समाधि क्या हैं – श्रीमद् भगवद्गीता के अनुसार

samadhi kya hai gita ke anusar

योग की सबसे उच्चतम अवस्था को समाधि कहा जाता हैं। जो योगी समाधि को प्राप्त होता हैं उसके समस्त कर्म परमात्मा में विलीन हो जाते हैं। वह एक जीव होने नाते बंधनों से मुक्त होता हैं और अनंत, अविनाशी परमात्मा में विलीन हो जाता हैं ।

समाधि इस भौतिक संसार से अलग दिव्य आनंद और दिव्य स्वरूप की प्राप्ति हैं। कुरुक्षेत्र युद्धभूमि में जगतगुरु भगवान श्री कृष्ण उनके मित्र, भक्त और शिष्य अर्जुन को गीता ज्ञान उपदेश देते हैं जिसमें समाधि में स्थित मुनि की व्याख्या अर्जुन को कहते हैं।

श्रीमद भागवत गीता में श्रीकृष्ण के श्लोकों से समाधी को जानते हैं यद्यपि समाधि को केवल शब्दों से नहीं समझा और मन, बुद्धि से अनुभव नहीं किया जा सकता हैं । यह दिव्य सुख, परम शांति और माया के संसार से मुक्ति हैं इन्हें केवल समाधि से ही उपलब्ध हुआ जाता हैं। 

अन्य पढ़े: आत्म-ज्ञान क्या हैं, कैसे प्राप्त होता हैं 

श्रीमद् भगवद्गीता में समाधि में स्थित मुनि की व्याख्या

samadhi kya hai gita ke anusar

जब अर्जुन श्रीकृष्ण से पूंछता हैं “समाधि में स्थित व्यक्ति किसे बोलता हैं, उसकी भाषा क्या है, वह कैसे बैठता और चलता हैं ?”, पश्चात भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से समाधी में स्थित योगी के बारे में कहते हैं ।

श्रीभगवानुवाच

प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् | आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते || 

श्री भगवान् ने कहां – पार्थ ! जब व्यक्ति उसके मानोधर्म से होने वाली समस्त इंद्रियतृप्ति की और मायारूपी जगत की कामनाओं का परित्याग कर देता हैं, तब विशुद्ध मन आत्म में ही समाधान प्राप्त करता हैं, और वह विशुद्ध दिव्य चेतना और समाधि को प्राप्त हुआ स्थितप्रज्ञ कहां जाता हैं।

दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः । वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते ||

यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम् | नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता || 

जो तीनों तपों में विचलित नहीं होता और सांसारिक सुख में रुचिरहित होता हैं , वह आसक्ति भय और क्रोध से मुक्त शांत मन वाला समाधि को प्राप्त हुआ मुनि कहां जाता हैं, जो शुभ की प्राप्ति से न हर्षित होता हैं और न अशुभ से घृणा करता हैं, वह पूर्ण ज्ञान में स्थित होता हैं।

यथा दीपो निवातस्थो नेङगते सोपमा स्मृता | योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः || 

जिस स्थान पर वायु स्थिर हैं वहां दीपक की ज्योति भी स्थिर होती हैं , उसी तरह समाधि को प्राप्त हुआ योगी का मन उसके वश में होता हैं और आत्मतत्व में सदा स्थित रहता हैं।

यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योग सेवया | यत्र चैवत्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति ||

सुखमात्यन्तिकं यत्तद्बुद्धिग्राह्यमतीन्द्रियम् | वेत्ति यत्र न चैवायं स्थितश्चलति तत्त्वतः || 

यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः | यास्मन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते ||

तं विद्याद्दुःखसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम् ||

समाधि की अवस्था में योग अभ्यास के द्वारा व्यक्ति का मन विषयों से विरक्त हो जाता हैं, विशुद्ध मन आत्मा का दर्शन करते हुएं आत्मा में ही तुष्ट हो जाता हैं। बुद्धि द्वारा ग्रहणीय इंद्रियां दिव्य सुख का अनुभव करते हैं इस अवस्था में स्थित योगी आत्म सुख से भ्रष्ट नहीं होते हैं अन्य लाभों को इससे बढ़कर नहीं मानते इस अवस्था में भयानक दुखों से भी विचलित नहीं हो सकते यह निसंदेह भौतिक संसर्ग के समस्त दुखों से वास्तविक मुक्ति हैं।

समाधि में स्थित मुनि माया रूपी जगत से मुक्त हो जाता हैं , उसके लिएं मान–अपमान, लाभ–हानि, सुख–दुख सर्दी–गर्मी प्रकाश–अंधकार भूख–प्यास आदि भौतिक संसर्ग से परे हो जाता हैं। और आत्म में ही असीम आनंद प्राप्त करता हैं।

अन्य पढ़े: माया क्या हैं, भगवान विष्णु और देवर्षि नारद की कथा 

शनैः शनैरूपरमेद्बुद्धया धृतिगृहीतया | आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत् ||

यतो यतो निश्चलति मनश्चञ्चलमस्थिरम् | ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत् ||

प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम् | उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम् || 

धीरे-धीरे, क्रमश पूर्ण विश्वासपूर्वक बुद्धि से मन को आत्मा में स्थित रखना चाहिएं और समाधी में स्थित होना चाहिए तथा अन्य कुछ भी नहीं सोचना चाहिए।

मन उसकी चंचलता और अस्थिरता से जहां कही विचरण करता हैं , व्यक्ति को उसे नियंत्रित कर अपना वश में करना चाहिए।

जो योगी मन मुझमें (भगवान कृष्णमें) स्थिर रखते हैं, वे अवश्य ही सर्वोच्च सिद्धि दिव्यसूख प्राप्त करते हैं, वे रजोगुण से परे हो जाते हैं और परमात्मा और आत्म की गुणात्मक एकता को जानते हैं, और समस्त विगत कर्मोंके फलों से निवृत्त होते हैं।

अन्य पढ़े:

Share This Article
   Purity of Life    

Purity of Life

Join Us on WhatsApp

Leave a Comment

fifteen + twelve =

भगवान के दर्शन कैसे होते हैं? | GOD REALIZATION
आत्मा क्या है और अनात्मा क्या हैं? | SELF and NON-SELF in Hindi
जीवात्मा और आत्मा क्या हैं? || आध्यात्म
कर्म करते हुएं योग में सिद्धि कैसे हों? | What is karma Yoga in Hindi
मोक्ष किसे कहते है? | सुख-दुख से परे नित्य आनंदमय | What is Moksha in Hindi
सच्ची भक्ति के 9 संकेत | 9 Signs Of Devotion