‘ॐ’ (ओम) सनातन धर्म का अद्वितीय महामंत्र जो जिसमे सम्पूर्ण ब्रह्मांड का रहस्य है, यह अनंत ज्ञान (परमात्मा) का प्रतिनिधित्व करता है | संपूर्ण भौतिक और जो भौतिक से परे है वह आत्मा को भी ‘ॐ’ केवल यह महामंत्र सूचित करता हैं | यदि आप तार्किक रूप से सोचते है, तो आपको ‘ॐ’ के इस रहस्य को समझने में थोड़ी कठिनाई हो सकती है की आखिर एक मंत्र सम्पूर्ण ब्रह्मांड और जो इसकी आत्मा को भी ओम कैसे सूचित कर सकता है | लेकिन अगर आप इस लेख को पूर्ण पढ़ लेंगे तो आपको इसका उत्तर मिल जायेगा |
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‘ॐ’ (ओम) क्या है?
‘ॐ’ सनातन धर्म का एक महामंत्र है | इस ध्वनि को ओंकार कहा जाता | वेदों में इसे ही प्रणवअक्षर कहा गया है |
‘ॐ’ में तीन ध्वनियां है, अ, उ और म । इसे आकार, उकार और मकार कहा जाता है | इसकी उत्पत्ति भगवान शिव के मुख से हुई है | भगवान शिव को परब्रह्म माना जाता है |
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‘ॐ’ (ओम) में ही संपूर्ण ब्रह्मांड को कैसे सूचित करता है?
‘ॐ’ (ओम) महामंत्र अ, उ और म को अपने भीतर संजोए रखता है, इसे आकार उकार और माकर कहा जाता है|
अ : यह ध्वनि आरंभ का प्रतिनिधित्व करती है
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उ : यह ध्वनि उठने का प्रतिनिधित्व करती है |
म : यह ध्वनि मिटने का प्रतिनिधित्व करती है |
ये प्रकृति के तीन अटल सत्य है | आरंभ और उठने से लेकर मिटने तक | ‘ॐ’ (ओम) संपूर्ण भौतिक ब्रह्मांड में जो कुछ समाया हुआ है और इस के आत्मा का संकेत भी देता है | ब्रह्मांड की आत्मा ब्रह्म है |
‘ॐ’ (ओम) महामंत्र निर्गुण ब्रह्म का संकेत करता है
साधकों! ब्रह्म इस जगत के माया परे इस जगत का कारण है , वह निर्गुण, निराकार चैतन्य है | इसका वर्णन शब्दों से परे है, वह वाणी की विषय नहीं है परंतु योग साधना से ब्रह्म को साधा जा सकता है | ऋषियों ने योग साधना से इस जगत के मोहजाल से मुक्त होकर उस जगत कारण ब्रह्म को प्राप्त किया है और जैसा उन्होंने साधा वैसा ही लिख और बोल दिया | इन ऋषियों को दृष्टा कहा जाता है |
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योग साधना से व्यक्ति अपने चित्त और मन के बंधन से मुक्त होकर वास्तविक और सच्चे स्व का ज्ञान प्राप्त हो सकता है | वह अच्छा स्व ही ब्रह्म है इसका अनुभव दिव्य है जिसे योग से साधा जाता है |
जब कोई योगी चित्त और मन के बंधनों से आत्मा यानी स्व (चेतना) को मुक्त कर लेता है वह इस परम वास्तविकता को प्राप्त हो जाता है जो जीवों के मन के परे सर्वोच्च ब्रह्मांडीय स्व है | उस सर्वोच्च स्व का संकेत भी ‘ॐ’ (ओम) से प्राप्त होता है |
जिसमे सृष्टि विद्यमान है वह ब्रह्म है | हो माया के तीनों गुणों से परे है | अ, उ और म ये तीन ध्वनियां माया के तीन गुणों का दर्शाती है |
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अ सतोगुण को दर्शाता है
उ: रजोगुण को दर्शाता है
म: तपोगुण को दर्शाता है
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सभी जीव जंतु इन गुणों के अधीन होते है | परंतु वह योगी जो सर्वोच्च स्व को प्राप्त होता है; इन तीनों गुणों से परे होता है | वह किसी गुण के अधीन नहीं होता |
ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेव का संकेत भी ‘ॐ’ से |
सनातन धर्म में सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा है और सचालक विष्णु और संहारक महेश| इनका संकेत भी ‘ॐ’ से मिलता है |
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अ: आरंभ यानी ब्रह्मा जी
उ: संचालक यानी विष्णु
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म : संहारक यानी महेश
‘ॐ’ निराकार संकेत करता है|
‘ॐ’ की ध्वनि निराकार का भी संकेत देती है । निराकार ही सभी अकराओं का आधार होता है | सृष्टि के सभी आकार निराकार से ही उत्पन्न होते है और निराकार में ही विलीन हो जाते है |
ॐ की ध्वनि ही सभी ध्वनि की जनक है जो कोई भी ध्वनि ॐ से परे नहीं है आप स्वयं इसका परीक्षण कर जान सकते है | वे ‘ॐ’ में ही आरंभ होते है, उठते है और इसी में विलीन हो जाते है |
इसी तरह सृष्टि के सभी आकार निराकार ब्रह्म में ही उत्तपन्न होते है अस्तित्व में आते है और विलीन हो जाते है |
भागवत गीता में ‘ॐ’ ओम का क्या महत्व कहा गया है?
