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मंत्र जाप का महत्व | कौन से मंत्र का जाप करें?

Krishna Mantra om namo bhagwate vasudevaya

मंत्र जाप का महत्व

जिन ध्वनियों को हम मंत्र जानते हैं, वे हमारे मुख से निकलने वाली बाकी ध्वनियों के समान नहीं होतीं। हम मुख से आवाज़ तब बनाते हैं जब किसी से बात करनी होती है, अपने मन की बात उस तक पहुँचानी होती है। इसके लिए हम भाषा का उपयोग करते हैं। मंत्र का उपयोग यहाँ नहीं किया जाता।

इसलिए मंत्र जाप करने से यह ध्वनियाँ हमारी चेतना के स्तर पर अपना खास प्रभाव डालती हैं, जबकि बाकी शब्दों की ध्वनि का हम इस तरह से उपयोग नहीं करते।

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कई लोगों के मन में यह उलझन बनी रहती है कि मुझे किस मंत्र का जाप करना चाहिए। सभी का कहना होता है कि मंत्र जाप बहुत प्रभावी विधि है ध्यान की ऊँचाई तक पहुँचने में, लेकिन समस्या यह हो जाती है कि सबके मंत्र अलग-अलग होते हैं। कोई कहता है कि गायत्री मंत्र ज्यादा प्रभावी है, कोई कहता है महा मृत्युंजय मंत्र, इत्यादि।

मंत्र तब प्रभावी सिद्ध होते हैं जब वे साधक के भाव से जुड़ जाते हैं। यानी कि जब साधक मंत्र जाप कर रहा होगा तो भीतर बस वही कंपन हो रहा होगा। बाकी दुनिया के बाकी विषय भीतर से हट जाएँगे। ऐसा होने पर वे ऊर्जा के बाकी विषय अनावश्यक लगने लगते हैं और तब उनसे छुटकारा पाना सहज हो जाता है।

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आप चाहें तो मन को बलपूर्वक भी साफ़ नहीं रख सकते। मन बहुत चंचल होता है, इसलिए इसे साफ़ करने के प्रयत्न से अच्छा इसे एक मंत्र थमा देना उत्तम विधि बन जाता है, जिसके परिणामस्वरूप यह स्वतः ही साफ़ हो जाता है।

मंत्र साधना व्यक्ति को ध्यान की उन्नति और सिद्धि तक पहुँचा देती है। अभ्यास और निरंतर प्रयत्न से जब हम मंत्र के कंपन में सम्पूर्ण ऊर्जा को समाहित कर देते हैं, तो चेतना के बाकी सांसारिक बंधनों से मुक्ति मिलती है। यानी कि जिन विषयों के पीछे हम ऊर्जा को लगाते हैं, उनके बारे में सोचते हैं, अपनी रचनात्मकता दिखाते हैं और कर्म करते हैं, उनमें चेतना की एक दूरी तैयार कर देते हैं।

यह इस तरह है कि कोई चालक वाहन को नियंत्रित कर पाता है ब्रेक के कारण। उसका गति पर नियंत्रण होता है और ऐसे ही दिशा और शक्ति पर भी उसका नियंत्रण होता है।

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उसी तरह मंत्र का जाप करते हुए हम स्वयं पर नियंत्रण पाने का अभ्यास करते हैं।

अगर वाहन की गति और शक्ति पर चालक का नियंत्रण न हो तो वह कहीं भी टकरा सकता है—किसी पेड़ से या किसी पत्थर से।

उसी तरह अगर मन पर नियंत्रण न हो तो संभव है कि यह भी कहीं जाकर टकरा सकता है, जैसे कि भौतिक विषय, भोग या कामुक सुखों को पाने की लालसा। मन पर नियंत्रण पाते हुए हम स्वयं को इस टकराव से सुरक्षित रखते हैं। अन्यथा ऐसा हो सकता है कि व्यक्ति उन्हीं के बीच फँसा रहे और जीवन उसी का चक्कर बन जाए, जिससे व्यक्ति का सुख भौतिकता के अधीन हो जाए।

