सबसे पहले तो यह जान लीजिए भक्ति किसी लाभ के लिए नहीं हैं, भगवान की भक्ति करना यानी भगवान को समर्पण करना होता हैं। भक्ति का अर्थ है निस्वार्थ प्रेम यह एक भाव है जो आपको भगवान से जोड़ता हैं।
जो भगवान के परम भक्त भक्ति में लीन होते हैं वे भक्ति से कोई लाभ की अपेक्षा नहीं करते हैं लेकिन इसके बाद भी निस्वार्थ भक्ति से लाभ होते हैं आखिर हो भी क्यों नहीं जो भक्त भगवान की भक्ति करते हैं, भलेही वो इसके कोई लाभ की अपेक्षा नहीं करे फिर भी परम दयालु भगवान उनकी झोली भर ही देते हैं।
भक्ति कैसे की जाती हैं और भगवान किस तरह से अपने भक्त पर कृपा करते हैं जानते हैं।
भगवान की निस्वार्थ भक्ति करने वाले भक्तों को इसके अदभूत लाभ
भगवान की भक्ति करने से लोगों के असंख्य लाभ हुए है इन्हे हम कभी गिन नही सकते एक बार पौराणिक कथाओं से हम लाभ गिन भी ले लेकिन ऐसे कई असंख्य भक्त है जिनका वर्णन इतिहास में नहीं हुआ हैं।
यहां हम भक्ति योग के कुछ ही लाभों को जानने वाले हैं जो सभी भक्तों को अवश्य ही होते हैं।
सांसारिक बंधनों से मुक्ति होती है : भक्तियोग से व्यक्ति को सांसारिक बंधनों से मुक्ति प्राप्त होती है। अगर किसी का मन भगवान में लग जाता है तो भगवान की कृपा से वह सांसारिक विषयों से अनासक्त हो जाता है।
दिव्यज्ञान प्राप्त होता है : भक्ति का अर्थ से समर्पण भगवान की भक्ति करने से हृदय में दिव्य ज्ञान प्राप्त होता है। जिसने भक्त का भौतिकता से उद्धार होता है।
परमशांति, परमसुख की प्राप्ति होती है : भगवान को पूर्ण समर्पण करने से आध्यात्मिक परमशांति प्राप्त होती है। भक्त भगवान के परमधाम में विलीन हो जाता है।
मानसिक तनाव नष्ट होता है : भगवान की भक्ति करना से पाया गया है इससे मानसिक तनाव से मुक्ति प्राप्त होती है यह ध्यान करने से भी होता है, जब कोई भक्तियोगी भक्ति में लीन होता है और ध्यानयोगी ध्यान की अवस्था प्राप्त करता है, जिससे मस्तिष्क विचारों अनावश्क विचारों और तनाव से मुक्त होता है।
भय से मुक्ति मिलेगी : व्यक्ति भयभीत तब होता है जब उसे लगता है उसका कुछ नुकसान हो जाएगा या कोई चीज उससे दूर हो जायेगी। भक्ति करने से पूर्ण समर्पण होता है तब वहां किसी भी तरह के भय का आस्तित्व नहीं रहता।
हृदय भगवान के प्रेम से भर जाता है : अगर किसीने प्रेम और भक्ति का स्वाद चखा है तो वह इसे अच्छे से समझ सकते किंतु अगर नहीं तो इतना कहना ही काफी है हृदय प्रेम अमृत से भर जाता हैं।
व्यक्ति की प्रतिष्ठा बढ़ती है : भक्ति करने से व्यक्ति की प्रतिष्ठा सम्मान भी बढ़ता है। अपने देखा होगा जो साधु, संत, गुरु या महात्मा भक्ति करते अन्य लोगों को भक्ति का सदमार्ग दिखाते है। उनका वे सम्मान करने के योग्य ही होते हैं।
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निस्वार्थ भक्ति कैसी होंगी?
भक्ति का अर्थ है निस्वार्थ प्रेम यह एक भाव है जो भक्तों में मन में होता है वे भगवान के गुणों का स्मरण, कीर्तन आदि करते है।
लेकिन कई ऐसे लोग भी है जो विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए अथवा कोई कार्य पूर्ण करने के लिए पूजा अर्चना आदि कार्य करते है।
भक्ति का संबध पूजा अर्चना आदि कार्यों से नहीं जोड़ना चाहिए पूजा अर्चना आदि कार्य एक अलग विषय है। भक्ति इनसे अलग है। भक्ति व्यक्ति अंदर से संबधित है। और पूजा आदि वह कार्य है जो बाहरी किए जाते हैं।
धर्म ग्रंथों में भक्ति की महिमा को गाया है पूजा अर्चना आदि कार्यों को भी पूर्ण करने के लिए भक्ति का विशेष महत्व है, आखिर भगवान भाव के भूखे है।
भगवान केवल आपके भाव के भूखे हैं।
भगवान की निस्वार्थ भक्ति कर भक्तों को अनंत लाभ प्राप्त हुए जिनका बारे में हमे पुराणों में जानने को मिलता हैं।
भगवान श्रीकृष्ण और भक्त सुदामा के बारे में आपको पता ही होंगा! सुदामा एक बहुत ही दीन ब्राह्मण था और भगवान श्री कृष्ण द्वारिका नगरी के सम्राट थे ।
जब सुदामा जी अपने बचपन के मित्र श्री कृष्ण से मिलने द्वारिका गए तो वे अपने साथ श्रीकृष्ण को भेट देने के लिए चावल ले गए थे ये जानते हुए भी की वह द्वारिका के सम्राट हैं।
जब सुदामा में वह चावल श्री कृष्ण को दिए तब कृष्ण बहुत आनंदित हुए उन चावलों का मूल्य इतना नही था। परंतु उन चावलों मे सुदामा का प्रेम था जो भगवान के लिए बहुत अमूल्य था।
जब कोई स्वयं के सुख प्राप्त करने के लिए भगवान को भोग समझने लगता हैं वह पूजा, अर्चना भजन आदि कार्य करता है लेकिन वह कभी भक्ति नही कर पाता भक्ति यह बिल्कुल नही हैं की इसे कर फल प्राप्त होगा और व्यक्ति को यह कार्य करने के लिए समय दे।
बल्कि भक्ति तो एक अंतर्मन की बात है जो बिना कोई बाहरी कर्म किए भी की जा सकती हैं।
FAQs,
भक्ति करने का सही तरीका क्या है?
भक्ति निस्वार्थ प्रेम से की जाती है जहां कोई मोह नहीं होता और भक्त भगवान का लीलाओं श्रवण कीर्तन , जाप आदि करते है।
किस भगवान की भक्ति करनी चाहिए?
भक्ति करने के लिए किस भगवान को चुना जाए इस बात को समझने के लिए आपको बाहर किसी से पूछने को आवश्यकता नहीं है यह आपको स्वयं जानना की आप किस भगवान की निस्वार्थ भक्ति कर सकते हैं।
कितनी भक्ति करनी चाहिए?
भक्ति कितनी करनी चाहिए यह महत्वपूर्ण नहीं हैं बल्कि भक्ति कितनी शुद्ध है यह महत्वपूर्ण है। जहां भक्त भगवान के चरण कमलों में भक्त पूर्ण करता हैं उसी पल वह उद्धार को प्राप्त हो जाता है इसमें जरा भी देरी नही होती।
भक्ति करने के सही समय क्या है?
भक्ति करने का कोई निश्चित समय नहीं होता भगवान के परम भक्त खाते, पीते नहाते, चलते, काम करते सदैव भगवान के भक्ति में लीन रहते हैं।