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भगवान विष्णु के दशावतार सहित चौबीस अवतारों का वर्णन


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श्रीमदभगवद्गीता में भगवानश्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच में संवाद है जहां भगवान अर्जुन से कहते है जब जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का वर्चस्व बढ़ने लगता हैं तब भगवन अवतार लेते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के मुख्य तीन कारण होते है साधुपुरषों का उद्धार करना, दृष्टो का विनाश करना और धर्म की पुनः अच्छी तरह से स्थापना करना, और इसी कारण परमभगवान श्रीकृष्ण के अवतार भगवान विष्णु इस धरती पर अवतरित भी हो चुके हैं।

धर्म ग्रंथो में सतयुग से लेकर कलयुग तक भगवान विष्णु २४ अवतारों का वर्णन मिलता हैं। भगवान विष्णु के ये २४ अवतार कौनसे है और इन अवतारों का क्या कथा और उद्देश है जानते हैं।

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भगवान विष्णु के कितने अवतार है?

पुराणों में भगवान विष्णु के कुल २४ अवतारों का उल्लेख है जिसमे मुख्य दशावतार और अन्य अंशावतार है।

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भगवान विष्णु के २४ अवतारों का वर्णन

1. श्री सनकादि मुनि अवतार

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धर्म ग्रंथों में भगवान विष्णु के प्रथम अवतार का वर्णन मिलता हैं, जब लोक पितामह ब्रह्मा ने लोकों की रचना करने की इच्छा की तब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की घोर तपस्या की भगवान विष्णु ने तपस्या से प्रसन्न होकर सनक, सनन्दन, सनातन और सनतकुमार इन ४ मुनियों के रूप में अवतार लिया, ये मुनि ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से हैं। चारों नित्य परायण, ध्यान में तल्लीन, नित्यसिद्ध, नित्यविरक्त और मोक्ष के मार्ग पर रहने वाले थे।

2. वराह अवतार

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वराह अवतार भगवान विष्णु का दूसरा अवतार हैं। वराह को हिंदी में सुअर या सुकर कहते है, धर्म ग्रंथों के अनुसार हिरण्याक्ष राक्षस ने धरती को समुद्र में छिपा दिया था। तब भगवान विष्णु ने धरती को बचाने के लिए वराह अवतार धारण किया, भगवान वराह देव ने अपने नथुनी से धरती का पता लगाया था और दातों पर टिककर धरती को बाहर निकाला था और खुरों से जल को सुन्न कर दिया।

जब हिरण्याक्ष यह वारदात पता चली तो उसने वराह देव को युद्ध के लिए ललकारा, युद्ध में वराह देव द्वारा हिरण्याक्ष का अंत हो गया। और सभी देवता वराह देव जी की स्तुति करने लगे।

3. नारद मुनि अवतार

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देवर्षि नारद मुनि भगवान विष्णु का तीसरा अवतार हैं, ये ब्रह्मा जी के सात मानस पुत्रों ने से एक हैं और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त है, कठिन तपस्या से इन्होंने देवर्षि पद प्राप्त किया और धर्म का प्रचार और लोककल्याण में हमेशा तत्पर रहने लगे।

श्रीमद्भागवत गीता के १० वे अध्याय के २६ श्लोक में भगवान देवर्षि नारद मुनि का वर्णन कर कहते है, “देवर्षीणाम्चनारद:।” अर्थ देवर्षियों में मैं नारद हूं।

4.  नर – नारायण अवतार

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नर – नारायण भगवान विष्णु का चौथा अवतार हैं, नर-नारायण इनका धर्म की स्थापना करना उद्देश था नर – नारायण तपस्वियों के समान वेशभूषा और अपने मस्तक पर जटा धारण किए हुए थे।

5.श्री कपिल मुनि अवतार

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कपिल मुनि प्राचीन महान ऋषियों में से एक है ये एक यौगिक तपस्वी थे इन्हे सांख्य-शास्त्र का प्रवर्तक कहा जाता हैं। कपिल मुनि माता देवभूति और पिता कर्दम ऋषि की दसवीं संतान थे। बाल्य अवस्था में ही कपिल मुनि ने अपनी माता को ब्रम्हांड के २४ तत्वों का ज्ञान प्राप्त करवाया था। भक्ति, योग, यज्ञ, तीर्थ और दान को सभी धर्मो से श्रेष्ठ समझना चाहिए यह उनके बोल थे।

