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भगवान् श्रीकृष्ण का हृदय में ध्यान कैसे होता हैं।


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bhagwan krishna ka dhyan kaise kare
bhagwan krishna ka dhyan kaise kare

 

भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करना दिव्य आनंद हैं । यह भक्त और भगवान् के दिव्य प्रेम संबध को दर्शाता हैं । अगर आप प्रभु को अपने हृदय में विराजमान कर ध्यान में लीन होते है, तो शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति और ध्यान में सिद्धि समाधि प्राप्त करना संभव हैं।

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आपमें से जो भक्त कृष्ण के प्रेम और भक्ति में लीन होते हैं, उन्हें तो यह विधि को बताने की आवश्यकता ही नहीं हैं, भगवान् कृपा के कारण वे भक्त स्वाभाविक ही ध्यान करते हैं।

परंतु अगर मन ध्यान स्मरण करते हुए नियंत्रित नहीं रहता तो इसे किस तरह से नियंत्रित में ला सकते है और कृष्ण के ध्यान में लीन हो सकते है इसपर उपाय जानिए।

यहां हम आपको नियमित योगाभ्यास की विधि बता रहें है जिसका वर्णन हमे श्रीमदभगवद्गीता के छटे अध्याय (ध्यानयोग) में मिलता हैं।

भगवान का ध्यान कैसे करें.

1. मन को सांसारिक विषयों के चिंतन से मुक्त करने का प्रयत्न कीजिए।

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कृष्ण के ध्यान में लीन होने के लिएं मन को सांसारिक विषयों के चिंतन से मुक्त करना आवश्यक है, अगर ऐसा नहीं होता ध्यान नहीं हो सकता। साधकों! अगर मन इन्ही विषयों में पड़ा रहें तो ध्यान करने का विचार वहां कैसे आ सकता है और ध्यान के लिए प्रेरणा भी वहां कभी नही होंगी।

परंतु आप अपने विवेक के द्वारा यह निश्चित रूप से समझ सकते है की ध्यान जीवन में कितना महत्वपूर्ण हो सकता है।

भगवान् कृष्ण का ध्यान करते हुएं यह निश्चित कर लीजिए की वहां मन अभी भी सांसारिक विषयों के चिंतन में तो नहीं लगा है, अगर यह कार्य संभव करना कठिन लगता है तो अभ्यास से ही आप मन पर नियंत्रण प्राप्त करने में सक्षम हो सकते हैं।

2. ध्यान करने के लिएं एकांत स्थान को चुनें।

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भगवान श्रीकृष्ण ने कहां है ध्यान करने के लिए एकांत स्थान का चयन उपयुक्त है एकांत में जाकर भक्त निसंकोज होकर ध्यान कर सकते है जो योगाभ्यास के लिए गंभीर होते है अकसर मोह माया को त्यागकर हिमालय और आश्रम जैसे एकांत स्थान में चलें जाता है। लेकिन साधकों! यह अनिवार्य नहीं है, जहां है वही योगाभ्यास कर सिद्धि प्राप्त करना संभव है बल्कि आप अपने घर में ही योग अभ्यास कर सकते हैं, परंतु यह निश्चित करना आवश्यक है की ध्यान के समय आपका मन सांसारिक विषयों के लिए चिंतन में न हो अगर ऐसा होता है ध्यान करना कठिन है।

योग अभ्यास करने के लिए ब्रह्ममुहूर्त को उत्तम माना जाता है , इस समय सत्वगुण प्रधान होता हैं जो योग अभ्यास के लिएं प्रेरित करता है, परंतु ध्यान दिन के किसी भी समय किया जा सकता है।

3. भगवान के स्वरूप या चरण कमल पर मन का ध्यान कीजिए।

अगर मन विषयों से मुक्त हो जाता है तो अब यह ध्यान का प्रारंभ हो सकता है! ध्यान करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप को मन विराजमान कीजिए आप भगवान के बालरूप, विग्रह मृलीधर या अन्य किसी स्वरूप का ध्यान कर सकते है जो आपको सुलभ लगे। भगवान का ध्यान करते हुएं आप माला के साथ मंत्रजाप में स्थित रहते है तो यह आपके लिए अत्यंत लाभदायक होंगा। आप जल्द ही विषयों और फलों की आसक्ति से उत्पन होने वाले सुख दुख, तनाव, विषाद काम, क्रोध आदि दुर्गुणों से मुक्त हो सकते हैं। और भक्तिमय होकर परमशान्ति की अवस्था को प्राप्त हो सकते है।

4. भगवान का नामजप कीर्तन करे।

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नाम जप करने के अनंत लाभ है भगवान नाम जप कलियुग के कलमशो का नाश करता है निरंतर नाम जप कीर्तन में मन को स्थिर कर व्यक्ति को अभय पद की प्राप्ति होती है । पुराणों में कहा गया है कलियुग में अगर भक्त जीवन काल में केवल नाम जप कीर्तन ही कर लेते हैं तो वे परमधाम को प्राप्त हो जाते है। तथा कीर्तन, श्रवण, स्मरण आदि करने से शीघ्र ही भक्त मन को भवसागर से पार लेते है और भगवान की दिव्य भक्ति में लग जाता हैं।

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5. ध्यान के समय मन को विषयों से मुक्त करने का प्रयत्न कीजिए

यह समस्या अकसर नए साधको साथ होती है जब वे ध्यान करते है मन विषयों का चिंतन करने लगता है जिससे ध्यान नहीं हो पाता, इसपर समस्या का समाधान करने के लिए और ध्यान में लीन होने के लिएं केवल अभ्यास करना सुझाया जाता है, श्रीकृष्ण ने गीता में कहां है मन को सांसारिक विषयों के चिंतन से मुक्त करने के लिए साधक को नियमित अभ्यास करना की आवश्यकता हैं।

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6. ध्यान का अभ्यास कीजिए।

साधकों! ध्यान करने से एक दिन में सिद्धि प्राप्त नहीं होती परंतु योग अभ्यास से इसे संभव किया जा सकता है। नियमित अभ्यास करने के लिए आप निश्चित समय का चयन कीजिए ब्रह्ममुहूर्त का समय को योग अभ्यास के लिएं उत्तम माना जाता है, और इस समय पर निद्रा से जाकर ध्यान करने के लिए एकांत भी प्राप्त हो सकता है। लेकिन जो साधक बड़े शहरों में रहते है जहां पूरा दिन और रात शांति नहीं होती उन्हें अपने घर में या पास के किसी आश्रम, मंदिर का चयन करना चाहिए।

निष्कर्ष;

भगवान् को हृदय में विराजमान कर उनका ध्यान करने से और अभ्यास से भक्त ध्यान में सिद्धि और शीघ्र ही भवसागर के बंधनों से मुक्ति प्राप्त कर भगवान् की दिव्य भक्ति प्राप्त कर सकते हैं। भवसागर के बंधनों से मुक्त होकर और भगवान् के प्रेम भक्ति में रहकर वे परमधाम को प्राप्त होने वाले हैं।  

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