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आत्मा को जाना नहीं जा सकता तो कैसे पता चला वह है?

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आपने उपनिषदों में और अन्य आध्यात्मिक ग्रंथों में ब्रह्म या आत्मा का बारे में पढ़ा ही होंगा! या इन शब्दों को सुना तो होंगा ही! लेकिन क्या अपने कभी सोचा है की ये क्या है?

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आत्मा को जाना नहीं जा सकता तो कैसे पता चला वह है?

अगर आप सोच रहें है सिद्ध योगियों ने इन्हें देखा होंगा या जाना होगा तो आप गलत है क्योंकि आत्मा को जाना नहीं जा सकता | तो फिर कैसे पता चला आत्मा है और केवल है ही नहीं बल्कि सत्य है |

आत्मा निर्गुण है अनंत है | लेकिन उसके बाद भी किसी अज्ञानी को उसकी होने की भनक भी नहीं लगती | कई लोग अलग-अलग तर्क देकर आत्मा को नकारते हुए दिख जाते है |

आत्मा को नकारने के लिए और तर्क ढूंढने के लिए वे उपनिषदों का ज्ञान अर्जित करने लग जाते है | इनमें से जिन्हें आत्मा के स्वरूप का बोध हो जाता है वे आत्मा को नकार नहीं पाते | और जिन्हे शास्त्र पढ़कर भी कुछ समझ नहीं आता वे आत्मा को नकारने के लिए बेतुके तर्क बनाते है |

अगर आप आत्मा के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करते या आप अभी जान ही रहें है | तो आप दोनों ये जान लीजिए की आत्मा को न तो जाना जा सकता है और न जिन वस्तुओं का अस्तित्व है उसने आत्मा के अस्तित्व की तुलना की जा सकती है | आत्मा का अस्तित्व इन जगत के कोई भी चीज की तरह नहीं है न वो किसी जीव की तरह है, न हवा की तरह, न अग्नि की तरह, न समुद्र की तरह और न ही निराकार आकाश की तरह | उसका अस्तित्व बड़ा ही अनोखा है | अगर आप इसे समझ पाए तो ठीक या आप अगर इसे नहीं समझ पाए तो आप बस इतना समझ लीजिए की आत्मा जैसा कुछ होता ही नहीं है; जो कुछ नहीं वही आत्मा है या जहां कुछ नही | क्योंकि मैं जानता है दुनिया में अंधश्रद्धा, अंधविश्वास अज्ञान बहुत फैला है और मैं किसी भी तरह से इसे बढ़ावा नहीं देना चाहता | क्योंकि सभी अंधविश्वास, अज्ञान और भ्रम से निकलना ही सत्य है; ज्ञान है | इनमें फसें रहकर आत्मा को नहीं जाना जा सकता |

आत्मा का अर्थ भी कुछ ऐसा ही होता है आत्मा यानी ‘स्व’ या जिसे आप ‘मैं’ कहते है | बस यही आत्मा है आत्मा अद्वैत (दो, नहीं) है | अगर ‘मैं’ आत्मा है तो वहां दूसरी कोई आत्मा नहीं है | यानी अगर आप सोच रहें है की मैं हूं और मैं आत्मा को जानुगा उसे देखूंगा तो वहां कोई आत्मा है ही नहीं तो आप किसे जानेंगे किसे देखेंगे |

जो देखने वाला यानी दृष्टा है वहीं तो आत्मा है |

ऋषियों में योग के सिद्धि प्राप्त कर आत्मा का निरूपण किया है | योग दृष्टा को मन से अ-मन तक ले जाता है विचार से निर्विचार की तक ले जाता है | वह चित्त की वृत्तियों का विरोध है |

जब विचार, मन, चित्त विलीन हो जाते है तो केवल आत्मा ही शेष रहती है | आत्मा अगर ‘मैं’ है मन ‘मैं’ नहीं विचार ‘मैं’ नहीं शरीर ‘मैं’ नहीं बल्कि इसे ‘मेरा’ कहा जा सकता है | “मेरा मन, मेरे विचार, मेरा शरीर तो मैं कोन?” ‘मैं’ आत्मा | वह न मन है न विचार है न शरीर है न जिसे आप इंद्रियों से जानते है वो जगत है, न मृत्यु है और न जीवन है वो तो बस है वह है | इसी लिए सब कुछ जान पड़ता है; सब का अस्तित्व है (शरीर, मन, विचार, बुद्धि चित्त, इंद्रियां, ब्रह्मांड) |

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I'm a devotional person, named 'Vaishnava', My aim is to make mankind aware of spirituality and spread the knowledge science philosophy and teachings of our Sanatan Dharma.

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