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श्रीमद्भागवत गीता कपिल मुनि का वर्णन है ।  भगवान  कहते है “सिद्धानां कपिलो मुनिः”  अर्थात सिद्ध पुरुषों में कपिल मैं हूं, और यह मेरा ही अवतार हैं।

6. श्रीदत्तात्रेय अवतार

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श्रीदत्तात्रेय प्रभु सप्त ऋषियों में से एक अत्रि ऋषि और माता अनुसया के पुत्र थे श्री दत्तात्रेय प्रभु के तीन मुख और छह भुजाएं थी। श्रीदत्तात्रेय प्रभु के इस त्रीमुखी रूप को ब्रह्मा विष्णु और महेश का एकत्र रूप भी कहा जाता है। ये आजन्म अवदूत और ब्रम्हचारी रहे।

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जब त्रिदेवियों को अपने सतीत्व पर अहंकार हुआ तब भगवान विष्णु ने एक लीलारची, देवर्षि नारद जी त्रिदेवियों के सामने माताअनुआया के सतीत्व की प्रशंसा करने लगे, यह सुन त्रिदेवियोंने माताअनुआया के सतीत्व की परीक्षा लेने हेतु ब्रह्मा, विष्णु और महेश को अत्रिऋषि और अनुसाया माता के आश्रम में भेजा।

जब अत्रि ऋषि आश्रम में नहीं थे तब त्रिदेव ब्राम्हण का रूप धारण कर माता अनुसाया से भिक्षा मांगने लगे, और शर्त रखी की नीरवस्त्र होकर ग्रहण करेंगे। माता अनुसाया यह सुन घबरा गई। ब्राम्हण देवता का अपमान न हो इसलिए अपने सतीत्व की शपत लेकर कहा की यह तीनों ब्राम्हण छह–छह महीने के शिशु बन जाएं। ब्रम्हा, विष्णु और महेश तीनो ६ मास के शिशु बन रोने लगे और बाद में त्रिदेवों की माता बनकर माता अनुसाया ने उन बालकों को दूध पिलाया।

जब त्रिदेवियों को यह पता चला तो वे आश्रम जाकर माता अनुसया से क्षमा मांगने लगी और अपने पतियों को इनके वास्तविक रूप में लाने की प्रार्थना करने लगी।

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माता अनुसया से प्रसन्न होकर त्रिदेवों ने उनका अंश माता अनुसया की कोक से जन्म लेंगे यह वरदान दिया। और ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, विष्णु के अंश से दत्तात्रेय और महेश के अंश भगवान शिव के अवतार दुर्वासा का जन्म हुआ और ये एक महान ऋषि कहे गए।

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7. यज्ञ अवतार

यज्ञ अवतार भगवान विष्णु के सातवा अवतार हैं। धर्म ग्रंथों में यज्ञ अवतार के बारे में वर्णन किया हैं। यज्ञ अवतार का जन्म स्वयंभू मनमंतर ने हुआ था, स्वयंभू की पत्नी शतरूपा की गर्भ से आकूति का जन्म हुआ वे रुचि प्रजापति की पत्नी हुई आकूति के घर पर भगवान विष्णु यज्ञ नाम से अवतरित हुए।

भगवान यज्ञ और उनकी पत्नी दक्षिणा से अत्यंत तेजस्वी बारा पुत्र उत्पन्न हुए और उन्हे याम नामक मनमंतर के देवता कहा गया।

8. भगवान ऋषभदेव अवतार

महाराज नाभी और उनकी धर्म पत्नी को संतान सुख प्राप्त नहीं हो रहा था जिस कारण उन्होंने भगवान यज्ञ पुरुष प्रसन्न करनें के लिए और उन्हे संतान प्राप्ति का वरदान मांगने के लिए यज्ञ किया, यज्ञ से भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए और उनके पुत्र के रूप में अवतरित होने का वरदान दिया।

और कुछ समय बाद भगवान विष्णु ने महाराज नाभी और उनकी धर्म पत्नी के संतान के रूप में ऋषभदेव अवतार लिया। कुछ समय बाद माता पिता ने देखा बालक के चरणों में वज्र, अंकुश आदि के चिन्ह प्रगट हो गए हैं।

