भगवान श्रीकृष्ण के अनमोल वचन सुनकर या पढ़कर मनुष्य अपना कल्याण करता हैं, यह साक्षात भगवान की वाणी हैं जो संपूर्ण जगत के पालनहार हैं।
भगवान श्रीकृष्ण के जीवन पर और श्रीमद भागवत गीता में से कुछ अनमोल विचार मैं आपके साथ साझा करने वाला हु इन्हे जीवन में अपना कर निश्चित ही आपका कल्याण होंगा, इनमे प्रेम, भक्ति, धर्म, समृद्ध जीवन, योग और पर अनमोल विचार साझा किए है ये आपको अवश्य पसंद आयेंगे!
गीता में भगवान कृष्ण अनमोल वचन | Krishna’s Quotes in Gita in hindi
पूर्ण जगत में असंख्य लोग भगवान् कृष्ण को प्रेरणास्रोत मानते हैं वे सभी के लिए आदरणीय हैं। आपको पता ही होंगा! जब वीर अर्जुन युद्धभूमि में अनिर्णय की अवस्था में था, वह अपने कर्तव्य के लिए उदास था।
भगवान् कृष्ण ने गीता ज्ञानउपदेश के द्वारा अर्जुन का अज्ञान नष्ट किया और उसे उदासीनता से मुक्त किया।
गीता का यह अनमोल ज्ञान न केवल अर्जुन के लिए उपयुक्त था परंतु शताब्दियों से मानव जाति को एक वरदान साबित हुआ, भगवत गीता से शिष्यों को अनगिनत लाभ हुए है। यहां हमने श्रीमद् भगवद्गीता के कुछ अनमोल वचनों को आपके साथ साझा किया है।
“जीवन में कभी मौका मिले तो किसी के लिए सारथी बनना स्वार्थी नहीं।”
“कर्म ना करने से अच्छा हैं कर्म करना, और कर्म करते हुए फल की आसक्ति से मुक्त होकर कर्मयोग का पालन करना अति उत्कृष्ट हैं।”
“लाभ-हानि, जय-पराजय, असफलता या सफलता इनके चिंतन से ऊपर उठकर अपना कर्तव्य करो।”
“असत् की सत्ता नहीं और सत् का आभाव नहीं”
“आत्मा सत्य हैं”
“सभी धर्मों का त्याग कर मेरी शरण ने आओ मैं तुम्हारा उद्धार करूंगा”
“इस कलियुग में केवल वही बुद्धिमान है जो भगवान की उनके पार्षदों सहित सकिर्तन भक्ति करते हैं।”
“दृश्य कपटी मनुष्य मेरी शरण ग्रहण नहीं करते, चार प्रकार के पुण्यात्मा मेरी शरण ग्रहण करते है आर्त, जिज्ञासु, अथार्थी तथा ज्ञानी।”
“इस संसार में मेरे लिए कुछ असंभव नहीं हैं ऐसा कुछ भी नहीं हैं जो मैं प्राप्त नही कर सकता फिर भी निस्वार्थ कर्म कर रहा हूं।”
“जिस प्रकार मोती धागे के गूथे होते है उसी तरह सब कुछ मुजपर ही आश्रित हैं।”
” कई हजारों मनुष्यों में कोई ही योगी होता है और इनमे से भी कोई विरला ही मुझे वास्तव में जान पाता हैं”
” कर्म के फल से आसक्ति के बिना निस्वार्थ कर्म करने से मनुष्य आत्म को शुद्ध रखता हैं।”
जब जब धर्म को हानि होती है और अधर्म का वर्चस्व बढ़ने लगता हैं मैं संसार के अवतरित होता हु।
साधुओ का उद्धार और दृष्टों का संहार करने के लिए मैं अवतार लेता हु।
“मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं, जो मुझे सभी जीवों का स्वामी जानता है मेरी भक्ति के लग जाता हैं”
“इस हींन दुर्वलता को त्याग करो और अपना कर्म करो।”
“देवताओं की पूजा करने वाले स्वर्ग और उच्च लोकों को प्राप्त होते हैं, परंतु मेरी भक्ति करने वाले मेरे परमधाम को प्राप्त होते हैं”
“जन्म जन्मांतर के बाद जैसे ज्ञान प्राप्त होता है, ऐसा महात्मा मुझे समस्त कारणों का कारण जानकर मेरी शरण में आता है , वह महात्मा दुर्लभ हैं।”
“उठो और फल की आसक्ति त्याग कर कर्म करों”
“तुम मेरे भक्त हो और मेरे भक्त का कभी विनाश नहीं होता।”
“सुख या दुख दोनों स्थायी नहीं हैं, इनका होना सर्दी-गर्मी के ऋतुओं के आने-जाने के जैसा ही है। इसलिए मनुष्य को चाहिए की वह सुख में न अत्यधिक उत्सव मनाये और न दुख में अति शोक मनाये।”
“जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के बाद पूर्ण जन्म भी निश्चित हैं।”
“मनुष्य को चाहिए की वह अपने इंद्रियों को विषयों से हटाकर हृदय में मेरा (परमात्मा का) ध्यान करें, ऐसा करने से वह परमआनंद पाता हैं।”
“योगियों के कुटुंब में जन्म लेना अति दुर्लभ हैं।”
“मनुष्य की इंद्रिया अति वेगवान होती हैं यह उस मनुष्य का भी मन हर लेती है जो उन्हे नियंत्रित करने की प्रयास करता हैं। इसीलिए मनुष्य को चाहिए को वो योगाभ्यास करे और अति सावधानी से आत्म को भवसागर से मुक्त करें।”
“जो अपने इंद्रियों पर नियंत्रण प्राप्त करता है और सांसारिक विषयों से मुक्त होता हैं वह शांति प्राप्त करता हैं लेकिन जो इंद्रियों के नियंत्रण में चला जाता है भवकूप में गिर जाता हैं।”
“काम से क्रोध उत्पन्न होता है और क्रोध से बुद्धि का नाश होता हैं बुद्धि का नाश होने से वहा शांति कैसे हो सकती हैं।”
“जो मनुष्य वेदों की अलंकारिक भाषा से मोहित हो जाते हैं वे अर्धदेवताओं की पूजा करते हैं जिनसे उन्हें फल शीघ्र ही प्राप्त हो जाता हैं। परंतु वे इस भवकूप में पुनः गिर जाते हैं।”
“जो योगी सांसारिक विषयों से स्वयं को मुक्त कर मेरी अनन्य भक्ति में लग जाता हैं वह मेरे परमधाम को प्राप्त हो जाता हैं।
“जिस तरह आत्मा जीवन काल में बाल्यावस्था से तरुण और वृद्ध शरीर में अग्रसर होता रहेता हैं, वैसे ही मृत्यु के बाद यह दूसरा शरीर धारण करता हैं। विद्वान इस परिवर्तन का शोक नहीं करते।”
‘इंद्रियों से मन श्रेष्ठ है और मन से बुद्धि श्रेष्ठ ही और आत्मा से भी श्रेष्ठ हैं।”
“प्रकृति से सारे कार्यकलाप तीन गुणों के द्वारा अधीन पूर्ण होते हैं, लेकिन मैं (भगवान कृष्ण) इन गुणों के अधीन नही, वे मेरे अधीन हैं।”
“मैं समस्त भौतिक और आध्यात्मिक जगत को कारण हूं संपूर्ण मुझसे उद्भूत हैं जी बुद्धिमान यह जानते हैं वे हृदय से मेरी प्रेमभक्ति करते हैं और मैं शीघ्र ही उनका उद्धार करता हूं।”
“जो सृष्टि में परमात्मा रूप में हैं वही हमारे शरीर में आत्मा रूप में विराजमान होता हैं।”
“जैसे परमात्मा से संपूर्ण सृष्टि प्रकाशमान हो रही है वैसे ही आत्मा से शरीर प्रकाशमान हो रहा हैं।”
“मेरी भक्ति में लगा हुआ मुझे परमात्मा को हर और देखता है उसके लिए मैं कभी अदृश्य नहीं हूं और वो मेरे लिए भी अदृश्य नहीं हैं।”
“जब मैं अवतार लेता हु तो मूर्ख मेरा उपहास करते है अज्ञानता प्रबल होने के कारण वे मुझ परमेश्वर के दिव्य स्वभाव को नहीं जान पाते।”
“जो मेरी शरण ग्रहण करते हैं भले ही वो निम्नजन्मा स्त्री, वैश्य , शुद्र क्यों न हो मेरे परमधाम को प्राप्त हो जाते हैं”
प्रेम पर भगवान कृष्ण के अनमोल वचन | Krishna’s Love Quotes Hindi
“कृष्ण केवल आपको स्वीकार नहीं करेंगे बल्कि आपको वो बनायेगे जो आपको होना चाहिए”
“प्रेम वह कुंजी है जो अनन्त आनंद और मुक्ति के द्वार खोलती है”
“जहां कामना होती हैं वह प्रेम नहीं होता ।”
“यदि कोई भक्ति के साथ मुझे पत्र, पुष्प, फल, जल प्रदान करता हु मै उसे स्वीकार करता हूं”
“जो लोग अनन्यभाव से मेरे दिव्यरूप का ध्यान करते हुए मेरी पूजा करते हैं उनकी सारी आवशक्ताए मैं पूर्ण करता हूं और जो भी उनके पास है उसकी रक्षा करता हूं”
