मन को शांत और नियंत्रित कैसे करें.
अगर मन में लगातार उथल-पुथल होती रहती हैं। तो यह गंभीर समस्या बन सकती हैं, अगर मन को नियंत्रित और शांत न रखा जाएं तो व्यक्ति को तनाव, दुख, भय और क्रोध के अधीन होने में ज्यादा समय नहीं लगता । जिस कारण जीवन किसी सरोवर के बाहर छटपटाती मछली की स्थिति के तरह लगता हैं।
लेकिन अगर मन को शांत रखा जाएं तो व्यक्ति हर स्थिति में आनंद ही पाता हैं, या वह आनंद के सरोवर में ही खेलता हैं , यह आंनद का सरोवर ध्यान हैं ध्यान केवल मन पर नियंत्रण करके ही किया जा सकता हैं।
मन में लगातार उथल-पुथल होती हैं या मन शांत नहीं रहता इस समस्या का निवारण केवल अभ्यास से संभव हो सकता हैं, इस समस्या को जड़ से ही समाप्त करने के लिए 8 उत्तम उपाय बताएं हैं जिससे हर कोई व्यक्ति मन को शांत कर शांति का चरम आनंद प्राप्त कर सकता हैं.
मन शांत क्यों नही हैं? इसके कारण पर ध्यान दीजिए।
मन शांत न रहने के मुख्य दो कारण हो सकते हैं भोगवाद या भय,
भोगवाद: भोगवाद यानी अगर मन की सांसारिक विषयों से आसक्ति हैं और मन सांसारिक विषयों के सुख को भोगने की इच्छा करता हैं, और इस इच्छा में बाधा आती है या पूर्ण नहीं होती तो
इसमें उथल-पुथल होना तो प्राकृतिक हैं मनुष्य के साथ अन्य पशुपक्षी भी भोगवाद से मुक्त नहीं हैं । जिसकारण पशुपक्षियों में क्षेत्र, संभोग इत्यादि के लिएं लड़ाईयां होती हैं।
मन शांत और संतुष्ट नहीं रहने के भोगवाद और अहंकार से निकले कुछ कारण जानते हैं.
- कोई इच्छा लंबे समय से पूर्ण न होना
- इच्छा पूर्ण न हो पाना।
- कर्म में बाधा उत्पन्न होना।
- सकाम कर्म का फल न प्राप्त होना।
- स्वयं की मान हानि होना, या शारीरिक हानि होना ।
- किसी अपने व्यक्ति की मानहानि या शारीरिक हानि होना।
- किसी अन्य व्यक्ति से जलन होना।
भय: अगर मन किसी तरह के भय के अधीन है तो भी मन अशांत हो जाता हैं।
अशांत करने वाले कारणों को मन पर हावी न होने दें.
मन अशांत होने के पीछे के कारण को स्पष्ट करने के बाद अब अगला काम है इन्हें मन पर हावी न हो देने का अभ्यास करना।
मन को शांत करने का अभ्यास कैसे करेंगे.
1. सांसारिक सुखों का भोक्ता बनना छोड़ें.
सांसारिक सुखों को भोगने के लिए व्यक्ति का मन इंद्रियों और बुद्धि को अपने काम में लेकर सकाम कर्म करता हैं। जितनी तीव्र आसक्ति हैं मन उतना डुबकर सांसारिक सुख को प्राप्त करने की इच्छा करता है। लेकिन किसी कारण से अगर यह इच्छा पूर्ण न होती हैं तो मन अशांत हो जाता हैं ऐसी स्थिति में क्रोध, तनाव और दुख का भी निर्माण हो जाता हैं।
इस समस्या को जड़ से समाप्त करने के लिए कर्म के फल की आसक्ति को त्याग देना हैं, और केवल बिना फल और परिणाम की कामना किए केवल कर्म करना हैं, इसे ही निष्काम कर्मयोग कहते हैं।
यह किसी किसी के लिए सुनने में अटपटा लग सकता हैं किंतु कर्म फल से आसक्त होना का सीधा अर्थ है मन को पूर्ण रूप से फल के लिए समर्पित कर देना यह मूर्खता हैं।
अगर कर्म का फल प्राप्त हो जाता है तो फल को त्यागने की आवश्यकता नहीं हैं। किंतु इस फल से स्वयं को आसक्त नहीं करना हैं। बिना फल से आसक्त हुए भी निस्वार्थ भाव से कर्म और फल प्राप्त करना आसक्त होकर कर्म करने से ज्यादा सहज हैं।
2. निर्भय बने.