बालक जैसे बड़ा हो रहा था उसमे शांति, समता, ईश्वर्य, वैराग्य आकर्षक स्वरूप, आदि गुणों का विकास हो रहा था, इसी कारण बालक का ऋषभ (श्रेष्ठ) नाम रखा गया था।

9. आदिराज पृथु अवतार

आदिराज पृथु भगवान विष्णु का नौवां अवतार हैं,आदिराज पृथु की कथा हमे ब्रह्म पुराण में मिलती हैं, प्राचीन काल में अंग नाम के राजा हुआ करते थे राजा अंग बड़ें  धर्मात्मा और और पुण्यात्मा थे राजा अंग का एक पुत्र था वेण। अपने पिता से विपरीत वेण अत्यंत दुराचारी और धर्म का शत्रु था।

वेण को सही रास्ते पर लाने के लिए महर्षियों में कई प्रयास किए लेकिन वेण पर इसका कोई असर नहीं हुआ बल्कि वेण ने परमात्मा को नकार कर स्वयं की पूजा करने को कहा। महर्षियों को वेण पर क्रोध आया और उन्होंने मंत्रों से वेण का वध कर दिया और महर्षियों ने वेण की दाहिनी भुजा का मंथन किया। जिसमें से अग्नि के समान तेजस्वी आदिराज पृथु का अवतार हुआ। वेण के कारण प्रजा को बहुत दुःख भोगने पड़े थे जिसके विपरीत अदिराज पृथु ने उत्कृष्ट राज किया।

10. मत्स्य अवतार

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जब सतयुग अंत निकट था तब धरती पर भयंकर बाढ़ आने वाली थीं तथा राक्षस हयग्रीव ने ब्रह्मा जी से वेदों को चुराकर गहरे समुद्र में छिप गया था और संसार से वेदों का ज्ञान लुप्त होने लगा था।

वेदों को राक्षस हयग्रीव से वापिस लेने के लिए और इस बाढ़ से सप्त ऋषियों और मनु की रखा करने के लिए और इन्हे सुरक्षित पर्वत पर पहुंचने के लिए भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर अपनी लीला रची।

11. कूर्म अवतार

कूर्म अवतार भगवान विष्णु का ग्यारवा अवतार है, इसमें भगवान विष्णु देवताओं के कल्याण के लिए कछुए के रूप के अवतार लेते हैं।

एक बार जब ऋषि दुर्वासा ने इंद्र एक माला भेट की और इंद्र ने यह माला अपने हाती को पहना दी, हाति के गले से यह माला गिर गई और हाती पैरो के नीचे कुचली गई, यह देख ऋषि दुर्वासा को भयंकर क्रोध आया और उन्होंने देवताओं को श्राप दे दिया जिस कारण देवताओं ने अपनी शक्तियां खो दी।

सभी देवता मदत के लिए भगवान विष्णु के पास गए, भगवान विष्णु ने उन्हें मंदरा पर्वत का मंथन करने को कहा। देवताओं ने मंथन शुरू किया एक तरफ राक्षस और दूसरी तरफ देवता वासुकी नाग को पर्वत से लपेट कर खीच रहे थे।

कुछ समय बाद पर्वत श्रृंखला मंथन डूबने वाली थी तब भगवान कूर्म अवतार लेते और पर्वत को अपने पीठ पर टिककर डूबने से बचाते हैं। देवताओं को इस मंथन से अमृत और १४ दिव्य रत्न प्राप्त होते है।

12. भगवान धन्वंतरि अवतार

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भगवान धनवंतरी की आरोग्य का देवता कहा जाता है समुद्र मंथन के बाद कार्तिक कृष्ण त्रियोदशी के दिन भगवान धनवंतरी अपने हात में अमृत लेकर प्रकट हुए थे।

भगवान धनवंतरी एक महान चिकिस्सक थे और धर्म ग्रंथों में इन्हे भगवान विष्णु का बरवा अवतार कहा गया हैं। भगवान धनवंतरी की चार भुजाएं है इन भुजाओं में भगवान में शंख, आयुर्वेद, अमृत कलश और औषधी धारक की हैं।