भागवत गीता योग और भक्ति पर भगवान द्वारा दिया गया ज्ञान है | भगवान कृष्ण अपने सखा और शिष्य अर्जुन को ‘ॐ’ (ओम) का महत्व बताते है|
जब कोई ‘ॐ’ (ओम) का जाप कर योग अभ्यास करता है वह शीघ्र ही भवसागर के बंधनों से मुक्त हो जाता है |और जब कोई अपने प्राण त्यागते समय ‘ॐ’ (ओम) उच्च करता है वह मोक्ष को प्राप्त हो जाता है |
साधकों ! ‘ॐ’ (ओम) मंत्र उस नाव की तरह है जो किसी समुद्र में डूबते व्यक्ति को किनारे पर ले जाती है | अगर कोई साधक ‘ॐ’ (ओम) जाप कर योग अभ्यास करता है वह इस मायारूपी संसार से मुक्त हो सकता है और अपने अच्छे स्वरूप को प्राप्त कर सकता है |
‘ॐ’ (ओम) का वेदों में महत्व
वेदों के कुछ श्लोक है जो ‘ॐ’ (ओम) का प्रणव अक्षर कहकर वर्णन करते है|
माण्डूक्योपनिषत् ||१||
‘ॐ’ अक्षर संपूर्ण है। वर्तमान, भूत और भविष्य भी ओंकार है तथा इनके परे जो कालातीत (ब्रह्म) है वह भी ओंकार ही है।
इस उपनिषद में जागृत स्थानों के वैश्वनार में पहला अकार, दूसरा उकर तेजस स्वप्न स्थानों की बुद्धि में और जो न जाग्रत है और न सुप्त है, ऐसा तीसरा मकर प्रगना है। संक्षेप में, प्राणवाक्षर ओम् अकार, उकर और मकर का अद्वैत रूप है। यह अक्सर उपनिषदों में देखा जाता है। आकृति, उकर और मकर के संयोजन के रूप में, प्रणव रूप में ब्रह्मा बनने की भावना भी यहाँ दिखाई देती है।
याज्ञवल्क्यः
यथा पर्णं पलाशस्य शङ्कुनैकेन धार्य्यते । तथा जगदिदं सर्व्वमोङ्कारेणैव धार्य्यते ॥ इति याज्ञवल्क्यः ।
अर्थ: जगत के सभी को जीव जंतुओं को ॐ (ओम) धारण करता है।
यहां परमात्मा को ॐ मंत्र से सूचित किया है
आत्मबोधोपनिषत् प्रथमोऽद्याय १॥ :
यहां ॐ को ब्रह्मा विष्णु और महेश का अद्वितीयता कहा गया है। यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश ये तीनों ।ॐ में ही स्थित हैं।
शिव पुराण के अनुसार शिव-शक्ति का संयोग आत्मा है। शिव की पराशक्ति चित्त की शक्ति प्रकट होती है। आनंद की ऊर्जा चित शक्ति की शक्ति से उत्पन्न होती है, इच्छा शक्ति से आनन्द की शक्ति से इच्छाशक्ति से, पांचवीं क्रिया इच्छाशक्ति से ज्ञानशक्ति और ज्ञानशक्ति से प्रकट हुई है। इनसे निवृत्ति आदि की कलाएँ उत्पन्न हुई हैं। चित शक्ति की शक्ति और आनंद की शक्ति से बिंदु की अभिव्यक्ति का वर्णन किया गया है। क्रिया शक्ति से ‘अ’ अकार की उत्पत्ति, ज्ञान शक्ति से, ‘ उ ‘ ऊकार और इच्छाशक्ति से ‘म’ मकार दिखाई दी है। इस प्रकार प्रणव यानी ॐ का जन्म होता है।
मारकंडे पुराण :
मारकंडे पुराण में योग ऋषि दत्तात्र्य जी ने बताया है; व्यक्ति को ओम रूपी धनुष पर अपनी आत्मा रूपी तीर को अपने उस लक्ष्य परमात्मा की और चला देना चाहिए।
भगवान शिव के मुख से हुई ‘ॐ’ (ओम) की उत्पत्ति?
