Sanatan Dharma | सनातन धर्म का वास्तविक अर्थ

Sanatan Dharma kya hai

जहां अन्य समुदायों या पंथ मान्यताओं तक सीमित हो सकते हैं, परंतु सनातन धर्म की कोई सीमा नहीं हैं, यह आपको किसी मान्यता के अंदर बांध कर नहीं रखता लेकिन आपको वास्तविक स्वतंत्रता की और जागरूक करता हैं।

यह आपके अंदर उन सवालों के उत्तर प्राप्त करने की जागरूकता लाता है जिन सवालों के उत्तर जानना हर किसी के लिए अति महत्वपूर्ण हैं। हम सनातन धर्म को कुछ वाक्यों से नहीं समझ सकते परंतु हम इसके अर्थ को समझने का प्रयत्न अवश्य कर सकते हैं.

Sanatan Dharma | सनातन धर्म का वास्तविक अर्थ

सनातन धर्म क्या है | Sanatan Dharma

क्या आप जानते हैं सनातन धर्म का अर्थ क्या समझा जाता हैं! ‘सनातन’ यानी वह जो शाश्वत हैं, सदा से हैं और सदा ही रहेगा जिसका न आदि है न मध्य हैं और न ही अंत हैं। ‘धर्म’ का अर्थ हैं ‘कर्तव्य’ सनातन धर्म शाश्वत है, यह कोई मान्यता नहीं हैं, इस शाश्वत तत्व को समझने के लिए इतना ही उपयुक्त हैं की धर्म वह है जो आपको परम सत्य तक पहुंचता हैं , सत्य शाश्वत है और मुक्ति मोक्ष भी शाश्वत हैं। और यह पथ जो बद्धजीव को परम सत्य तक पहुंचाता है यह भी शाश्वत हैं जो सनातन धर्म कहलाता है। सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, यम और नियम यह धर्म के मूल तत्व है।

हमे ऐसा नहीं समझना चाहिए की सनातन धर्म किसी धर्म ग्रंथ तक ही सीमित हैं, नहीं! सनातन धर्म वह हैं जो स्वयं ज्ञान से प्रकाशमय करता हैं। यह हमे उन सवालों को उत्तर जानने की अनुमति देता हैं जिन सवालों के उत्तर स्वयं के अंदर जानकर ही आप उद्धार को प्राप्त हो सकते हैं।

ऋषियों ने स्वयं में ही उस तत्व को खोजा हैं जिसे ब्रह्म, आत्मा या मोक्ष कहते है और जैसा उन्होंने देखा वैसा ही ग्रंथों में साझा किया हैं, इन ऋषियों को दृष्टा कहा जाता हैं।

सनातन धर्म पृथ्वी पर सबसे प्राचीन धर्म हैं, हम इस बात को तो जानते ही हैं की सनातन धर्म वैदिक काल से ही चला आ रहा हैं। सनातन धर्म में ऐसे कई महान ऋषि हुए हैं जिन्होंने महत्वपूर्ण ग्रंथों को रचना की हैं।

वेद को पुरातन चिरग्रंथ कहां जाता है। जिसकी रचना स्वयं सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के द्वारा हुईं हैं। ऋषियों ने एकसौआठ उपनिषदों की रचना की हैं। वेद में सनातन के बारे में क्या बताया गया हैं जानते हैं। वेद के कुछ श्लोकों और उनके अर्थ से,

सत्यम शिवम सुंदरम

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‘यह पथ सनातन है। समस्त देवता और मनुष्य की इस मार्ग से उत्त्पति और प्रगति हुए हैं । हे मनुष्यों आप अपने उत्पन्न होने की आधाररूपा अपनी माता को विनष्ट न करें।’- (ऋग्वेद-3-18-1)

।।ॐ।।असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योर्तिगमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।।- वृहदारण्य उपनिषद

भावार्थ : अर्थात हे ईश्वर मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो।

आत्मा परम सत्य हैं आत्मा का घर संसार नहीं लेकिन मोक्ष हैं, जो योगी मोक्ष को प्राप्त होते है वे परमपद को प्राप्त हो वे अमरत्व को प्राप्त होते है , भक्ति योगी का ईश्वर के लिए समर्पण, विद्वानों योगी का ज्ञान जो उन्हें परम पद की प्राप्ति करवाता हैं वह सनातन मार्ग हैं, जो कभी नया नहीं था और कभी पुराना भी नहीं होता।

सनातन धर्म कितना पुराना हैं –

साधकों! सनातन धर्म शाश्वत हैं, अनादि ही हैं, परंतु यह ब्रह्मांड अनादि काल से नहीं हैं, अगर बात करें पृथ्वी की तो यहां सनातन धर्म तब खोजा गया जब मनुष्य ने सत्य का बोध प्राप्त किया हैं।