भगवान धनवंतरी के प्रकट होने के कारण की धनवंतरी का त्योहार मनाया जाता हैं।

13. मोहिनी अवतार

जब असुर और देवताओं ने साथ समुद्र मंथन किया तब मंथन से अमृत निकाला। अमृत असुरों ने छल से देवताओं से छीन लिया तब देवता मदत के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगे, प्रार्थना सुन भगवान ने अत्यंत सुंदर और आकर्षक स्त्री के रूप में मोहिनी अवतार लिया। और अपने माया के प्रभाव से आसूरो को मोहित करके अमृत पुनः प्राप्त कर लिया।

14. भगवान नृसिंह अवतार

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भगवान नृसिंह भगवान विष्णु का चौदहवा अवतार है, हैं राक्षस हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया। और ब्रह्मा जिसे अमर होने का वरदान मांगने लगा लेकिन ब्रह्माजी उसे अमर होने का वरदान नही दे सकते थे। तो उसने ब्रह्माजी से यह वचन कहे, मुझे दिन और रात में मृत्यु न आ सके,” मेरी न घर के अंदर और न घर के बाहर मृत्यु हो सके, न धरती पर मर सकू न ही आकाश और समुद्र में, कोई पशु, पक्षी मानव देवता गन्धर्व मुझे न मार सके मुझे कोई अस्त्र शस्त्र न मार सके।” ब्रम्हाजी ने तथास्तु कर कर हिरण्य कश्यप को अपनी इच्छा से यह वरदान दे दिया। वरदान प्राप्त करते ही हिरण्यकश्यप सृष्टि में हाहाकार मचाने लगा और अधर्म फैलाने लगा।

प्रल्हाद हिरण्य कश्यप का पुत्र था और भगवान विष्णु का परम भक्त था। यह जान हिरण्य कश्यप ने अपने बेटे को मृत्यु दंड देने का प्रयत्न किया लेकिन वो हर बार असफल रहा।

जब हिरण्य कश्यप ने प्रहाद को भगवान विष्णु का पता पूछा तो उसने कहा भगवान विष्णु कण कण में विराजमान हैं। हिरण्य कश्यप ने एक खंबे की और इशारा कर कहा की इस खंबे में भी तेरा भगवान हैं प्रलाद ने कहा जा वो इस खंबे में भी हैं।

यह सुन क्रोध से उसने खंबा तोड़ दिया और खंबे से भगवान नुसिंह बाहर आए भगवान नृसिंह अर्ध मानव और अर्ध सिंह के रूप में थे। भगवान नृसिंह ने हिरण्य कश्यप को अपनी में सूर्यास्त के समय अपने नाखूनों से फाड़ कर उसका वध कर दिया।

15. वामन अवतार

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दैत्यों का राजा बाली भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद का पुत्र था, पृथ्वी और देवताओं को परास्त कर उसने इंद्रलोक पर अपना राज्य स्तापित किया था। सभी देवता भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगे तब भगवान विष्णु ने माता अदिति के गर्भ से वामनदेव के रूप में अवतार लेकर वे  देवताओं को उनका राज्य पुनः लौटाने का वचन दिया।

एक बार असुरराज बाली एक महान यज्ञ कर रहा था और ब्राम्हणों को दान दे रहा था। भगवान वामनदेव वहां पहुंचे और बाली से तीन पग धरती की मांग करने लगे। दैत्य गुरु शुक्राचार्य को वामनदेव भगवान विष्णु होने का संदेह हुआ और असुरराज बाली को दान देने से मना कर दिया लेकिन असुरराज बाली ने दैत्यगुरु शुक्राचार्य की बात ना मानते हुए और बिना कोई चिंता किए वामनदेव को तीन पग धरती दान देने का प्रण करने के लिए तैयार हो गया। दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने सुक्ष्मरूप लिया और कमंडल की नली जा कर बैठ गए। जिस वजह से प्रण लेते समय कमदल से पानी बाहर नहीं निकाला वामन देव ने कमंडल की नली में लगड़ी डाली जिस कारण शुक्राचार्य की एक आंख पर चोट लग गई और वे तुरंत बाहर आ गए।

तब बाली ने प्रण लिया। प्रण लेते ही वामन देव अपने विराट रूप में आ गए और एक पग धरती पर और दूसरे पग स्वर्गलोक पर रख दिया और बाली से तीसरे पग के लिए पूछा तब बाली ने तीसरा पद अपने सर पर रखने के लिए कहां। भगवान बाली की उदारता से बहुत प्रसन्न हुए और बाली को पाताल का राजा बना दिया। तथा देवताओं को इंद्रालोग पुनः लिया दिया।

