साधकों इस लेख में आपको आपके सत्य स्वरूप को पहचानने के बारे में जानकारी दी गई है। आत्मज्ञान यानी स्वयं का ज्ञान, चलिए जानते हैं आत्म ज्ञान क्या होता है और आत्म ज्ञान कैसे प्राप्त करें।
आत्मज्ञान क्या है? – Aatm Gyan Kya Hai
अगर कोई आपसे सवाल करें की आप कोन है तो आप वही जवाब देते है जिनसे लोग आपको पहचानते है , कोई अपने पिता का नाम बताएंगे कोई अपना नाम बताएंगे या अपना पद बताते है, और कोई अपनी प्रशंसा कर देंगे।
लेकिन साधकों आत्मज्ञान यह ज्ञान या जानकारी नहीं है ,आत्म ज्ञान को सत्य का ज्ञान और परम् ज्ञान भी कहते है। आत्म ज्ञान प्राप्त करने के बाद आपको आपके जीवन में कुछ भी जानना बाकी नहीं रहता। आत्मज्ञान आपके सत्य स्वरूप यानी आत्मा की अनुभूति होती है, आत्म आपके इंद्रियों से परे आपके विचारों से और कल्पना से भी परे हैं।
आत्मा के प्रकाश का उल्लेख हमे श्रीमद् भागवत गीता में मिलता है जहां भगवान श्री कृष्ण अपने शरण में आए शिष्य अर्जुन को ज्ञान प्राप्त करवाते है।
गीता के दूसरे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को शरीर और आत्मा के अंतर को कहते है।
अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः । अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ॥
भावार्थ : इस नाशरहित, अप्रमेय, नित्यस्वरूप जीवात्मा के ये सब शरीर नाशवान कहे गए हैं, इसलिए हे भरतवंशी अर्जुन! तू युद्ध कर॥
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः । उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्वदर्शिभिः ॥
भावार्थ : असत् वस्तु की तो सत्ता नहीं है और सत् का अभाव नहीं है। इस प्रकार इन दोनों का ही तत्व तत्वज्ञानी पुरुषों द्वारा देखा गया है॥
…………
अवश्य पढ़िए:
श्रीमद्भगवद्गीता – हिंदी[PDF] Download
आत्मज्ञान कैसे प्राप्त करें? – Aatm Gyan Kaise Prapt Karen
जिस तरह किसी मकान को बाहर से देखने के लिए मकान से बाहर निकलना होता है बिलकुल उसी तरह स्वयं को जानने के लिए या आत्मज्ञान की अनुभूति के लिए स्वयं से अलग होने की आवश्कता है।
आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए आपको आपकी अहंकार की भावना को पूरी तरह नष्ट करने की आवश्कता है, और अपने मन को सांसारिक विषयों से दूर करना है।
आपके अहंकार को शून्य करने के लिए आपको मैं कोन हूं इस सवाल को स्वयं से पूछना है, और इसका उत्तर भी आपको स्वयं में ही प्राप्त होंगा।
लेकिन आत्मज्ञान प्राप्त करना इतना सहज नहीं है। अगर आप एक ऐसे व्यक्ति है जो माया के अधीन हो चुके है संसार के रिश्ते-नाते, सुख-दुख आपको कटपुतली की तरह नचाते है, तो स्वयं तक पहुंचना कठिन हो सकता है।
अवश्य पढ़िए – राजा जनक और अष्टावक्र का संवाद
आत्म साधना करने के लिए आपको सीधा बैठ कर अपने प्राण वायु को भुवायो के मध्य में स्थित करना है।
आपके अहंकार की भावना को शून्य कीजिए
जब आप स्वयं ध्यान करेंगे तब आप जानिए की आपका अहंकार जिसकी जड़ “मैं ” है उसने कैसे आपको धोखे में रखा है। आपका अहंकार आपके आत्मा के प्रकाश को ढक सा देता है, और आप कभी आत्म-ज्ञान प्राप्त ही नहीं कर पाते।
मन को अपना दास बनाएं
अहंकार के बाद आपका मन आपका वह शत्रु है। जो आपको जीवन भर सुख और दुख देता है आपका मन हमेशा किसी शत्रु की तरह आपसे बर्ताव करता है। आपके मन ने आपके सभी इंद्रियों और आपकी बुद्धि को वश में करता है।
अगर आपका मन किसी वस्तु और विषय पर आकर्षित होता है तो संपूर्ण भौतिक शरीर आपके मन के अधीन हो जाता है। और आपको पता भी नही हो पाता की आपका मन क्या कर रहा है।
लेकिन अगर मन को नियंत्रित रखा जाए तो यह एक मित्र हैं।
इन्हे अवश्य पढ़े: