माया का स्वरूप क्या है | त्रिगुणात्मिक माया

Maya ka svaroop

माया का स्वरूप क्या है माया भगवान कृष्ण की शक्ति है; भगवान कृष्ण परमात्मा है | भगवान श्री कृष्ण सत् चित् आनंद स्वरूप है और माया त्रिगुणात्मक है | जो संसार हम देखते है यह

ग्यारह रुद्र अवतारों के नाम और कथा

Akadas gyarah rudra Avtar

भगवान शिव का एक नाम रुद्र है ऋग्वेद में भगवान रुद्र को परमात्मा कहा गया है | शिवपुराण, भगवतपुराण और शैवागम में भगवान शिव के एकादस रुद्र यानी ग्यारह रुद्र अवतार बताएं गए है |

121 भागवत गीता के अनमोल वचन | कृष्ण केवचनों से जीवन को सार्थक बनाए

जब वीर अर्जुन रणभूमि में अनिर्णय की स्थिति में था, तब भगवान कृष्ण ने उनके शिष्य अर्जुन को गीता ज्ञान उपदेश दिया था | वह उपदेश न केवल अर्जुन के लिए तारक था बल्कि हर

ॐ कार मंत्र जाप ध्यान विधि | जाप के आध्यात्मिक और मानसिक लाभ

Om mantra meditation practice

  यहां से मुक्त होना ही हर मनुष्य का उद्धार है | परंतु जो इस दुनिया के मोहजाल में ही पड़े है और निरंतर व्याकुल है सुख दुख में चूर हो जाते है | चिंता

पुनर्जन्म का विज्ञान: पुनर्जन्म होता है? पुनर्जन्म कैसे होता है?

kya punarjanm hota hai

दर्शनों के अनुसार कहा जाता है की जीवों का अंतिम सत्य मृत्यु नही है मृत्यु के बाद भी जीव पुनः जन्म लेकर इस संसार में आते है | इसको पुनर्जन्म कहा जाता है कई दार्शनिकों

विष्णु मंत्र | ॐ विष्णवे नमः | जाप और लाभ | अर्थ सहित

Om vishnve namah

Vishnu Mantra: श्रद्धा और समर्पण से भगवान के नाम का स्मरण करना आत्मिक उन्नति का एक उत्कृष्ट साधन है, यह आध्यात्मिक उन्नति का विज्ञान है | भगवान कृष्ण गीता में कहते है त्रिगुणात्मिका माया को

आत्मा को जाना नहीं जा सकता तो कैसे पता चला वह है?

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आपने उपनिषदों में और अन्य आध्यात्मिक ग्रंथों में ब्रह्म या आत्मा का बारे में पढ़ा ही होंगा! या इन शब्दों को सुना तो होंगा ही! लेकिन क्या अपने कभी सोचा है की ये क्या है?

नेति-नेति | न ऐसा, न वैसा | क्या है समझिए

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नेति-नेति का अर्थ है “यह नहीं, वह नही” यह श्लोक साधक को आध्यात्मिक विकास और आत्मज्ञान साक्षात्कार करने में एक साधन का काम करता है | यह भ्रम को काटने की तलवार है सभी भ्रम

तत् त्वम् असि | तुम ही वह हो | क्या है समझिए

'तत् त्वम् असि' क्या है समझिए 

ऋषियों ने साधना में सिद्धि से महाज्ञान प्राप्त किया और जैसा देखा वैसा ही नई पीढ़ी के लिए लिख दिया | ‘तत् त्वम् असि’ यह श्लोक छांदोग्य उपनिषद का है | ‘तत् त्वम् असि’ का अर्थ है “वह तुम ही हो” या “वह ब्रह्म तुम ही हो” ‘तत् त्वम् असि’ क्या है इस समझने के लिए इस लेख को पढ़िए |