है।