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ध्यान में उन्नति कैसे करें? – ध्यानयोग में उन्नति और सिद्धि की साधना

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ध्यान में उन्नति कैसे करें?

नियमित ध्यान का प्रामाणिक अभ्यास करने से व्यक्ति स्वयं को उस योग्य बनाता है की वह सांसारिक बंधनों से अपने आप मुक्त कर लेता है और आकाश जैसे अनंत परमात्म तत्व के साथ एक हो जाएं। जो परमआनंद, परमपद और अमरत्व है।

ध्यान करने का अर्थ है स्वयं को स्वयं के सभी अपवित्रताओं से मुक्त करना और परम पवित्रता में विलीन हो जाना जो मन, अहंकार और चित्त की वृत्तियों से परे है।

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ध्यान करना यानी स्वयं के भीतर में सुधार करना | जब हम ध्यान करते है तब हम अपने भावनाओं, विचारों पर नियंत्रण पाने का और उन्हें शांति देने अभ्यास करते है, लेकिन एक साधारण सी जान पड़ने वाली प्रक्रिया भी कई लोगों के लिए बहुत कठिन लग सकती हैं। ऐसा क्यों होता है?

ध्यान में हमे बस थोड़े समय के लिए विचारों से मुक्त होना हैं। विचार कोई पहाड़ तो है नहीं की हमसे हिला भी न पाए। लेकिन इसे बाद यह काम पहाड़ को हिलाने जैसा ही लगने लगता है।

असल में ध्यान करना पहाड़ हिलाने जैसा नहीं है लेकिन पहाड़ से दूर निकल जाने जैसा है। लोग यह सोचकर ध्यान करते है की हमें विचारों के इस पहाड़ को काट देना है लेकिन असली बात तो यह है की हमें उससे दूर निकल जाना हैं। जब हम उससे स्वयं को अलग कर लेते है तो वह अपने आप ही कट जाता हैं।

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जब कोई नया साधक ध्यान करता है। तो वह यह सोच सकता है की मुझे अपने विचारों और कामनाओं पर नियंत्रण पाना है । और इसलिए मैं अपने विचारों की बहती नदी रोकूंगा। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता क्योंकि विचारों रोकने का तरीका यहां बिलकुल गलत है। विचारों रोकना अपने आप में ही चित्त की उत्तेजना है जो इस प्रवाह को और ज्यादा शक्तिशाली बना देते है।

हमारा मन इतना प्रबल होता है की उस व्यक्ति के चित्त को भी बलपूर्वक हर लेता है जो उनपर नियंत्रण पाने का का प्रयन्त करते है।

यह काम एक या दो दिन में पूरा नहीं हो सकता इसीलिए हमे प्रमाणिक अभ्यास और आत्म सुधार करके इस योग्य बनना है की प्रबल मन सरल हो जाएं। जो सरलता को प्राप्त करता है उसके लिए ध्यान की सिद्धि के द्वारा खुल जाते है।


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स्वयं को सरल बनाएं और आत्म-सुधार का अभ्यास कीजिए…

यहां सरलता और आत्मसुधार का अर्थ है की हमें अपने आप को उन विषयों और वस्तुओं के नियंत्रण में होना बंद करना होंगा जो निरंतर हमारे मन में चलते रहते है।

जैसे कोई व्यक्ति खाने का शौकीन होता तो खाली समय में वह खाने का ही विचार करता हैं जैसे आज सुबह यह खाऊंगा दोपहर वह खाऊंगा रात को वह खाऊंगा इस जगह पर ऐसा खाना मिलता है वहां वैसा मिलता है । या किसी के मन में निरंतर स्त्रियों के विचार चलते है। या किसी के मन में वस्तुओं के विचार चलते हैं जैसे रत्न, वाहन या वस्त्र इत्यादि,

आपको यह जानना होंगा की आपके मन में क्या बसा हुआ है, और शुद्धता पर ध्यान देते हुएं स्वयं को बलपूर्वक उन विषयों से दूर करना होंगा। इस अभ्यास में शुरवात में हमारा मन का गहरा प्रभाव पड़ता है जो व्यक्ति को नाराज कर देता है लेकिन थोड़े समय के बाद ये नाराजगी भी समाप्त हो जाती है और आसक्ति भी।

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भक्ति का सहारा लेकर आत्म को पवित्रता की और जागरूक कीजिए…

भगवान में श्रद्धा और चिंतन भी सिद्धि के द्वार खोल सकते हैं । अगर अपने श्रद्धा और भक्ति जैसे सद्गुण है तो निश्चित ही जीवन में सरलता और सार्थकता मिलती है। जब हम भगवान की भक्ति में लीन रहते है तब स्वाभाविक ही ध्यान के द्वार खोल देते है।

क्योंकि भक्ति विषयों वस्तुओं की आसक्ति इत्यादि कल्मशो से पवित्र होती है। भगवान का भावपूर्वक भजन और चिंतन करते हुए हैं आत्म को इस पवित्रता की और ले जाते है जो भगवान से अभिन्न है।


कर्मयोग का अभ्यास कीजिए…

अगर आप ध्यान की अनंत गहराई में उतरना चाहते है तो यह बात आपको जानना आवश्यक है की –
कर्मयोग के बिना ध्यान नहीं किया जा सकता कर्म योग यानी बिना फल की आसक्ति से कर्म करना जब हम अन्य कर्म करते है यहां तक कि ध्यान भी करते है तब हम कर्म ही करते है। और इस स्थिति में कर्म का बंधन सामने आ सकता है, जिसमे हम कर्म से मिलने वाले फल का चिंतन करने लगते है।

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जैसे मान लीजिए आप कोई काम करते हैं तो वह काम करते हुए सारा ध्यान उसके परिणाम पर होता है और ज्यादातर मामले में फल की आसक्ति ही व्यक्ति से कर्म करवाती है। जैसे अगर किसका स्वादिष्ट पकवान खाने का मन करता है तो वह उठकर उसे बनाने लग जाता है, या किसी को सम्मान पाना है तो वह दिखावा करने लग जाता है।ध्यान के मामले में भी ऐसा ही हो सकता है,

आपको पहले यह जानने की आवश्कता है की – आप ध्यान क्यों कर रहें है? आपको ध्यान से कुछ पाना है या आपको ध्यान में स्वयं को मिटा देना हैं?

कर्म का बंधन ऐसा होता है की यह व्यक्ति को केवल वहीं काम करवाता है जिसमें उसे फल पाने की संभावना लगती है; यानी जिसमे मन का स्वार्थ होता है । इसीलिए ज्यादतत लोग ध्यान नहीं कर पाते क्योंकि उनका मन उन्हें कहता है जिसमें कुछ पाना ही नहीं है तो तुम वह क्यों करते हों! कुछ और करो!

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इसीलिए स्वयं को एक कर्मयोगी बनाना आवश्यक हो जाता है, जो बिना फल की आसक्ति के सभी कर्म करता है। कर्म योगी की जगह भक्ति योगी भी ले सकता है क्योंकि भक्ति योगी मूल कर्मयोगी ही होता है वह स्वयं के स्वार्थी भाव से कर्म नहीं करता लेकिन भगवान के लिए करता है।


आध्यात्मिक ज्ञान का आशय लीजियें…

आध्यात्मिक ज्ञान व्यक्ति को पवित्र बनाया है, स्वयं के भीतर उतरना , ज्ञान से स्वयं को सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त करना भी ध्यान में सिद्धि का साधन बनाता है, ज्ञान के बिना मोक्ष नहीं पाया जा सकता, क्योंकि अज्ञान में किया गई साधना का प्रभाव खास नहीं होता ज्ञान के आभाव से ही बंधन तैयार होते है।

जब तक व्यक्ति अज्ञान और ज्ञान का सही से विश्लेषण नहीं करता, ध्यान का मार्ग प्रकाशित नहीं होता।

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सर्वोत्तम आध्यात्मिक ग्रंथ जैसे भगवत गीता, उपनिषद, वेदांत, त्रिपुरा रहस्यम का आशय लेकर व्यक्ति शुद्धता की और जागरूक होता है।


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नमस्ते दोस्तों! jivankishuddhta.in वेबसाइट के जरिये मैं निखिल जीवन के सभी मौलिक प्रश्नों का आध्यात्मिकता, दार्शनिकता, और विज्ञान के समन्वय के माध्यम से सरल भाषामें उत्तर देने का एक प्रयास किया है! उम्मीद है आपको मेरा यह प्रयास पसंद आएगा।

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