अन्य देशों ने और प्राचीन समय में हमारे धर्म का नाम हिंदू धर्म, आर्य धर्म और वैदिक धर्म रखा गया। परंतु हिंदू धर्म को ही सनातन धर्म कहा जाता हैं, क्योंकि हिंदूधर्म हमें मोक्ष को प्राप्त करवाने के लिए उपयुक्त हैं। और यह धर्म वैदिक काल से ही चला आ रहा हैं,

भगवत गीता में सनातन धर्म के बारे में क्या कहां गया गया हैं,

भगवत गीता में भगवान कृष्ण सनातन धर्म के बारे में अर्जुन को इस प्रकार कहते हैं,

अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च । नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ||

अर्थ – हे अर्जुन ! जो छेदा नहीं जाता। जलाया नहीं जाता। जो सूखता नहीं। जो गीला नहीं होता। जो स्थान नहीं बदलता। ऐसे रहस्यमय व सात्विक गुण तो केवल परमात्मा में ही होते हैं। जो सत्ता इन दैवीय गुणों से परिपूर्ण हो। वही सनातन कहलाने के योग्य है।

इस श्लोक के माध्यम से भगवान कृष्ण कहते हैं कि जो न तो कभी नया रहा। न ही कभी पुराना होगा। न ही इसकी शुरुआत है। न ही इसका अंत है। अर्थात ईश्वर सनातन कहा गया है।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥

अर्थ – अर्जुन! जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का वर्चस्व बढ़ने लगता है, धर्म की स्थापना और अधर्म का विनाश करने के लिए साधुओं का उद्धार और पापियों का विनाश करने के लिए मैं अवतार लेता हूं।

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सनातन धर्म और हिंदू धर्म में क्या अंतर हैं?

अगर हम वेद के अनुसार यह जानें तो धर्म केवल एक ही है और वह है सनातन धर्म, भारत में हम इसे वेदों के अनुसार सनातन धर्म कहते हैं, परंतु हिंदू धर्म नहीं कहते क्योंकि हिंदू यह शब्द भारत का नहीं हैं, कहा जाता हैं की प्राचीन समय में ईरानी देशों या परस्ति देशों ने ग्रंथों में हिंदू कहां गया हैं, वे लोग भारत में रहने वालों को हिंदू कहते हैं और इस हिंदुओं के धर्म को ही हिंदू धर्म कहा जाने लगा। और ऐसा भी कहां जाता हैं हिमालय पर्वत के कारण भारत के लोगों को हिंदू कहां जाने लगा,  हिंदू धर्म को आर्यधर्म धर्म भी कहां जाता हैं ‘आर्य’ का अर्थ ‘श्रेष्ठ’ होता हैं, भारत को प्राचीन समय में आर्यव्रत ही कहां जाता हैं, वेदों के कारण इसका नाम वैदिक धर्म भी पड़ा।

धर्म केवल एक ही हैं, वेद केवल एक ही धर्म को जानते हैं और वह है सनातन धर्म, यह हर एक जीव का धर्म है, न की केवल उनका जो हिंदू परिवार या भारत में जन्मे हैं। जिस तरह से अग्नि का धर्म उष्णता होता हैं, नदी का धर्म होता हैं समुद्र की और बहाना उसी तरह जीव का धर्म है सनातन धर्म, भारत में इसे हमेशा से ही सनातन धर्म कहा गया हैं, जो हर एक जीव का धर्म हैं।

निष्कर्ष; 

सनातन धर्म, यानी वह धर्म जो सदा से हैं कभी नया नहीं था और कभी पुराना नहीं होता, मोक्ष को प्राप्त होना हैं जीवों का कल्याण हैं और मोक्ष का यह पथ ही सनातन धर्म कहा जाता हैं।

FAQs

क्या हिंदू धर्म और सनातन धर्म एक ही हैं?

वेद में कहीं पर भी ‘हिंदू’ शब्द नहीं हैं, कहा जाता हैं हिंदू शब्द बाहरी देशों से आया है जो अभी भारत में उपयोग किया जाता हैं, धर्मग्रंथ वेद में सनातन धर्म की बात हुईं हैं।

सनातन धर्म की पहचान क्या हैं?

सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, यम नियम सनातन धर्म के मूल तत्व हैं, ब्रह्म के प्रति समर्पण और ब्रह्मलीन होना ही सनातन धर्म कहलाता हैं। यह हर व्यक्ति का धर्म हैं और भौतिकता से मुक्ति का मार्ग हैं। जो धर्म के विरोधी होते हैं वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर पाते और भवकूप में गिर जाते हैं।

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I'm a devotional person, named 'Vaishnava', My aim is to make mankind aware of spirituality and spread the knowledge science philosophy and teachings of our Sanatan Dharma.

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