16. हयग्रीव अवतार

देवी भागवत पुराण में भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार का वर्णन है, प्राचीन काल में हयग्रीव नाम का एक राक्षस था इसका धड़ मनुष्य के सामन था और सर घोड़े के समान था इस राक्षस ने देवी को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने हयग्रीव से वरदान मांगने के लेते कहां हयग्रिव ने देवी से अमरता का वरदान मांगने लगा लेकिन यह वरदान उसे नहीं मिला तो यह वरदान मांगा की उसका वध केवल दूसरे हयग्रीव से ही हो सके।

वरदान पाते ही हयग्रीव तीनों लोकों में हाहाकार मचाने लगा और ब्रह्मा जी से वेदों को चुरा लिया तब भगवान विष्णु और हयग्रीव के बीच भीषण युद्ध की काफी समय तक युद्ध चलता रहा लेकिन युद्ध का कोई परिणाम नहीं हुआ। जब भगवान विष्णु युद्ध कर थक गए थे तब वरमी नाम का कीड़ा ब्रह्मा जी के आदेश पर उनके धनुष की प्रत्यंचा को काट दिया। यह प्रत्यंचा बोहोत तेज गति से भगवान विष्णु के गले पर लगी जिससे उनका सर धड़ से अलग हो गया।

बाद में ब्रम्हा जीने एक घोड़े का मस्तक भगवान विष्णु के धड़ पर जोड़ दिया। और भगवान विष्णु का हयग्रीव अवतार हुआ तब भगवान हयग्रीव अवतारने सुदर्शन चक्र से असुर हयग्रीव का मस्तक काट कर उसका वध कर दिया और वेदों को पुनः प्राप्त कर लिया।

17. श्रीहरी अवतार

त्रिकुट पर्वत और गजेंद्र नामक हाती अपने हथिनियों के साथ रहित था एक सरोवर में जब गजेंद्र अपनी हथिनियों के साथ स्नान कर रहे थे तब एक मगर ने गजेंद्र के पैर को पकड़ लिया और सरोवर में खींचने लगा। कई सालों तक यह चलता रहा बाद में गजेंद्र में श्री हरि का स्मरण किया और श्री हरि प्रकट हो गए और उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से मगर का वध कर गजेंद्र की रखा की थी।

18. भगवान परशुराम

भगवान परशुराम को भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों में अठरावा अवतार कहा जाता हैं। इनका जन्म ब्राम्हण परिवार में माता रेणुका और पिता जमदग्नि से जानापाव पर्वत पर हुआ था और इनका नाम राम रखा गया। भगवान शिव की कठिन तपस्या कर के इन्होंने युद्ध कला में निपुण होने का और भगवान शिव से एक दिव्य अस्त्र प्राप्त करने का वरदान मांगा भगवान शिव ने इन्हे फरसा दिया जिस कारण इन्हें परशुराम भी कहा जाने लगा। इन्होंने कई अधर्म राजाओं का वध कर दिया इन्होंने एक काल में धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था।

19. महर्षि वेदव्यास

धर्म ग्रंथों में महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु का ही कलावतार कहा गया है, इनका जन्म महाभारत काल में हस्तिनापुर यमुना तट पर हुआ था इनकी माता सरस्वती और पिता पराशर थे। महर्षि वेदव्यास एक महान वैदिक ऋषि थे इन्होंने वेदांत दर्शन को भली भाती समझाया का पुराणों की रचना की और गणेशजी के साथ महाभारत महाकाव्य की रचना की है।

20. हंस अवतार

ब्रह्मा जी अपने मानस पुत्रों में सनकादि मुनि के साथ अपनी दिव्य सभा में बैठे थे, सनकादि मुनियों ने पितामह ब्रम्हा जी से तत्वज्ञान संबंधित जिज्ञासा दिखाई, पच्चात ब्रम्हाजी ने परब्रम्ह परमात्मा से प्रार्थना की भगवान विष्णु ने एक हंस का रूप में सभा में अवतरित हुए और ब्रह्माजी और सनकादि मुनियों से परमज्ञान तत्वज्ञान साझा किया।

