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Jivan Kya Hai | जीवन क्या हैं? | आत्मा साक्षी

Vaishnava

कई लोग को जीवन को लेकर अपनी अपनी टिप्पणी देते हैं । जीवन को लेकर सबके विचार अलग-अलग हैं । जो जीवन में सुखी हैं वो जीवन को इश्वर का वरदान कहते हैं, जो दुखों से युद्ध कर रहे हैं वो जीवन को एक युद्ध मानते हैं । जो जीवन में प्रगति प्राप्त करना चाहते है उनके लिए जीवन जीना किसी कर्म की तरह हैं ।

लेकिन अगर आत्म ज्ञान प्राप्त कर जीवन को जाने तो जीवन इन सब तरह के टिप्पणियों से भिन्न है । एक आत्मज्ञानी या तत्वज्ञानी जीवन को इस तरह से नही समझता जिस तरह से अन्य मनुष्य जानते हैं ।

मनुष्य उनके जीवन का अनुभव लेकर जीवन पर टिप्पणी करते हैं। आत्म ज्ञानी भी इसी तरह जीवन को समझ कर जीवन पर टिप्पणी करता है।

आत्म-ज्ञानी की दृष्टि से जीवन क्या हैं? – Jivan Kya Hai

आत्म-ज्ञान प्राप्त कर कई रहस्यों को जाना जा सकता हैं। जीवन क्या है उन्ही रहस्यों में से एक रहस्य हैं। जीवन को रहस्य इसी लिए कहा की आत्मज्ञानी से अलग व्यक्ति जीवन को कभी इस तरह नही जान सकते हैं।

आत्म-ज्ञान साक्षात्कार कर व्यक्ति दिव्य आत्मा के दर्शन करता है आत्मा क्या हैं? इसे आप इस तरह से जान सकते हैं की आत्मा में ही हमारा जीवन संभव हो सका हैं। यह आत्मा के कारण की संपूर्ण जगत में जागरूकता हैं।

आत्मा का लक्षण चेतना है चेतना अनंत ब्रम्हांड में व्याप्त हैं अनंत ब्रम्हांड के कण-कण में चेतना व्याप्त हैं। इसी अनंत व्याप्त चेतना को परमात्मा का लक्षण कहा गया हैं।

जीवन को अगर आत्मा को साक्षी जानकर जीवन को जाने तो जीवन एक कल्पना से ज्यादा कुछ नही हैं । जीवन की कल्पना मन से शुरू हुई है, मन का संपूर्ण अतीत्व समाप्त हो जाने से आत्मा को मन, इन्द्रियों से भिन्न जाना जाता हैं। जीवन और मन में बसा संसार आकाश में होने वालें बादलों के समान के लुप्त हो जाता है और केवल सत्य आत्मा ही शेष रहती हैं।

इस स्थिति को प्राप्त करने को ही समाधि, मोक्ष और अद्वैत कहा गया हैं।

जब आत्म-ज्ञानी समाधि की अवस्था को प्राप्त करने वाला होता हैं। तब वह जीवन को और संपूर्ण संसार जो उसके मन में बसा है, लुप्त होने लगता हैं।

मन के साथ जीवन , और मन में बसा हुआ संसार का अस्तित्व समाप्त हो जाता हैं। और आत्म-ज्ञानी स्वयं को शुद्ध आत्मा जानता हैं,

   Jivan ki Shuddhta    

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समाधि की अवस्था प्राप्त करने पर  जो कुछ भी है सबका अस्तित्व समाप्त हो जाता हैं। समाधी को अनुभव करने वाला भी कोई नही रहता।

(असत् ) भौतिक शरीर और सत आत्मा श्रीमद भागवत गीता के अनुसार

कई ऐसे ग्रंथ और पुराण हैं, और कई ऐसे आचार्य और महान ऋषि भूतकाल में हो चुके है। जिन्होंने जीवन को असत्य मिथ्या कहां है और आत्मा को सत्य कहा हैं

श्रीमद भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण के द्वारा बोले गए श्लोक आत्मा की व्याख्या देता हैं।

नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः । उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः || 

भावार्थ :- तत्त्वदर्शियों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि असत् (भौतिक शरीर) का तो कोई चिरस्थायित्व नहीं है, किन्तु सत् (आत्मा) अपरिवर्तित रहता है। उन्होंने इन दोनों की प्रकृति के अध्ययन द्वारा यह निष्कर्ष निकाला है।

न जायते प्रियते वा कदाचिन् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः । अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीर ||

भावार्थ :- आत्मा के लिए किसी भी कल में जन्म और मृत्यु नही हैं। आत्मा ने ना तो जन्म लिया है, ना जन्म लेता हैं, और ना ही जन्म लेंगे, आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत, सनातन और पुरातन है। भौतिक शरीर के मारे जाने पर भी आत्मा नही मारा जाता हैं।

इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा को शाश्वत कहा हैं आत्मा सदा से है और सदा रहेंगी।

सुखी और दुखी जीवन क्या है

जीवन को लेकर अलग अलग तरह के लोग अलग अलग तरह के बाते करते हैं। लेकिन ये लोग वो है जो जीवन को जीव को दृष्टि से देखते हैं। जीव माया के अधीन होते हैं, इसी कारण वे जीवन में ही उलझ जाते हैं। जीवन में सुख और दुख होते है, जीवन को इन्द्रियों के कारण समझा जाता हैं,

अगर गहराई से देखें तो सुख और दुख मन और इन्द्रियों की ही रचना हैं। इसी कारण लोग जीवन को सुखी-जीवन और दुखी-जीवन कहते हैं।

जीवन में सुख दुख है लेकिन इन सुखों और दुखों का निर्माण उसी मन से होता हैं। अगर जीवन में दिखाए देने वाले भौतिक संसार से मुक्त हो जाए तो सुख कहां और दुख कहां।

मन के निमित होने वाला जीवन ना होने से योगी परम आनंद की अवस्था प्राप्त करता है।

जीवन में यातना, कष्ट क्या हैं?

जीवन में यातना पीड़ा है इसका कारण भौतिक शरीर और इंद्रियां हो सकते है। आत्मा भौतिक शरीर का हिस्सा नही हैं। आत्मा को किसी काल में सुख और दुख नहीं हैं। आत्मा को कोई यातना और कष्ट भी नही हैं।

अंतिम शब्द

आशा है आप जीवन क्या है इसे समझ गए होंगे जीवन का कारण मन है और भौतिक शरीर हैं। इस जीवन से परे मोक्ष की अवस्था हैं। निराकार ब्रह्म में विलीन हो कर जीवन से मुक्त हुआ जाता हैं। और एक शाश्वत आनंदमय अवस्था को प्राप्त किया जाता है। जिसे सभी अस्तित्व वान का अस्तित्व समाप्त हो जाता हैं।

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