जब आप ध्यान को समझने के लिए कोई उन्नत ग्रंथ पढ़ते हैं या किसी गुरु की शरण में जाते हैं, तो आप अवश्य ही वहां ध्यान चक्रों के बारे में जानकारी सुनते या पढ़ते हैं। लेकिन किसी भी शुरवती साधक के लिए इन सात चक्रों का वास्तविक अर्थ समझना आसान नहीं होता।
हम बचपन से ही शरीर के भौतिक अंगों के बारे में पढ़ते आए हैं, जैसे कि दिल छाती के अंदर होता है, मस्तिष्क खोपड़ी में स्थित होता है, और आंत व अग्न्याशय (पैंक्रियाज) पेट के भीतर होते हैं। लेकिन चक्र हमारे शरीर में कहां स्थित हैं? क्या इन्हें हम अपनी आंखों से देख सकते हैं?
जिस तरह से संगीत और ध्वनि होते हुए भी हमें दिखाई नहीं देते, फिर भी उन्हें सुना जा सकता है, उसी तरह ध्यान में बताए जाने वाले सात चक्र भी होते हुए किसी भौतिक वस्तु की तरह नहीं पाए जाते। ये हमारी ऊर्जा के अलग-अलग आयामों को दर्शाते हैं, जिन्हें केवल प्रत्यक्ष अनुभव किया जा सकता है।
जिस प्रकार इंद्रधनुष में सात अलग-अलग रंग होते हैं, लेकिन वे सभी सूर्य के प्रकाश में ही समाहित होते हैं, उसी प्रकार ये सात चक्र भी व्यक्ति की जागरूकता के अलग-अलग स्तरों को प्रकट करते हैं। यदि हम इन चक्रों को ध्यान और साधना के माध्यम से समझने का प्रयास करें, तो हम अपनी आंतरिक ऊर्जा के विभिन्न आयामों का अनुभव कर सकते हैं।
चक्र ध्यान के सात चक्र के नाम और उनका अर्थ और महत्व
ये सात चक्र प्रत्येक मनुष्य में विद्यमान होते हैं। कोई भी व्यक्ति इनसे अछूता नहीं है। यहां तक कि कुछ चक्रों के प्रभाव हमें पशु-पक्षियों में भी देखने को मिल सकते हैं। ये चक्र जीवों की ऊर्जा और जीवन के भिन्न-भिन्न स्तरों को दर्शाते हैं।
चक्र ध्यान के सात चक्र इस प्रकार हैं:
- मूलाधार चक्र (Muladhara Chakra)
- स्वाधिष्ठान चक्र (Swadhisthana Chakra)
- मणिपुर चक्र (Manipura Chakra)
- अनाहत चक्र (Anahata Chakra)
- विशुद्धि चक्र (Vishuddhi Chakra)
- आज्ञा चक्र (Ajna Chakra)
- सहस्रार चक्र (Sahasrara Chakra)
इन चक्रों को जीवन के विभिन्न आयामों के रूप में भी देखा जा सकता है। आइए, इन्हें एक-एक करके समझते हैं।
1. मूलाधार चक्र (Muladhara Chakra)
मूलाधार चक्र जीवों के जीवन का आधार होता है। यह जीवन की मूल प्रवृत्तियों और अस्तित्व से जुड़े पहलुओं को नियंत्रित करता है। यह चक्र जीवों की सबसे बुनियादी ज़रूरतों को प्राप्त करने की जागरूकता जैसे भोजन की पाना, खुद की और भौतिक वस्तु भोग साथी की सुरक्षा करना और प्रजनन कारण से जुड़ा होता है।
यदि आप किसी पशु को देखें, तो पाएंगे कि उसका पूरा जीवन इन्हीं जरूरतों के इर्द-गिर्द घूमता है। वह भोजन की खोज करता है, खुद को सुरक्षित रखता है, और अपनी प्रजाति को आगे बढ़ाने के लिए कार्य करता है।
मनुष्य भी मूल रूप से एक पशु ही है। आदिकाल में मनुष्य का जीवन भी इन्हीं आवश्यकताओं तक सीमित था— खाना ढूंढना (शिकार करना, गुमाना), आश्रय बनाना, और जीवित रहना और प्रजनन करना
यह चक्र जीवों के जीवन के लिए आवश्यक बुनियादी ऊर्जा प्रदान करता है,
लेकिन आध्यात्मिक जागरूकता के दृष्टिकोण से ये सबसे निकले स्तर की उर्जा का स्तर है,
जब कोई व्यक्ति केवल मूलाधार चक्र में अटका रहता है, तो वह केवल भौतिकता और अस्तित्व के बंधनों में और चिंताओ में ही फंसा रहता है।
2. स्वाधिष्ठान चक्र (Swadhisthana Chakra)
स्वाधिष्ठान का अर्थ है “स्वयं का स्थान”। यह चक्र व्यक्ति की इच्छाओं, भावनाओं और रचनात्मक मानसिकता से जुड़ा होता है।
जब यह चक्र जागृत होता है, तो व्यक्ति अपनी ऊर्जा को केवल अस्तित्व की बुनियादी आवश्यकताओं तक सीमित नहीं रखता, बल्कि वह अपने भीतर अपने जीवन को और अधिक समृद्ध करने की और जीवन में समस्त आनंद पाने कामनाओं को उत्पन्न करने लगता है।
