युगों-युगों से ही लोगों में परमात्मा को जानने की जिज्ञासा चली आ रही हैं, हमारे धार्मिक ग्रंथों में वर्णित मिलता हैं की यह संसार एक जीवन और मृत्यु का चक्र हैं जिसमे जीवात्मा झुझती हैं, पुण्यकर्म के फलस्वरूप जीवात्मा सुखदायक योनि में जन्म लेती और और पापकर्म करने पर नर्क के कष्ट और यातना भोगती है या कष्टदायक योनि में जन्म लेती हैं। लेकिन यह तो बात हुई कर्मबंधन और सांसारिक विषयों के आसक्ति की जो जीवात्मा को जीवन में भोगने पड़ते हैं।
साधकों इस जीवन मरण के चक्र से मुक्ति पाने के लिए व्यक्ति अपने जीवन में मोक्ष या परमात्मा को उपलब्ध होना चाहते हैं, और वह व्यक्ति परमात्मा की भक्ति में लग जाता हैं।
परमात्मा कौन हैं – Parmatma Kaun Hai
परमात्मा वह है जिसने इस समस्त संसार और इस संसार के समस्त जीवों को अपने पर धारण किया हैं और समस्त जीवों का पालनहार है, धर्म ग्रंथों और श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार परमात्मा निर्गुण, निर्लेप, अविनाशी, अद्वैत सर्वव्यापी और परमसत्य है, परमात्मा हमारे मन बुद्धि से भी परे हैं।
अन्य – जीवात्मा, आत्मा और परमात्मा में अंतर
परमात्मा सृष्टि के कण-कण में तथा क्षण-क्षण विराजमान है, सम्पूर्ण सृष्टि में गतिशीलता है यह परमात्मा के कारण हैं। सम्पूर्ण जगत परमात्मा के अनुसार वर्तता है यह परमात्मा के माया शक्ति से उत्त्पन होता है, गतिशील रेहेता हैं तथा लय को प्राप्त हो जाता हैं । परमात्मा समस्त कार्यों का कर्ता है, संसार में जो कुछ होता है यह परमात्मा के कारण ही हैं, किन्तु इसके अलावा भी परमात्मा अकर्ता ही हैं। परमात्मा अपने अनुसार सभी कार्यों का कर्ता नहीं हैं, बल्कि यह सभी समस्त कार्य माया के कारण परमात्मा के अनुसार संपन्न होते हैं।
भौतिक संसार माया के अधीन हैं किंतु परमात्मा माया के अधीन नहीं परमात्मा भौतिक संसार माया के परे हैं। माया परमात्मा पर शासन नहीं कर सकती, इसका सृजन ही परमात्मा के कारण हैं, माया परमात्मा के अधीन हैं।
जब जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का वर्चस्व स्थापित होने लगता है साधुओं का उद्धार और दृष्टों का संहार करने के लिए तथा धर्म की स्थापना के लिए परमात्मा सगुण रूप लेकर संसार में प्रकट होता हैं, इसे इश्वर ( भगवान ) भी कहा जाता हैं । परमात्मा के जन्म और कर्म दिव्य है यह माया के अनुसार नहीं कार्यरत होते है बल्कि माया को अधीन कर कार्यरत होते हैं।
परमात्मा समस्त जीवों के हृदय के आसिन हैं और सबका पालन पोषण करता हैं। परमात्मा के ये शरीर असत् (नाशवान) हैं, किंतु परमात्मा शाश्वत हैं। जीवों की तरह परमात्मा जन्म और मृत्यु के चक्र में नहीं होता हैं , जीवात्मा संसार में जन्म लेता हैं परमात्मा परम सत्य हैं, जीवात्मा समस्त संसार का शरीर भोक्ता मानता है, कर्म के फल , आसक्तियां और अहंकार के कारण जन्म प्राप्त करता है परमात्मा इसे धारण करता है किंतु परमात्मा इसके परे हैं।
स्वयं में परमात्मा की झलक कैसे पाए?
