जब हमें अज्ञान के कारण जीवन के सुख और दुखों का सामना करना पड़ता है। तब आध्यात्मिक ज्ञान, भक्ति और ध्यान से हम इससे मुक्ति प्राप्त सकते है।
भगवान शिव का ध्यान जब हम श्रद्धालु भक्त करते है, तब हम भीतर के दुखों को जागरूकता से हटाने लगते है, और शिवमय अवस्था को प्राप्त करते है, यानी शाश्वत परमआनंद और स्वतंत्रता को उपलब्ध हो जाते है।
यह इस तरह है की जैसे सूर्योदय के समय उगता सूर्य अंधकार को दूर करने लगता है और अंततः समाप्त कर देता है।
शिव का ध्यान कैसे करें
हालांकि भगवान का ध्यान करने के लिए कोई स्थान या समय की अनिवार्यता नहीं होती; आप किसी भी समय ध्यान कर सकते है। लेकिन ज्यादातर साधक ब्रह्ममुहुर्त (सूर्योदय से पहले के समय) में ध्यान का अभ्यास करते हैं, और संध्या काल में सूर्यास्त के समय भी करते है।
इसमें ब्रह्ममुहूर्त को ध्यान साधना करने के लिए उत्तम समय माना जाता है। आपको ध्यान अभ्यास करने के किए आपके अनुसार सही समय को चुनना है, आप कोई भी समय चुन सकते है, जिसमें आप नियमित ध्यान का अभ्यास कर सकें।
भगवान शिव के अनन्य भक्त जो सन्यासी होते है वे निरंतर ध्यान में लीन रहते है उन्हें इसके लिए समय निकालने की आवश्कता नहीं पड़ती। परंतु एक आम व्यक्ति भी प्रामाणिक अभ्यास करके ध्यान में उन्नति और सिद्धि प्राप्त कर सकता है।
शिव का ध्यान करते हुएं शिव महामंत्र “ओम नमः शिवाय” या महा मृत्युंजय मंत्र “ओम त्रियंबकम् यजामहे” या शिव के अन्य मंत्रों में से कोई मंत्र की दक्षिणा ले सकते है। इसमें ध्यान के लिए शिव के पंचाक्षरी मंत्र “ओम नमः शिवाय” बहुत प्रभाव मंत्र हैं। अनन्य शिव भक्त जाप को ध्यान की उत्तम विधि बना सकते हैं।
शिव का मंत्र जाप करते हुएं हम भीतर के कलमशों को दूर करने लगते है जो ध्यान से व्यक्ति को वंचित रखते है।
कोई शिवभक्त साधक जब शिव के शरणार्थी मंत्र के जाप में लीन होता है तो वह मंत्र पर एकाग्र रहता है, जिससे विचार और भावनाओं को शांत किया जाता हैं। जब साधक गहरे ध्यान में लीन रहता है, तो मंत्र में वह आत्म लीन हो जाता है, और भीतर के दिव्यता का अनुभव होता हैं; परमआनंद की प्राप्ति होती हैं ।
कई शिवभक्त शिव का ध्यान करने के लिए शिवलिंग का स्मरण या ‘ ॐ’ या ‘सोहsम’ मंत्र का जाप करते है। मंत्रों का जाप करते हुएं वे विचारों को शन्ति देने का अभ्यास करते है। जिससे तनाव और भय से भी मुक्ति होती है।
शिव के ध्यान करते हुएं अहंभाव से शीघ्र मुक्ति पाई जा सकती है। जब शिव का स्मरण किया जाता है तो भक्त जागरूकता से परम-आत्म (अहंकार रहित चेतना) के प्रती आत्म-समर्पण का आव्हान करते हैं । जो अहंकार की परत को दूर करके मुक्ति पाने की विधि बनती है।
शिव का ध्यान करने की विधियां
यहां मैं आपको शिव के ध्यान में लीन होने ले लिए विधियां बताई हैं जिससे कोई शिव को समर्पित हो सकते है। और वे भक्त अपने जीवन को सार्थक बना सकते है।
- ध्यान करने के लिए एकांत और शांत स्थान को चुनिए।
- शिवलिंग के आगे आसन लगाकर ध्यानात्मक मुद्रा (सुखासन या पद्मासन) में बैठाएं।
- भगवान शिव से हात जोड़कर प्रार्थना कीजिए।
- भगवान शिव के मंत्र का जाप कीजिए जैसे (ओम नमः शिवाय या ओंकार , महा मृत्युंजय मंत्र)
- मंत्र पर एकाग्र चित्त से ध्यान कीजिए, और मन के प्रभाव से मुक्ति का अभ्यास कीजिए।
- ध्यान करते हुएं जागरूकता के साथ मंत्र में लीन रहें।
- नियमित अभ्यास कीजिए।
- अपने अनुसार जितना अधिक समय ध्यान अभ्यास के लिए दे सकते है दीजिए।
- ध्यान समाप्त करते हुएं भगवान शिव को प्रणाम कीजिए
शिव का ध्यान करने के लाभ
भगवान शिव का नियमित ध्यान करने से भक्तों को अद्भुत लाभ होते है । आध्यात्मिक जागरूकता प्राप्त होती है, आत्मिक उन्नति और जीवन की सार्थकता यानी मोक्ष को उपलब्ध हुआ जाता है।
