कुंडलिनी शक्ति जागरण | kundalini shakti jagran
अगर आप एक सामान्य मनुष्य जीव की तरह जीवन व्यतीत कर रहें हैं तो यह कहने में कोई संदेह नहीं की आप अंधकार में जीवन व्यतीत कर रहें हैं। यह जीवन रात्रि के समय अंधकार में घूमने जैसा हैं यह अंधकार कहीं बाहर नहीं बल्कि भीतर ही हैं। कई लोग तो इस बात से भी अज्ञानी हैं की इस अंधकार से परे भी प्रकाश हैं यह दिव्य प्रकाश जो किसी के भी भीतर के अंधकार और नकरात्मकता का सर्वनाश करने की क्षमता रखता हैं कुंडलिनी की जागृत अवस्था दिव्य प्रकाश का उदय हैं।
कुंडलिनी जागरण वह दिव्य प्रकाश हैं जो इस अंधकारका सर्वनाश करता हैं। और योगी असंप्रज्ञात समाधि को प्राप्त होते हैं।
कुंडलिनी जागरण के बाद साधक के अज्ञान का नाश हो जाता हैं सभी चक्र साफ हो जाते हैं। आत्मविश्वास का निर्माण होता हैं, काम, क्रोध, लोभ, मोह, घृणा, नकारात्मकता और विषाद का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता हैं।
कुंडलिनी क्या हैं? इसपर अन्य लेख प्रकाशित हैं। इस लेख में कुंडलिनी जागरण क्या हैं जानिए।
कुंडलिनी जागरण क्या हैं? | Kundalini jagran kya hai?
कुंडलिनी शक्ति को एक भयानक सर्पिणी की तरह बताया जाया हैं अगर इसपर नियंत्रण रख पाए तो कुंडलिनी एक वरदान बन सकतीं हैं। यह कुंडलिनी शक्ति जो की मूलाधार चक्र में यानी यौन केंद्र के समीप साढ़े-तीन घेरे में जन्मों जन्म से सोई होती हैं, और इसकी पूंछ इसके मुख में दबी होती हैं।
जब यह सर्प जागता हैं। नीचे से ऊपर की और बढ़ता हैं। इस सर्प के जागने को कुंडलिनी जागरण कहा जाता हैं। कुंडलिनी शक्ति दिव्य तेज और चैतन्य हैं। वह पूर्ण ऊर्जा हैं इस ऊर्जा के प्रवाह में बह जाना दिव्य आनंद हैं। यह मूलाधार से होकर सहस्त्रहार तक बढ़ती हैं और विभिन्न अनुभवों और शक्तियों से पूर्ण योगी समाधि को उपलब्ध होता हैं।
अगर नए साधक की कुंडलिनी जागृत होती हैं, तो इसे नियंत्रित रख पाना कठिन हो सकता हैं, इसका परिमाण भयंकर हो सकता हैं। कुंडलिनी शक्ति जागरण के भारी नुकसान भी हैं। अगर कोई इस शक्ति को नियंत्रित नहीं कर पाता तो वह पागल हो सकता हैं, स्वयं को नुकसान पहुंचा सकता हैं और इससे शारीरिक हानि भी हो सकती हैं।
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अगर कुंडलिनी जागृत हो जाती हैं तो इसे जानने में कोई संदेह नहीं हो सकता। यह दिन के उजाले से भी साफ होंगा।
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कुछ उदाहरणों से कुंडलिनी जागरण की अवस्था की समझते हैं।
1) यह किसी नदी में बाड़ आने की तरह हैं। जब नदी में बाड़ आती हैं नदी अपनी सीमा को तोड़ देती हैं । बिलकुल इसी तरह जब कुंडलिनी शक्ति जागृत होती हैं व्यक्ति के भीतर ऊर्जा प्रवाह में बाड़ आ जाती हैं जो उसके भौतिक संसार के बंधनों और सीमाओं की तोड़ सकतीं हैं ।
2) इसे हम इस तरह भी समझ सकते हैं की अगर किसी एक कमरे में हजारों वोल्ट के सैकड़ों बल्ब लगे हुए हैं लेकिन स्विच बंद हैं। कमरें ने अंधकार हैं। इस बात से अनजान व्यक्ति को इस अंधेरे कमरें में भेजे और अचानक बल्ब का स्विच ऑन कर दे तो क्या होंगा? वह व्यक्ति की हड़बड़ा जाएंगा बुद्धि तिलमिला जाएंगी। और आंखे चकाचौंध हो जाएंगी। कमरें में फैला अंधकार जीवात्मा के अज्ञान की तरह हैं। हजारों वोल्ट के सैकड़ों बल्ब का एक साथ शुरू होना कुंडलिनी जागरण की तरह हैं। लेकिन इस प्रकाश को हम भौतिक संसार का प्रकाश के तरह नहीं ले सकते। यह आध्यामिक तेज हैं जो आनंदमय हैं।
3) एक तारा जीवित होते हुए सीमा तक ऊर्जा का निर्माण करता हैं। तारा ऊर्जा से पूर्ण होता हैं। लेकिन जब तारें में विस्फोट होता हैं। यह अपनी सीमा से कई अधिक गुना ऊर्जा से भर जाता हैं। इसी तरह से सोई हुई कुंडलिनी शक्ति एक सीमा तक मर्यादित होती है। लेकिन जब यह जागृत होती हैं यह कई गुना ज्यादा ऊर्जात्मक हैं ।
इस अवस्था साधक को वैराग्य की तलवार से मन के सकाम कर्म को काटने की अवश्यकता हैं जो कर्ताभाव के प्रभाव में होते है वे शायद कुंडलिनी जागृत होने पर पागलों की तरह हरकते कर सकते है या बहुत घबरा सकते है । जो इस कुंडलिनी शक्ति को नियंत्रित कर पाता हैं तो इसमें कोई संदेह नहीं की वह एक सिद्ध योगी कहा जाएं।
जब कुंडलिनी शक्ति उपर की और बढ़ती हैं। यह उस अवस्था पर जाति हैं जहां ऊर्जा नीचे से ऊपर की और बढ़ती हैं यह दिव्यतेज, चेतना और ऊर्जा से भर जाती हैं और इस तरह सभी चक्रों, वृत्तियों को पर कर सहस्त्रहार तक पहुंचती हैं। और साधक असंप्रज्ञात समाधि में वीलीन हो जाता हैं।
सहस्त्रहार तक पहुंचने के बाद साधक अहम को खोकर कर अनंत को प्राप्त हो जाता हैं। बुद्धि स्थिर ही जाती हैं। और मन परमात्मा में विलीन हो जाता हैं।
निष्कर्ष
कुंडलीनी शक्ति का जागरण(kundalini shakti ka Jagran) साधक को पूर्ण ऊर्जा से भर देता हैं जो अनंत की यात्रा हैं। अनंत की प्राप्त होकर समाधि को उपलब्ध होता हैं। लेकिन नए साधकों के लिएं कुंडलीनी जागरण से कुछ भारी नुकसान भी हो सकते हैं।