कृष्ण गायत्री मंत्र | ॐ देविकानन्दनाय विधमहे वासुदेवाय | फायदें और अर्थ सहित
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कृष्ण गायत्री मंत्र | ॐ देविकानन्दनाय विधमहे वासुदेवाय | फायदें और अर्थ सहित

Krishna Gaytri Mantra1 (1)

Krishna Gaytri Mantra:

भगवान कृष्ण अपने भक्तों के पापों का विनाश करते है, जिससे उनके भक्तों का शीघ्र ही उद्धार होता हैं। भगवान कृष्ण के भक्त अनन्य भक्ति भाव से कृष्ण का स्मरण, भजन और मंत्र जाप करते है। इन्हीं मंत्रों में से एक मंत्र है; इसे कृष्ण गायत्री मंत्र कहा जाता है।
साधकों भगवान कृष्ण का यह कृष्ण गायत्री मंत्र क्या है ; कृष्ण गायत्री मंत्र के लाभ ; और मंत्र के हिंदी में कुछ अर्थ आप इस लेख में जानने वाले है।

कृष्ण गायत्री मंत्र के बोल

Krishna Gaytri Mantra1 (1)

ॐ देविकानन्दनाय विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात:
Om Devīkānandanāya vidmahe Vāsudevāya dhīmahi Tanno Kṛṣṇaḥ prachodayāt

कृष्ण गायत्री मंत्र का अर्थ

आइए इस मंत्र के शब्दों से इसका एक अर्थ जानते है।

ॐ (Om) : ॐ (ओम) सभी मंत्रों का शिरोमणि मंत्र है, परमात्मा के ध्यान के लिए इसका जाप किया जाता है, सभी अस्तित्व की शुरवात इस ध्वनि से ही हुई हैं।

देविकानन्दनाय विधमहे (Devīkānandanāya vidmahe): देवकी के नंदन का ध्यान करते है, देवकी भगवान कृष्ण की माता का नाम है।

वासुदेवाय धीमहि (Vāsudevāya dhīmahi): हम वासुदेव के पुत्र का ध्यान करते है।

तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात: (Tanno Kṛṣṇaḥ prachodayāt): कृष्ण से बुद्धि को प्रेरित करने की प्रार्थना करते है।

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कृष्ण गायत्री मंत्र का अर्थ: मैं देवकी और वासुदेव के पुत्र का ध्यान करता हूँ, वे हमें उच्च बुद्धि और मार्गदर्शन प्रदान करें”

कृष्ण गायत्री मंत्र का एक और अर्थ कहा जाता है : माता देवकी और पिता वसुदेव के पुत्र कृष्ण को ह्रदय में स्थित करते है वह हमारे मन के विकारों को नष्ट करें।

कृष्ण गायत्री मंत्र जाप का महत्व और लाभ

आइए कृष्ण गायत्री मंत्र के लाभ जानते है।

भगवान कृष्ण (परमात्मा) से दिव्य संबंध: इस मंत्र का जप करने से भगवान कृष्ण की दिव्य चेतना के साथ गहरा संबंध स्थापित करने में मदद मिलती है।

भगवान कृष्ण के दिव्य संबध से मोक्ष की प्राप्ति: मंत्र जाप से व्यक्ति भगवान कृष्ण जो सभी जीवों में परमात्मा रूप में विराजमान है उससे भक्ति संबंध स्थापित करता है। जिससे वह सांसारिक बंधनों से मुक्ति प्राप्त कर पाता है और मोक्ष धाम को प्राप्त हो सकता है।

आसुरी गुणों से मुक्ति : काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्षा, घृणा और अहंकार ये सब आसुरी गुण है, इससे व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। और वह अपनी शांति खो देता है। भगवान कृष्ण निरंतर के स्मरण से ये आसुरी गुण नष्ट होने लगते है।

आध्यात्मिक विकास: कृष्ण गायत्री मंत्र साधक को आध्यात्मिक विकास में सहायता करता है, मंत्र के जाप से प्रेम, करुणा और भगवान k भक्ति जैसे दिव्य गुणों को बढ़ाता है।

आंतरिक शांति और अंतरिक निर्मलता : नियमित जाप से आंतरिक शांति और मन की निर्मलता को बढ़ाव मिलता है, साधक में शांति और कल्याण की भावना पैदा हो सकती है। इससे विकार जिसे तनाव और चिंता से भी मुक्ति मिलती है।

ज्ञान और उच्च बुद्धि: यह भगवान कृष्ण का कृष्ण गायत्री मंत्र आध्यात्मिक मार्ग के ज्ञान, बुद्धि और समझ प्राप्त करने के लिए उपयोगी है। इससे व्यक्ति अपने कल्याण की और बढ़ता हैं।

कृष्ण गायत्री मंत्र का जप कैसे करें:

  1. अधिकतम लाभ के लिए सही उच्चारण सुनिश्चित करें।
  2. जप करते समय शब्दों के ध्वनि पर ध्यान केंद्रित करें।
  3. भक्ति और भावना के साथ जप करें।
  4.  मंत्र जाप करते समय मन का सांसारिक विषयों का मोह बाधा उत्पन्न कर सकता है। साधक नियमित स्मरण और जाप से मन को नियंत्रित कर पाने में सक्षम हो सकता है।
  5. मंत्र के पूर्ण लाभों का अनुभव करने के लिए लगातार अभ्यास महत्वपूर्ण है।

 

जय श्री राधे कृष्ण!

हरे कृष्ण!

 

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