21. श्रीराम अवतार

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त्रेतायुग में रावण और अन्य दैत्यों का वध करने के लिए भगवान श्रीराम धरती पर अवतरित हुए है ।  भगवान श्रीराम अयोध्या में महाराज दशरथ और माता कौशल्या के पहले पुत्र थे, भगवान श्री राम के लक्ष्मण,भरत, और शत्रुघन, तीन भाई थे । महाराज जनक की पुत्री सीता के स्वयंवर में शिव धनुषको तोड़ कर श्रीराम का सीता के साथ विवाह हुआ माता सीता को देवी लक्ष्मी का अवतार कहा जाता हैं।

कुछ समय बाद श्रीराम की सौतेली माता कैकई ने श्रीराम और सीता को चौदह साल का वनवास और कैकई के पुत्र भरत को महाराज बनाने का वचन मांग लिया।

भगवान श्री राम और माता सीता जब चौदह साल के वनवास के लिए जा रहे थे तब छोटा भाई लक्ष्मणने भी उनके साथ वन आने का आग्रह किया श्रीराम के कई प्रयासों बाद भी लक्ष्मण नही माने और माता सीता और श्रीराम की सेवा के किए उनके साथ गए। महाराज दशरथ, भरत, शत्रुघ्न माता कौशल्या और समस्त अयोध्या की प्रजा बोहोत दुःख में थीं।

वन में माता सीताका रानव छल ने अपहरण कर लिया तब भगवान राम ने लक्ष्मण महाबली हनुमान, वनरराजसुग्रीव, जामवंत समेत वानर सेना के सात रावण से युद्ध किया और रावण का वध कर माता सीता को चौदह साल बाद वनवास पूर्ण कर अयोध्या ले आए।

22. श्रीकृष्ण अवतार

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भगवान श्री कृष्ण को पूर्ण अवतार माना जाता हैं वे ६४ कलाओं में निपूर्ण थे। भगवान मथुरा के कारागृह में देवकी के आठवें संतान के रूप में अवतरित हुए थे कंस से शिशु को दूर रखने के लिए भगवान विष्णु की आज्ञा पर पिता वासुदेव ने उन्हें गोकुल में नंदजी के पास दे दिया।

भगवान श्री कृष्णकी मधुर और दिव्य लीलाओं की वजह से उन्हें लीलापुरषोत्तम कहा जाता हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने शिशु – अवस्था में ही कंसके भेजे हुए पूतना और त्रिनावत इन मायावी राक्षसों का वश कर दिया था। भगवान श्रीकृष्ण बाल्य अवस्था में वृंदावन में गायों चराते थे जिस कारण उन्हें गोपाल कहा जाता है।

द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर ,कंस, कालयवन समेत कई दृष्ट असुरों का वध किया।

महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी बने और उन्होंने कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग के समेत श्रीमदभगवद्गीता का ज्ञान दिया।

23. बुद्ध अवतार

भविष्य पुराण और भागवत पुराण में भगवान बुद्ध भगवान विष्णु के अवतार कहे गए हैं। भगवान बुद्ध का अवतार कलियुग के आरंभ के 1000 बाद इन्होंने वेद धर्म की रक्षा के लिए अवतार लिए था ।  ये कश्यप ब्राह्मण थे इनकी माता का जायनी और पिता कश्यप थे |

24. कल्कि अवतार

धर्म ग्रंथों में भगवान विष्णु के कल्की अवतार का वर्णन मिलता हैं जब घोर कलियुग अपने चरम पर होगा तब भगवान कल्की का अवतार होंगा। भगवान कल्की कलियुग का अंत कर पुनः सतयुग की स्थापना करेंगे।

FAQ,

भगवान विष्णु के चौबीस अवतार कौनसे है?

धार्मिक ग्रथों में भगवान विष्णु के कुल २४ अवतारों का वर्णन किया है जिसमे श्री सनकादि मुनि, वराह अवतार, नारद मुनि, नर-नारायण, कपिल मुनि, श्रीदत्तात्रेय, यज्ञ अवतार, ऋषभदेव, आदिराज पृथु, मत्स्य, कूर्म, धन्वंतरि, मोहिनी, नृसिंह, वामन देव, हयग्रीव, श्रीहरी, परशुराम, महर्षि वेदव्यास, हंस, श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध और कल्कि अवतार है।

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हरे कृष्ण! जय श्री राधेश्याम!

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