YOGIN

जीवन को सार्थक बनाने वाली इस यात्रा में आपका स्वागत है!
योग, आध्यात्म, और ज्ञानवर्धक संदेश रोज़ पायें!

Purity of Life Icon Follow

आत्मा किसे कहते हैं? आत्मा का ज्ञान | आत्मा के असत्य

Vaishnava

Aatma kise kahenge

आत्मा शब्द सामने आते ही किसीका चौकन्ना हो जाना स्वाभाविक बात हो गई हैं, इसका कारण समाज में फैली अज्ञानता हैं, लोग आत्मा को लेकर इतने अज्ञान में हैं की वे आत्मा की बात भी नहीं करना चाहते, निश्चित ही उसे दुनिया की सबसे बुरी चीज माना जाता हैं।

लेकिन असल में आत्मा वह नहीं हैं जिसे कहानियों और फिल्मों में बताया जाता हैं, और वह भी नहीं जिसके शमशान, और विरान बंगले जैसी जगहों में होने की बाते की जाती है।

इस आलेख में आत्मा को लेकर समाज में फैले अज्ञान के अंधकार को ज्ञान के प्रकाश से नष्ट करने का प्रयास करेंगे, आत्मा किसे कहते हैं जानेंगे और आत्मा के बारे में फैलाएं जाने वालें झूट का भी खुलासा करेंगे

आत्मा क्या हैं? – आत्मा किसे कहते हैं?

आत्मा सभी जीवों का परमसत्य हैं, आत्मा न तो जीवों के भीतर हैं और न ही जीवों के बाहर हैं। आत्मा भौतिक संसार से परे हैं। वह कोई भी ऐसी चीज नहीं हैं जिसे इन्द्रियों और बुद्धि से पूर्ण जाना जा सके। वह निर्गुण हैं, आत्मा से ही सभी गुण और आकार निकले हैं। आत्मा में ही वे अस्तित्व में रहते हैं और अंत में आत्मा में ही विलीन हो जाते हैं। गुण और आकार होने का सीधा अर्थ हैं भौतिक संसार में अस्तित्व होना लेकिन आत्मा भौतिक संसार की कोई वस्तु नहीं हैं। अगर हम भौतिक संसार में रहकर आत्मा क्या हैं? इसे जानने का प्रयास करें तो इसका का सीधा उत्तर हैं की आत्मा कुछ ही नहीं हैं या जो कुछ नहीं हैं वह आत्मा हैं, भौतिक नजर से वह शून्य हैं परंतु वही नित्य, अविनाशी है।

इसके विपरीत भौतिक संसार, समस्त वस्तुएं, और समस्त जीव कुछ गिनने योग्य गुणों को और आकारों को प्राप्त कर उनका आस्तित्व हैं। अगर अस्तित्वमय जगत के परे कुछ जाने तो वह केवल आत्मा ही हैं।

कुछ लोग आत्मा को बिलकुल नहीं मानते हैं , उनके अनुसार आत्मा अंधश्रद्धा हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो आत्मा में मानते हैं।

आत्मा क्या हो सकती है?  इसको असल में वही लोग जान सकते हैं जो आत्मा को नहीं मानते या वो लोग जो आत्मा की व्याख्या देने के लिए बोधपूर्ण हैं। जहां भौतिक जगत शून्य हो जाता हैं वह शून्यता ही आत्मा हैं। वह लोग शून्य होने को तो मानते हैं, और इसे नकारा भी नहीं जा सकता।

और वे लोग जो आत्मा को मानते हैं, और इसकी कल्पना करते हैं, यह सिर्फ अंधश्रद्धा हीं हैं। क्योंकि भौतिक संसार में रहकर आत्मा के अस्तित्व के तरह की कल्पना और बातें करना बस एक अनावश्यक कल्पना से ज्यादा कुछ नहीं हैं। कल्पना कर आत्मा का बोध नहीं हो सकता यह अनंत हैं जब समस्त कल्पना का अंत हो जाता हैं। अनंत आत्मा का बोध होता हैं। यह बोध भी बस मन को होता हैं की अभी कुछ ऐसा हो गया हैं जिसे मन, इंद्रियां और बुद्धि भी नहीं जान सकते यही आत्मा हैं इसे ही आत्मज्ञान भी कह सकते हैं।

अन्य पढ़े: जीवात्मा आत्मा और परमात्मा में क्या अंतर  हैं?

   Jivan ki Shuddhta    

Purity of Life

Join Us on WhatsApp

अगर आत्मा नहीं हैं तो आत्मज्ञान कैसे प्राप्त होता हैं?

जैसे हमने जाना आत्मा को भौतिक संसार में रहकर जानना संभव नहीं तो अब विस्मित करने वाला प्रश्न आता हैं, किसी व्यक्ति को आत्मज्ञान कैसे प्राप्त होता हैं?