‘ॐ’ की उत्त्पति भगवान शिव से हुई है | अतः भगवान शिव को परब्रह्म माना जाता है | परब्रह्म ही सर्वोच्च सत्ता है, वह ब्रह्म से भी परे और परम् है और ब्रह्म सृष्टि का कारण है |
परब्रह्म वाणी का विषय नहीं है | परन्तु वह सत्ता ही अंतिम सत्य है |
‘ॐ’ (ओम) के जाप से योग अभ्यास कैसे करें?
योग से ही जीवन के अच्छे अर्थ की खोज की जा सकती है और उसे पाया जा सकता है | योग से न केवल आध्यात्मिक बल्कि मानसिक और शारीरिक लाभ भी होते है | योग से जीवन को शुद्ध और समृद्ध किया जा सकता है | कई साधकों को योगाभ्यास करने के लिए ओम महामंत्र का जाप लगना सुझाया जाता है | योग अभ्यास को यह विधि जानलेते है
1. योगाभ्यास करने के लिए एक एकांत और शांत स्थान का चुनाव कीजिए
2. योग आसन जमीन पर पीछा दीजिए
3. योग मुद्रा में बैठे जैसे पद्मासन या सुखासन
4. ‘ॐ’ (ओ३म्) मंत्र का उच्चार कीजिए, मंत्र का उच्चार मन में भी किया जा सकता है या मुख से धीमी ध्वनि निकाल कर भी किया जा सकता है |
5. मंत्र के ध्वनि पर ध्यान केंद्रित कीजिए ।
6. नियमित योग अभ्यास कीजिए।
‘ॐ’ (ओ३म्) का जाप कर नियमित योगाभ्यास से साधक को आध्यात्मिक, मानसिक और भौतिक लाभ
आध्यात्मिक लाभ
‘ॐ’ इस मंत्र का जाप युगों योगों से ही चला आ रहा है | कई ऋषियों ने कहा है की यह मंत्र भौतिकता से मुक्ति पाकर परमात्मा में विलीन होने का साधन है | जिस तरह एक नदी में डूबते व्यक्ति की नाव मिल जाती है और वह इसके सहारे किनारे पर आ जाता है, वैसे ही ॐ वह नाव है जो भवसागर रूपी नदी से बाहर ले जाने का साधन है किनारा मोक्ष की तरह है |
मानसिक लाभ
साधकों ‘ॐ’ के जाप से व्यक्ति को मानसिक लाभ भी होते है | इसके नियमित जाप से साधक विषयों की आसक्ति से स्व को मुक्त कर लेता है | जिससे जीवन में तनाव, चिंता, क्रोध, अहंकार ये विकार दूर रहते है | इसके जाप से मानसिक शांति और आनंद की प्राप्ति भी होती है और मन निर्मल होता है |
भौतिक लाभ
मंत्र जाप से आध्यात्मिक और मानसिक लाभ तो होते ही है लेकिन इसके भौतिक लाभ भी होते है जैसे पाचन शक्ति में सुधार, रोग प्रतिरोधक शक्ति में सुधार, हदय संबंधित रोगों को दूर रखने में मदद, अच्छी नींद और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया भी धीमी हो जाती है जिससे साधक का शरीर लंबे समय तक स्वस्त रहने में मदद मिलती है| इसके भौतिक लाभों को अध्ययनों से पाया है|