Purity of Life

जीवन को सार्थक बनाने वाली इस यात्रा में आपका स्वागत है!
योग, आध्यात्म, और ज्ञानवर्धक संदेश रोज़ पायें!

Purity of Life Icon Follow

ब्रह्म और परब्रह्म में अंतर | स्वरूप

Vaishnava

चराचर में व्याप्त चेतन तत्व को शास्त्रों ने ब्रह्म नाम दिया हैं, किंतु परब्रह्म का अर्थ होता है सर्वोच्च ब्रह्म जिससे ब्रह्म और परब्रह्म के बीच अंतर जान पड़ता है।

ब्रह्म और परब्रह्म में अंतर | स्वरूप

ध्यान का अंतिम लक्ष है ब्रह्म स्वरूप में विलीन हो जाना । ध्यान में उच्च सिद्धि प्राप्त कर ब्रह्म स्वरूप के दर्शन प्राप्त होते हैं। परंतु अपौरुषेय (मानव द्वारा निर्मित नहीं हो सकते) वेद और श्रीमद्भगवद्गीता में परब्रह्म का उल्लेख किया गया हैं। जिससे ब्रह्म से भी सर्वोच्च सत्ता होने का प्रमाण मिलता हैं।

परब्रह्म को जानने से पहले ब्रह्म को जनाना आवश्यक हैं तथा ब्रह्म को जानने के लिए ध्यान में सिद्धि प्राप्त करना आवश्यक हैं। ब्रह्म का स्वरूप शब्दों से नहीं जाना जाता बल्कि ब्रह्म स्वरूप में विलीन होकर जाना जाता हैं।

ब्रह्म का स्वरूप लक्षण

ध्यान की उच्चतम अवस्था जिसे समाधी कहा जाता हैं। इस अवस्था में मन इन्द्रियों के साथ आत्मा में विलीन हो जाती हैं। आत्म में परमात्मा के दर्शन प्राप्त होते हैं।  ब्रह्म को ही आत्मा और परमात्मा भी कह सकते हैं। इनका स्वरूप एक ही हैं। ब्रह्म चराचर (समस्त जीव और सम्पूर्ण संसार) में व्याप्त हैं और चराचर को धारण करता हैं। चराचर में चेतना का अस्तित्व ब्रह्म का ही लक्षण है बिलकुल उसी तरह जैसे प्रज्वलित अग्नि का लक्षण गर्मी होता हैं। 

ब्रह्म से ही चराचर उत्पन्न होता है विद्यमान रहता है और अंत होकर ब्रह्म में ही विलीन हो जाता हैं। यह ब्रह्म चराचर को धारण करता है परंतु ब्रह्म चराचर से परे हैं।

भौतिक जगत नश्वर हैं कालांतर में नष्ट हो जाता है। परंतु ब्रह्म स्वरूप अनादि, अविनाशी शास्वत हैं ब्रह्म स्वरूप निर्गुण, निर्लेप, निराकार हैं।

ब्रह्म को जाना नही जा सकता इस में विलीन होकर शून्य हो जाना ही ब्रह्म स्वरूप को प्राप्त होना है।

परब्रह्म का स्वरूप

परब्रह्म ( परम ब्रह्म ) जिसका शाब्दिक अर्थ है सर्वोच्च ब्रह्म, यह परमतेजोमय, परमचैतन्य , असीम है। परबह्म में ब्रह्म उत्पन्न होता है, ब्रह्म में ही चराचर उत्पन्न होता हैं। किंतु ब्रह्म की उत्त्पति को उत्त्पति कहा ही नहीं जा सकता ये तो परब्रह्म ही है जो ब्रह्म होकर चराचर में व्याप्त हैं। अजन्मा, अविनाशी, सर्वज्ञ परमत्तेजोमय निर्गुण, निर्लेप, निराकार ब्रह्म ही परब्रह्म हैं।

चराचर को धारण करने वाला निराकार ब्रह्म हैं जो सर्वज्ञ हैं किंतु चराचर से भिन्न परमतत्व को परब्रह्म कहा गया हैं। अनंत ब्रम्हांड से परे जो हैं यह असीम, अनंत कल्पनाओं से परे हैं। निर्गुण परमतत्व है, नेति नेति ( वैसा भी नही हैं ) कहकर इसके गुणों का खंडन होता है।

   Jivan ki Shuddhta    

Purity of Life

Join Us on WhatsApp

जब सम्पूर्ण संसार लय को प्राप्त हो जाता है अनु का अस्तित्व समाप्त होता है, ब्रह्म परब्रह्म में विलीन हो जाता हैं।

ब्रह्म और परब्रह्म में अंतर

परम तत्व एक है जिसे ब्रह्म और परब्रह्म भी कहा जाता हैं। किंतु ब्रह्म और परब्रह्म में अंतर भी हैं।

निराकार ब्रह्म 

परब्रह्म 

चराचर में व्याप्त हैं।

सृष्टि से परे परमतत्व हैं। 

तेजस्वी हैं।

परमातेजोमय कहा जाता है।

सृष्टि का कारण हैं।

ब्रह्म का कारण है।

ब्रह्म में विलीन होकर आत्मा शून्य हो जाती है। और समाधि की घटना घट जाती हैं।

परब्रह्म को प्राप्त होना यानी परमगति को प्राप्त होना। इसे प्राप्त होकर कोई संसार में पुनः नहीं आता है।

शुद्ध चैतन्य स्वरूप हैं 

परमचैतन्य कहा जाता हैं।

अनंत सृष्टि की उत्पत्ति निराकार ब्रह्म से होती है।

निराकार, अनादि, और अंतरहित ब्रह्म की उत्त्पति परब्रह्म में होती हैं। किंतु इस उत्पत्ति नही कहा जा सकता हैं।

निष्कर्ष;

परम तत्व को ही ब्रह्म और परब्रह्म भी कहां जाता हैं, किंतु ब्रह्म और परब्रह्म में अंतर भी जान सकते है।

<<< अन्य पढ़े >>>

Share This Article

– Advertisement –

   Purity of Life    

Purity of Life

Join Us on WhatsApp

I'm a devotional person, named 'Vaishnava', My aim is to make mankind aware of spirituality and spread the knowledge science philosophy and teachings of our Sanatan Dharma.

Leave a Comment

Email Email WhatsApp WhatsApp Facebook Facebook Instagram Instagram