जब व्यक्ति का अहंकार शून्य हो जाता हैं, मन के सभी बंधनों से मुक्ति हो जाती हैं, कोई आसक्ति नहीं होती, और समस्त विचार शांत हो जाते हैं कोई कर्तव्य शेष नहीं होता। इस स्थिति में व्यक्ति शून्य हो जाता हैं। और वह परम ज्ञान को प्राप्त हो जाता हैं, परमज्ञान ही आत्म-ज्ञान हैं। इसे जगत के ज्ञान की तरह इंद्रियों और बुद्धि से नहीं समझा जा सकता हैं बल्कि इसे समस्त अनात्म ज्ञान का त्याग कर उपलब्ध हुआ जाता हैं।

आत्मा को लेकर समाज में अज्ञानता और कहें जाने वाले असत्य

आत्मा को लेकर समाज अज्ञानता के घोर अंधकार में हैं। और वे लोग अज्ञानता पूर्ण बातें भी कहते हैं। ये बिलकुल असत्य हैं।

मृत्यु के बाद आत्मा शरीर से बाहर निकलती हैं

मृत्यु के बाद आत्मा जैसा कुछ बाहर नहीं निकलता हैं। भौतिकता के कारण यह असत्य लोगों के मन में बैंठ गया हैं । आत्मा कोई भौतिक चीज नहीं है जिसका आकार या गुण या रंग हो सकता हैं।

आत्मा के पैर उल्टे होते हैं

आत्मा के पैर ही नहीं होते तो ये उल्टे कैसे हो सकते हैं। पैर सिर्फ जीवों के शरीर का हिस्सा हो सकतें हैं, सर्प, मछली और कुछ अन्य जीवों के पैर भी नहीं होते हैं। कुछ निर्जीव वस्तुओं के भाग को भी पैर कहां जाता हैं, जैसी टेबल, कुर्सी इत्यादि।

इस तरह के और भी असत्य कहें जाए हैं जैसे, आत्मा विरान जगह पर वास करती हैं , गाना गाती हैं, अन्य लोगों को डराकर आनंदित होती हैं और जोर–जोर से हसती हैं इत्यादि.

अकाल मृत्यु होने वाले लोगों की आत्मा संसार में भटकती हैं 

जब मृत्यु हो जाती हैं व्यक्ति का अंत हो जाता हैं। लेकिन आत्मा को शास्त्रों में अमर कहां गया हैं इसका अर्थ यह नहीं की आत्मा शरीर के अंदर होती हैं। या आत्मा पर किसका अधिकार हैं। मृत्यु के बाद व्यक्ति समाप्त हो जाता हैं। उसके मृत्यु का और आत्मा का कोई संबंध नहीं हैं।

आत्मा किसी और व्यक्ति के शरीर के अंदर आ सकती हैं

आत्मा शरीर के अंदर नहीं आ सकती हैं, लेकिन व्यक्ति आत्म-प्राप्त कर स्वयं को शुद्ध आत्मा जान सकता हैं। और अपनी शुद्ध आत्म में परमात्मा के भी दर्शन करता हैं।

कुछ लोग जीवात्मा को आत्मा कह देते हैं।

जीवात्मा और शुद्ध आत्मा में बहुत अंतर हैं । जीवात्मा जीवों को कहां जाता हैं। यह भौतिक वस्तु हैं जीवात्मा बस जीवों का अहंकार या अहम वृत्ति हैं और इनकी सांसारिक विषयों के लिए गति हैं जीवात्मा भौतिक संसार से परे भी नहीं हैं जीवित जीवों को ही जीवात्मा भी कह सकते हैं । जीवों के मृत्यु के बाद शरीर का अंत होता ही हैं, और जीवात्मा का भी विलय हो जाता हैं ।

निष्कर्ष,

आत्मा कोई भौतिक वस्तु नहीं हैं आत्मा परम तत्व की प्राप्ति हैं वह सभी दुखों से परे परमानंद स्वरूप हैं। इंद्रियों, बुद्धि विचारों से इसे जाना नहीं जा सकता बल्कि शून्य होकर आत्मा को उपलब्ध हुआ जाता हैं। समाज में कई लोग आत्मा को लेकर अज्ञान के अंधकार में हैं , और वे आत्मा को लेकर असत्य फैलाए हैं ।

Share This Article

– Advertisement –

   Purity of Life    

Purity of Life

Join Us on WhatsApp

I'm a devotional person, named 'Vaishnava', My aim is to make mankind aware of spirituality and spread the knowledge science philosophy and teachings of our Sanatan Dharma.

Leave a Comment

Email Email WhatsApp WhatsApp Facebook Facebook Instagram Instagram