यदि मूलाधार चक्र में व्यक्ति केवल जीवित रहने की चिंता करता है, तो स्वाधिष्ठान चक्र में वह जीवन को बेहतर बनाने की ओर अग्रसर होता है। इसलिए इस चक्र का स्थान मूलाधार से को एक स्तर उपर दिखाया जाता हैं।
3. मणिपुर चक्र (Manipura Chakra)
मणिपुर चक्र व्यक्ति के आत्मबल, इच्छाशक्ति और नेतृत्व करने की क्षमता को दर्शाता है।
जब यह चक्र सक्रिय होता है, तो व्यक्ति निःस्वार्थ कर्म करने में सक्षम होता है, जिससे वह दूसरों के लिए और समाज के लिए कोई काम करने को तैयार रहता है।
ऐसे लोग आत्म-प्रेरित होते हैं, और अपनी ऊर्जा को रचनात्मक और उत्पादक कार्यों में भी लगाते हैं।
मणिपुर चक्र से उत्पन्न ऊर्जा व्यक्ति को सशक्त, आत्मनिर्भर और प्रेरणादायक बनाती है।
जब यह चक्र असंतुलित होता है, तो व्यक्ति क्रोध, अहंकार और असुरक्षा से घिर सकता है।
4. अनाहत चक्र (Anahata Chakra)
अनाहत चक्र प्रेम, करुणा और संवेदनशीलता का प्रतीक है।
जब यह चक्र जागृत होता है, तो व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के सभी से प्रेम करता है। वह सभी जीवों के प्रति करुणा का भाव रखता है।
योगियों और संतों का हृदय अनाहत चक्र से प्रभावित होता है। वे संसार को प्रेम और सेवा की दृष्टि से देखते हैं।
5. विशुद्धि चक्र (Vishuddhi Chakra)
विशुद्धि चक्र व्यक्ति की आंतरिक पवित्रता और सत्य की अभिव्यक्ति से जुड़ा होता है।
जब यह चक्र जागृत होता है, तो व्यक्ति निर्मल, सत्यवादी और स्पष्ट वक्ता बनता है। वह अपने विचारों और शब्दों में कोई मिलावट नहीं करता।
योग और ध्यान के माध्यम से इस चक्र को जागृत किया जा सकता है, जिससे व्यक्ति सत्य और ज्ञान की ऊँचाइयों को छू सकता है।
6. आज्ञा चक्र (Ajna Chakra)
आज्ञा चक्र को “तीसरी आँख” भी कहा जाता है। यह व्यक्ति की बुद्धि, अंतर्ज्ञान और आध्यात्मिक जागरूकता को नियंत्रित करता है।
जब व्यक्ति अपनी चेतना को यहां पहुंचता है तो यह चक्र हमें दो रास्ते दिखाता है:
1. एक ओर व्यक्ति अपनी चेतना को ऊँचाइयों तक ले जा सकता है।
2. दूसरी ओर वह सभी चक्रों से ऊपर उठकर मोक्ष को प्राप्त हो सकता है।
जब आज्ञा चक्र पूरी तरह जागृत होता है, तो व्यक्ति को अध्यात्मिक ज्ञान, दिव्य दृष्टि और आत्म-ज्ञान की प्राप्ति होती है, जिससे उसे संसार के स्वरूप का और स्वयं के अस्तित्व का बोध होता है। जो इस चक्र तक पहुंचता है वह जीवों की ऊर्जा के बाकी स्तरों को भी समझ जाता हैं।
7. सहस्रार चक्र (Sahasrara Chakra)
सहस्रार चक्र कोई साधारण चक्र नहीं है, बल्कि सभी चक्रों का सार है।
सहस्रार चक्र को सिर के ऊपर यानी शरीर के बाहर दिखाया जाता है यह संकेत है की यह अस्तित्व से परे और सिर के ऊपर यानी परम ऊर्जा या दैवीय चेतना का प्रतीक हैं।
जो व्यक्ति अपनी चेतना को सहस्रार चक्र तक पहुँचा देता है, वह अस्तित्व यानी अहंभाव के बंधन से मुक्ति पाता है, परमानंद स्वरूप हो जाता है और सहज ही माया जगत के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।
यह चक्र योग और ध्यान की अंतिम सिद्धि को दर्शाता है। जब व्यक्ति इस अवस्था में पहुँच जाता है, तो वह आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्राप्त कर लेता है,
निष्कर्ष,
इन सात चक्रों को समझकर हम अपने भीतर के ऊर्जा स्रोतों को पहचान सकते हैं। ये चक्र हमारे जीवन के अलग-अलग रंगों की तरह होते हैं। जिस प्रकार इंद्रधनुष के सभी रंग सूर्य के प्रकाश से उत्पन्न होते हैं, उसी प्रकार ये सभी चक्र भी सहस्रार चक्र से ही प्रकट होते हैं।
ध्यान और साधना के माध्यम से हम इन चक्रों को संतुलित कर सकते हैं और अपने आध्यात्मिक विकास को उच्चतम स्तर तक पहुँचा सकते हैं।