“जो मेरे भक्त हैं, वही मुझे प्रिय हैं। भक्ति का अर्थ केवल पूजा-अर्चना नहीं, बल्कि मन, वचन और कर्म से भगवान के प्रति समर्पण है।”
“तुम एक योगी बनो क्योंकि योगी सभी मनुष्यों में श्रेष्ठ होता हैं”
“प्रेम वह सब है जो हमें परमात्मा से जोड़ता हैं।”
“जब तक श्रीकृष्ण का प्रेम हृदय में है, तब तक जीवन में कोई भी कठिनाई बड़ी नहीं लगती।”
“जो प्रेमी भक्त मेरे पर अपना अधिकार मान लेते हैं मैं स्वयं पर उनका अधिकार मान लेता हूं।”
“जो भक्त मुजपर प्रेम करते हैं मैं कई अधीक उनपर प्रेम करता हु।”
“जो मुझे सच्चे मन से प्रेम करता है, वह मुझे पाता है।”
“भक्ति का अर्थ सच्चे प्रेम और समर्पण से है।”
“राधा के बिना कृष्ण अधूरे, उनके प्रेम के बिना जीवन सूने। सच्चा प्रेम वही, जो राधा-कृष्ण सा हो,जहाँ प्रेम में कोई स्वार्थ न हो”
अन्य पढ़े –
“जो कर्म को अकर्म और अकर्म को कर्म मानता है, वही ज्ञानी है।”
“ज्ञान वही है जो आत्मा को जानने में मदद करे।”
“जो लाभ हानि जय पराजय सुख दुख से विचलित नहीं होता आत्म में ही अनंत आनंद प्राप्त कर लेता हैं।”
“योग की और की गई अल्प प्रगति भी कठिन भय से मुक्त करती हैं।”
“आत्मा अमर होती है इसी लिए किसी के मृत्यु का शोक करना विद्वान के लक्षण नहीं हैं।”
“जो व्यक्ति सांसारिक विषयों का चिंतन करते हैं उनके मन में भगवान की भक्ति का संकल्प नही होता वे भवकूप में गिर जाते हैं।”
“जो ज्ञानवान यह जान लेता हैं की समस्त जीव परमात्मा के अंश है वह समस्त जीवों में परमात्मा को देखता हैं”
समृद्ध जीवन लिए कृष्ण द्वारा अनमोल वचन Krishna’s Quotes for life
“हमे केवल कर्म करने का अधिकार है फल प्राप्त हो न हो यह ईश्वर तय करता हैं।”
“भक्ति का मार्ग जीवन को शुद्ध करता हैं”
“सांसारिक विषयों के इच्छाओं की कमी आत्मिक शांति की कुंजी हैं।”
“अहंकार व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु हैं।”
“जिसने मन को जीत लिए उसने शांति प्राप्त करली”
“मनुष्य अपना भाग्य स्वयं बनाता है जैसा सोचता है वैसा करता हैं और वैसा ही हो जाता है।”
“जो अपने मन पर नियंत्रण नहीं रखता, वह स्वयं का धीरे-धीरे शत्रु बनता जाता है। परंतु जो योग अभ्यास से मन पर नियंत्रण रखता है उसका मन उसके लिए एक मित्र होता है।”
“परिवर्तन संसार का नियम है जो कल किसी और का था आज तुम्हारा है और कल किसी और का होंगा।”
“मन और इन्द्रियों का पोषण अंत में पछतावे का कारण बनता हैं।”
“ज्ञान ही मनुष्य का सबसे बड़ा धन है”
“ज्ञान व्यक्ति को पवित्र बनाता हैं “
“जिस प्रकार एक दिया बिना आग के नहीं जल सकती, उसी प्रकार व्यक्ति आध्यात्मिक जीवन के बिना अधूरा है|”
“आध्यात्मिकता का उस वातावरण से कोई लेना देना नहीं है जिसमें आप रहते हैं| ये उस वातावरण के बारे में है जो आप अपने अंदर बनाते हैं|”
“मनुष्य के कर्म ही हमें सच्ची सफलता दिलाते हैं, इसलिए कर्म को ईमानदारी से करना है।”
“रजोगुण से उत्पन होने वाला काम बाद में क्रोध का रूप ले लेता है जो संसार का सर्वभक्षी शत्रु हैं”
“जो स्वयं को बदल सकता है, वही संसार को बदल सकता है।”
“मित्र वह है जो कठिन समय में साथ दे, न कि सुख के समय में।”
आखरी शब्द
ये रहे भगवान श्री कृष्ण के जीवन पर और श्रीमद भगवद्गीता उपदेश के कुछ अनमोल वचन यह वचन केवल गीता ज्ञान के अंशमात्र है।