साधकों परमात्मा कौन है? या परमात्मा क्या हैं? यह सवाल आपके अंदर से आया हैं और इसका उत्तर प्राप्त करने के लिए आपको किसी और को आवश्कता नहीं है, इस प्रश्न का उत्तर भी आपको आपके भीतर से ही प्राप्त होता हैं, क्योंकि परमात्मा आपके भीतर ही है फिर इसे जानने के लिए आपको किसी और की क्या आवश्कता हैं।
अगर आपके मन में यू ही परमात्मा को जानने की जिज्ञासा हुई और आपको पता चला कि परमात्मा को आप स्वयं के द्वारा ही जान सकते हैं और आप लग गए परमात्मा तक पहुंचने में तो यह संभवतः कठिन हो सकता हैं।
परमात्मा आपके भीतर विराजमान है। परमात्मा को हम आत्मा ही बोल सकते है। यह आपके जीवन का कारण है। जब योगी आत्मा के दर्शन करता है या आत्मज्ञान प्राप्त करता है । तो उसे परमात्मा के दर्शन होते है । आत्मा में परमात्मा को झलक पाने के लिए या परमात्मा तक पहुंचने के लिए आपको ध्यान, साधना, भक्ति, या परमात्मा के प्रति प्रेम और पूर्णसमर्पण की आवश्कता हैं।
जब योगी ध्यान करता हैं तब वह स्वयं के अहंकार को नष्ट करके परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण करता है , स्वयं का अहंकार ( स्वयं को “मैं” मानना ) नष्ट हो जाता है। तब योगी परम चेतना के अस्तित्व को जनता है। भौतिक शरीर का हमारा अहंकार नष्ट होते है योगी आत्म साक्षत्कार करता है ।
जब योगी आत्मा के दर्शन करता है तो वह इस आत्मा में परमात्मा की झलक पता है। और “मै” को भूल कर परमात्मा के साथ एक हो जाता हैं या यूं कह सकते हैं की योगी स्वयं परमात्मा बन जाता हैं।
अगर आज के युग के किसी व्यक्ति की बात करें तो उसे परमात्मा को उपलब्ध होना थोड़ा कठिन हो सकता हैं और इसका कारण आपसे छिपा नहीं हैं, फिर भी ऐसे कई योगी है । जिन्होंने परमात्मा को पा लिया हैं।
जब योगी ध्यान अवस्था में होता हैं कोई मंत्र जाप करता हैं। तब वह एकाग्र होकर अपने मन और मस्तिष्क के विचारों से पूर्ण रूप से मुक्त हो जाता हैं। और स्वयं को इस भौतिक संसार के सभी मोह, कर्म, रिश्तेनातों अपने मन, बुद्धि और इन्द्रियों से परें परम चेतना के रूप में जनता है, और चेतना में ही स्थित हो जाता है। ध्यान की इस उच्चतम अवस्था को चैतन्य समाधी कहा जाता हैं।
परमात्मा आपसे ज्यादा दूर नहीं है बल्कि यह आपके इतना पास है जितना इस संसार में कोई भी आपके पास नही हो सकता हैं, बस देरी है तो परमात्मा को उपलब्ध होने की या यूं कह लें परमात्मा में एक हो जाने की तो अब शुरवात करने के लिए आपको परमात्मा की भक्ति करने से आप परमात्मा को पा कर सकते है। परमात्मा के प्रति समर्पण भाव से आप परमात्मा को उपलब्ध होते हैं।
अपने ऐसे कई लोगों को देखा होगा जो भगवान की भक्ति पूजा, जाप करते हैं लेकिन यह लोग ईश्वर से कामना रखते हैं जिसे उन्हें ईश्वर द्वारा जीवन में सभी सुख प्राप्त हो सकते हैं। लेकिन क्या यह भक्ति सच में भक्ति हैं ,नहीं यह स्वार्थ हैं। अगर कोई स्वयं के लिए किसीसे कामना रखता है तो वो इस परम चेतना को कैसे पा सकता है।
भक्ति प्रेम और समर्पण से की जाती हैं जिससे भक्त परमात्मा को उपलब्ध होता हैं जब भक्त को अपने भगवान के भक्ति में ही चरम सुख मिले तब समझलेना भक्त को परमात्मा को पाना ज्यादा दूर नहीं हैं। क्योंकि भक्त भीतर का यह प्रेम और भक्ति ही परमात्मा हैं।
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अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न
Q – 1 : असली परमात्मा का नाम क्या है?
कोई एक नाम तो मनुष्य और जीवों का हो सकता हैं परमात्मा तो अनादि, अनंत काल से है और समस्त सृष्टि की रचना का कारण हैं।