भय के कारण कई बार मन अशांत हो जाता हैं, भय का कोई अस्तित्व नहीं होता, निर्भय होकर या भयभीत होने से परिणाम पर कोई असर नहीं होता, तो निर्भय होने में क्या समस्या हैं। भय के कारण लिए गए निर्णयों से निर्भय होकर लिए गए निर्णय उत्कृष्ट होते हैं।
3. करुणा, दया, क्षमा और अन्य जीव के लिए प्रेम इत्यादि में विकास कीजिए.
जो व्यक्ति अपने हृदय में करुणा, दया, क्षमा और अन्य जीव के लिए प्रेम को विकास करता हैं, उसका मन निश्चित ही शांत हैं। बिना इन सदगुणों का अमृत पान किए मन को शांत करना असम्भव हैं।
इन सदगुणों के विपरीत क्रोध, घृणा, ईर्षा, अहंकार और हिंसा एक अशांत मन के लक्षण होते हैं। इन का त्याग करने से मन कुछ समय के लिए शांत अवश्य हो जाता हैं। किंतु सदगुणों के आधारस्तंभ के बिना मन ज्यादा समय तक शांत नहीं रह पाता हैं।
4. नशा बुरानियों से दूर रहें.
नशा की लत व्यक्ति को इतना कमजोर बना देती हैं की वो अपना पूर्ण जीवन केवल नशा करने के लिए ही जीता हैं। नशा करना शरीर के लिए तो हानिकारक और जानलेवा तो है ही लेकिन व्यक्ति का मन भी नशे के अधीन हो जाता हैं । नशे की लत अगर लग जाती हैं तो ये मन पर इतनी बुरी तरह हावी हो जाती है की एक दिन भी वो बिना नशे के नहीं रह पाता।
इसी तरह बुरी अन्य बुरी आदतें भी मन पर हावी हो जाती हैं। या इनकी भी लत ही लग जाती हैं।
5. हर स्थिति में शांत रहने का प्रयास कीजिए.
हर स्थिति में शांत रहना और उस स्थिति का सामना करना कर किसी के बस की बात नहीं होती, खासकर वे जिनके मन सांसारिक सुखों ने बहुत कमजोर कर दिए हैं। लेकिन जो व्यक्ति हर स्थिति में शांत और अविचल रहते हैं, उनका अपने मन पर निरंत्रण होता हैं। इस अविचल स्थिति को प्राप्त करने के लिए मन पर बुद्धि के द्वारा हावी होकर हर स्थिति का सामना किया जा सकता हैं।
6. ध्यान कीजिए.
ध्यान करने के लिए मन पर नियंत्रण होना आवश्यक है। ध्यान करना मन को एकाग्र करने का अभ्यास हैं। ध्यान क्या है और ध्यान कैसे करे उसे जानने के लिए अन्य लेख को अवश्य पढ़िए।
ध्यान करने के लाभ दैवी वरदान से कम नहीं हैं इससे मन तो शांत होता ही हैं, और जीवन मरण चक्र से परे परमानंद मोक्षधाम को प्राप्त हुआ जा सकता है। जिससे जीवन जीते हुए भी दिव्य सुख का अनुभव होता हैं ध्यान में उच्च सिद्ध प्राप्त कर योगी स्वयं को परमात्मा की तरह शुद्ध, करुणामय कर देता हैं ।
7. भगवान या भगवती की भक्ति में मन लगाएं.
भगवान या भगवती की भक्ति करना उनके इश्वर के लिए समर्पण और प्रेम को दर्शाता हैं, भगवान नाम कीर्तन मंत्रजप और जीवन को भगवान के लिए सभी कर्मफल समर्पित करने से भगवान की कृपा प्राप्त होती हैं। भक्त अपनी चेतना को भगवान में स्थित करता और परम शांति को प्राप्त हो जाता हैं। वे भक्त सांसारिक विषयों, आसक्ति समस्त भौतिक सुख और इंद्रियतृप्ति कि कामना से विरक्त हो जाते है, और भगवान में ही विलीन होकर परमसुख, परमशांति, परमआनंद को प्राप्त हो जाते हैं।
निष्कर्ष;
मन को शांत और नियंत्रित करने के लिए मन को आसक्ति से हटाकर निष्काम कर्म , ध्यान और ईश्वर के भक्ति के लगाने के आवश्यकता है। और नशा बुराइयां से भी दूर रहना चाहिए।