अगर आप यह सोचते है की सृष्टि को बनाने वाले भगवान है तो आप सच्चाई से अनजान हो सकते हैं।
जब हम सृष्टि को जानते है यानी मनुष्य पशु पक्षी जीव जंतु और ग्रह तारे। जो हमारे दिमाग में सबसे पहले यहीं आता है की जरूर कोई होंगा जिसने इसे बनाया होंगा! लेकिन असली बात यह है की इसे बनाने वाला कोई नहीं यह स्वयं ही बनी है। सिवाय उसके जो इस सृष्टि को देखता हैं। अगर वह न देखे तो सृष्टि का कोई अस्तित्व ही नहीं है।
और यही बात इन प्राचीन ऋषियों ने देखी थी की इसका अस्तित्व मिथ्या है और वास्तविकता कुछ और है ही है जो दुनिया का सार है।
वैदिक शास्त्र और कई महान ऋषियों और तत्वज्ञानियों के दर्शन के अनुसार सृष्टि को भगवान ने नहीं बनाया।
अगर हम सबसे प्राचीन वैदिक धर्म के अनुसार जानें तो सृष्टि बनाने वाले भगवान नहीं हैं बल्कि ब्रह्मा है। भगवान यानी परम आत्म सृष्टि का कारण है।
हम विष्णु, शिव, शक्ति और इनके अवतारों को परमात्मा का स्वरूप मानते हैं। परंतु जिसने इस सृष्टि को बनाया ब्रह्मा जी – वह परमात्मा नहीं माने जाते ।
सृष्टि बनाने वाला कोई और है और भगवान कोई और है। इसे समझने के लिए आपको सृष्टि और परमात्मा के परस्पर अंतर को समझना होगा तभी आप इस सृष्टि के रहस्य को समझ सकते है।
परमात्मा को सीधे सीधे सृष्टि का रचनाकार नहीं कहा जा सकता लेकिन वह इसके मूल कारण हैं । सृष्टि के कारण सृष्टि रचैता से भिन्न हो सकता है। जैसे कोई कुंहार तरह तरह की मटकी और अन्य बहुत प्रकार के बर्तन बनाता है । लेकिन इन बर्तनों के उस सृष्टि का कारण मिट्टी होती है।
उसी तरह-तरह के रंग, रूप, आकार धारण किए हुए यह सृष्टि का कारण परमात्मा है। उदाहरण के तौर पर हम कुंहार की जगह ब्रह्माजी को दे सकते है। लेकिन इन दोनों मामले में अंतर है कुंहार का मिट्टी के बर्तनों के सृष्टि से अलग अस्तित्व है। लेकिन ब्रह्मा इस सृष्टि का रचनाकार होकर भी सृष्टि से अलग नहीं वह इस सृष्टि का ही एक विषय है, वह इस सृष्टि का आरंभ है । पालनाहार भगवान विष्णु और विनाशक शिव है। इन तीनों देवताओं के अधीन सृष्टि की उत्त्पति , विकास और विनाश होता है।
परमात्मा सर्वोच्च आत्म है जिसमें यह स्थित रहती हैं । वह सबमें व्याप्त हैं। जैसे मिट्टी के हर बर्तन में मूल अस्तित्व मिट्टी का ही होता है। आकार प्रकार सब मिथ्या कहे जा सकते है और मिट्टी को वास्तविकता कहा जा सकता है।
इस दुनिया के अस्तित्व अलग अलग रंग पहनाचान आकर प्रकार जन्म जरा मृत्यु एक दूसरे के विपरित होकर भी इनका सार एक ही परमात्म तत्व हैं।
जब हम ध्यान की उच्चतम अवस्था यानी समाधि में स्थित होते है तो उस परम तत्व का साक्षात्कार करते है जो हमारे अस्तित्व की सच्चाई है।
जब कोई अज्ञान के प्रभाव से स्वयं का दुनिया से और परमात्म से अलग अस्तित्व मान लेता है इसे अज्ञान कहा जाता है।
जब प्रमाणिक योग, ज्ञान और साधना की शरण लेने से व्यक्ति आत्मज्ञान साक्षात्कार करता है और स्वयं के अस्तित्व में मूल सार यानी परमात्मा में विलीन होकर स्वयं परमात्मा बन जाता है । और अमरता को प्राप्त हो जाता है।