अहंकार करना उचित नहीं होता अहंकार को एक शत्रु भी कह सकते हैं, यह शत्रु मन बुद्धि पर अधिकार कर लेता हैं, व्यक्ति को पता भी नहीं चलता की अहंकार उसे अज्ञानता घोर अंधकार में ले जा रहा। जिसमे उसकी हानि होना निश्चित हैं।
अहंकार में चूर हुआ अहंकार को नहीं जान और हरा पाता हैं , लेकिन भगवान विष्णु अहंकार का अच्छी तरह से सर्वनाश करना जानते हैं, भगवान विष्णु ने युगों-युगों में अपने भक्तों को अहंकार के जाल से मुक्त किया हैं, और प्रेम, भक्ति का अमृत-पान करवाया हैं.
एक बार भगवान विष्णु के भक्त और वाहन पक्षीराज गरूड़ पर अहंकार हावी हो गया था लेकिन भगवान विष्णु ने इस अहंकार का सर्वनाश कर गरूड़ को बंधन मुक्त किया। चलिए जानते है पक्षीराज गरूड़ के अहंकार का विनाश करने वालें भगवान विष्णु की कथा.
गरूड़ का अहंकार, भगवान विष्णु की कथा
भगवान विष्णु का भक्त शेषनाग का एक अत्यंत बलवान और पराक्रमी पुत्र था, मणिनाग, मणिनाग ने कठोर तपस्या, भक्ति और आराधना कर देवाधिदेव भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया, और गरूड़ से निर्भय होने का वरदान प्राप्त कर लिया, भगवान शिव ‘तथास्तु’ कहकर उन्होंने मणिनाग को निर्भय कर दिया।
गरूड़ से निर्भय होकर मणिनाग भगवान विष्णु के निवासस्थान क्षीरसागर ने निकट विचरण करने लगा, पक्षीराज गरूड़ की दृष्टि मणिनाग पर पड़ी और वे मणिनाग का कृत्य देखकर क्रोधित हो गए । पक्षीराज गरुड़ ने मणिनाग पर पंजों से प्रहार किया प्रतिउत्तर मणिनाग ने भी गरूड़ पर प्रहार किया दोनों में कुछ समय तक भयंकर युद्ध चला और अंत में पक्षीराज गरूड़ मणिनाग पर हावी हो गए, गरूड़ ने मणिनाग को बंधी बनाकर एक स्थान पर बंद कर दिया।
मणिनाग काफी समय से कैलाश पर भगवान शिव के दर्शन के लिए नही आया था, भगवान शिव वाहन नंदी महाराज ने इस पर विचार किया और भगवान शिव से कहां।
हे स्वामी! मणिनाग को कैलाश पर आपका दर्शन करने को आए बोहोत समय हो गया हैं, लगता है मणिनाग पर कोई आपत्ति आ गई है, पक्षीराज गरूड़ ने संभवतः मणिनाग का वध कर दिया होंगा या उसे बंधी बना लिया होंगा।
भगवान शिव ने नंदी से कहां – नंदी! मुझे मणिनाग का ध्यान हैं, गरूड़ ने उसे क्षीरसागर में बंधी बनाकर रखा है, तुम शीघ्र ही क्षीरसागर जाकर भगवान विष्णु की स्तुति और मेरी और से सर्प को मुक्त करने की प्रार्थना करो। भगवान विष्णु अवश्य ही उसे मुक्त कर देंगे तब तुम उसे कैलाश ले आओ।
नंदी महाराज भगवान शिव का संदेश लेकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे नंदी महाराज ने भगवान विष्णु के स्तुति की और मणिनाग को मुक्ति की प्रार्थना की।
भगवान ने गरूड़ से कहां – वैनतेय! तुम शीघ्र ही सर्प को मुक्त कर उसे नंदी महाराज को सौप दो, भगवान विष्णु से यह आज्ञा सुन पक्षीराज गरूड़ को भगवान विष्णु पर क्रोध आ गया और क्रोध पूर्ण भाव से उसने कहां. स्वामी! आप मेरे पराक्रम की स्तुति तो कभी करते नही हैं, कभी कुछ उपहार भी देते नही हैं , मेरे द्वारा प्राप्त किए हुए को भी मुझसे हर लेते हैं। आप स्वयं ही हमेशा महाशक्तिशाली, पराक्रमी है मुझे दिखाते रहते हैं। मेरे ही कारण तो आप सदा विजयी रहते है।
भगवान विष्णु ने हंसते हुए कहां – तुम अवश्य ही पराक्रमी और बलशाली हो तुम मुझे पीठ पर उठाकर अत्यंत वेदवान गति से उड़ते हो तुम्हारे कारण ही मेरी सदा विजय हुई है, और होंगी भी, तुम्हारे बल पर कभी संदेह ही नहीं किया जा सकता।
तुम मेरे निकट आओ और मेरी कनिष्ठिका अँगुली का भार अपने सिर पर धारण करो।
गरूड़ भगवान विष्णु के निकट गया और अपने सिर पर कनिष्ठिका अँगुली धारण करने के लिए तैयार हो गया। जैसे ही भगवान विष्णु ने कनिष्ठिका अँगुली उसके सिर पर रखी उसका सिर पेट में दब गया और पेट पैरो में दब गया, तब भगवान विष्णु ने कनिष्ठिका अँगुली को उसके सिर से निकाला, उसका संपूर्ण शरीर चूर हो गया।
गरूड़ का अहंकार नष्ट हो गया उसने भगवान विष्णु से क्षमा मांगते हुए कहां जगन्नाथ! मुझ अपराधी पक्षी की रक्षा करो प्रभो! सम्पूर्ण लोकों को धारण करने वाले तो आप ही हैं, हे जनार्दन ! हे जगन्नाथ ! मुझ दीन-दुखी की रक्षा करो कहकर भगवान की प्रार्थना की।
देवी लक्ष्मी ने कहां प्रभु! गरूड़ आपका सेवक है उसे क्षमा कर दीजिए.
भगवान विष्णु ने कहां हे प्रिय! तुम अब अहंकार रहित हो चुके हो तुम अवश्य ही पुनः वज्रसदृश देहवाले और वेगवान् हो जाओगे, तुम देवाधिदेव महादेव के दर्शन के लिए कैलाश जाओ । उनके दर्शन कर तुम्हारे कष्ट नष्ट हो जाएंगे।
नंदी महाराज, मणिनाग और गरूड़ तीनों कैलाश की ओर निकल पड़े, भगवान शिव की गौतमी गंगा में स्नानकर कर पक्षीराज गरूड़ पुनः वज्रसदृश देहवाले और वेगवान हो गए।
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