जब हम भगवान शिव का ध्यान करते है तो आत्म की परमगती का आव्हान करते है। ध्यान का नियमित अभ्यास करने वालें साधक माया के बंधनों से मुक्ति प्राप्त करते है और परमानंद प्राप्त करते है।
ध्यान में लीन होकर आत्म के बंधन जो कामुक सुखों से जुड़े होते है, वो समाप्त होने लगते है जिससे स्वतंत्रता की उपलब्धि होती है।
जब ध्यान में कोई साधक सिद्धि प्राप्त करता है तो वह शिव में विलीन होता है; शिव तत्व के साथ एकत्व प्राप्त करता हैं ; जिससे दुखरूपी भौतिकता से मुक्ति होती है, और सर्वोच्च और शाश्वत आत्मिक आनंद प्राप्त होता है।
शिव का निरंतर ध्यान करने वालें साधकों को मानसिक और शारीरिक लाभ भी होते है – इससे तनाव और चिंता, भय से मुक्ति पाई जाती हैं ।
जब आध्यात्मिक उन्नति होती है तो इसका लाभ मानसिक तौर पर भी देखने को मिलता हैं। जिस तरह से सूर्योदय होने से संसार प्रकाशित हो जाता है। आध्यात्मिक जागरूकता प्राप्त होने से मानसिक विकार अंधकार की तरह समाप्त हो जाते है।
इसका शारीरिक स्वास्थ्य पर भी अच्छा ही प्रभाव होता है। इसके रक्तचाप कम रखने में मदद मिलती है, दिल की बीमारियों को दूर रखने में सहायक होता है, रोग प्रतिरोधक शक्ति और पाचन तंत्र पर भी अच्छा असर होते है।
निरंतर भगवान शिव का ध्यान करने के मुख्य लाभ
- आध्यात्मिक जागरूकता मिलती है।
- आत्मज्ञान साक्षात्कार होता है।
- भौतिकता के बंधनों मुक्ति और सर्वोच्च आत्मिक परमआनंद प्राप्त होता है।
- ध्यान में उन्नति और योग की सिद्धि समाधि को प्राप्त हुआ जा सकता है।
- भय, चिंता और तनाव जैसे भीतरी दुखों मुक्ति और मानसिक शांति मिलती है ।
- भीतर के शत्रु (काम क्रोध लोभ मोह ईर्षा और घृणा ) का नाश होता है।
- आत्म और सच्चिदानंद (सत् -चित्-आनंद) स्वरूप शिव के साथ एकत्व प्राप्त किया जाता है। मोक्ष की प्राप्ति होती है
शिव के ध्यान का महत्व
शिव का ध्यान करने वालें शिव को प्राप्त होकर शिवमय हो जाते है। भगवान शिव परमात्मा है जो समग्र अस्तित्व का सार है। भगवान शिव का ध्यान करने वालें अनन्य भक्त जीवन की सार्थकता – मोक्ष को प्राप्त करते हैं। जिससे उन्हें जीवन और मरण के दुखरुपी संसार से मुक्ति मिलती है और आत्मतत्व शिवतत्व में विलीन हो जाता हैं ।
शिव वह मूल अज्ञेय तत्व है जिन्हे जाना नहीं जा सकता परंतु वह सर्वज्ञ (सब को जानने वालें है)। वह समग्र अस्तित्व में व्याप्त होकर भी सबसे परे और परम सत्य और सर्वोच्च सत्ता हैं।
शिव को प्राप्त करने वालें अमरत्व को प्राप्त करते है वह न जन्म लिए होते है और न उनकी मृत्यु होती है। शिवमय होना वह है – जो योगियों को मृत्यु और सभी दुखों के चुंगल से निकाल देता है।
जब हम ध्यान करते है तो अपने विचारों और भावनाओं की शांति को साधने की चेष्टा करते है। और शिव का ध्यान करते हुएं हम अपने अहंभाव से छुटकारा पाते है जिससे हमारा अस्तित्व होते हुए भी हम उसे मिटा देते है। असल में जिसे हम अहम “मैं” मानते है वह चिदानंदरूप (विशुद्ध चेतना आनंद स्वरूप) शिव है। लेकिन आत्मज्ञान के आभाव और अहंकार के प्रभाव के कारण उसे शरीर मान लेते है।
क्योंकि समग्र अस्तित का सार शिव है वह संपूर्ण और पूर्ण ज्ञान है। शिव को प्राप्त होने के लिए इस अज्ञान अहंभाव और कर्ताभाव के मायाजाल से निकलने की आवश्कता है।
और जब हम शिव ध्यान करते तो हम इन्हीं माया के अज्ञान की परतों को हटाने का अभ्यास करते है। यह प्रक्रिया एक दिन, दो दिन में नहीं पूरा हो सकता। नियमित ध्यान का अभ्यास करते हुएं हम धीरे-धीरे उस अज्ञान को हटाने लगते है और एक दिन पूरी तरह से नष्ट कर देते है और तब वह मुमुक्षु (मोक्ष का साधक) या शिवभक्त शिवमय हो जाता है, यानी की ध्यान और योग की सर्वोच्च सिद्धि समाधि को प्राप्त करता हैं।