इसलिए मंत्र जाप करते हुए हम बार-बार अपने मन को शांति देने का अभ्यास करते हैं और उसे अधिक लचीला बनाते हैं, ताकि हम इसे सही समय पर मोड़ सकें और टकराव व नुकसान होने से पहले काबू पा सकें।

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यदि कोई अपने ही मन पर नियंत्रण पाने में सफल होता है, तो वह ऊर्जा के ऊपरी स्तरों को जागृत कर सकता है, जिन्हें हम सात चक्र कहते हैं।

मंत्र कोई आम ध्वनि नहीं हैं और न ही बाकी वाक्यों की तरह होते हैं। ऐसा नहीं है कि मंत्र का वाक्यों की तरह ही अर्थ निकाला जा सकता है, परंतु मंत्र केवल अर्थ तक सीमित नहीं होते।

अगर आप मंत्र की तुलना सिर्फ़ एक आम वाक्य से करते हैं, तो इसका महत्व भी आम वाक्य की तरह ही सीमित हो जाता है, जबकि असल में यह एक विधि है अर्थ से परे जाने के लिए।

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एक उदाहरण के तौर पर मंत्र उस पवित्र आत्मा की तरह होते हैं, जिसका न कोई रूप होता है, न रंग, न आकार और न गुण। लेकिन जब हम मंत्र का अर्थ बनाने लगते हैं, तो यही आत्मा शरीर धारण करने जैसा है।

मंत्र ऊर्जा हैं और अर्थ उसका दूसरा आयाम है, जो माया जगत से जुड़ा होता है।

जिस तरह ध्यान में हम आत्मा को अहंभाव से मुक्त करके पवित्रता में विलीन होने का अभ्यास करते हैं, उसी तरह मंत्र जाप करते हुए हम मंत्र के अर्थ से ऊपर उठकर उस पवित्र ध्वनि में ही स्वयं को विलीन कर देते हैं।

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मंत्र साधना में आध्यात्मिक ज्ञान का महत्व

आध्यात्मिक ज्ञान मंत्र जाप साधना में बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है, जो हमें गुरु और ग्रंथों से प्राप्त होता है। क्योंकि इससे साधक अपनी भीतर की दुनिया की स्थिति जानकर उसे ठीक कर सकता है, जिसका असर उसकी साधना और बाहरी स्वभाव पर पड़ता है।

मंत्र जाप करना कर्म है, और केवल कर्म ही किसी को ध्यान की ऊँचाइयों तक ले जाने में पर्याप्त नहीं होता, जब तक कि वह ज्ञान का आश्रय नहीं लेता।

आध्यात्मिक ज्ञान के द्वारा भीतर के प्रकाश का संकेत मिलता है, जिससे साधक को उसे प्राप्त करने की आवश्यकता का अनुभव होता है।

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अगर केवल मंत्र जाप किया जाए, तो साधक को यह भी समझना चाहिए कि मंत्र जाप का उद्देश्य क्या है, और यही उद्देश्य आध्यात्मिक ज्ञान के द्वारा जाना जाता है।

यह इस तरह है जैसे कोई चालक वाहन चलाता है, लेकिन अगर उसे यह नहीं पता कि जाना कहाँ है, तो वह कहीं पहुँच ही नहीं पाएगा और घूमता ही रह जाएगा। लेकिन लक्ष्य जानकर वह सही मार्ग चुन लेता है।

किस मंत्र का जाप करना चाहिए?

मंत्र कई तरह के होते हैं, जो काफी प्रभावी सिद्ध होते हैं। लेकिन कई साधकों को सही मंत्र चुनने में कठिनाई होती है।

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क्योंकि मंत्र का चयन करते समय हम मन के प्रभाव में होते हैं और चंचल मन कभी एक जगह टिकता नहीं। जिससे किसी एक मंत्र के जाप में व्यक्ति संतुष्ट नहीं हो पाता। वह कभी एक मंत्र का जाप करता है, तो कभी दूसरे मंत्र का और फिर तीसरे, फिर चौथे और वापस पहले पर आ जाता है।

लेकिन जब कोई गुरु की शरण लेता है और गुरुमंत्र दीक्षा ग्रहण करता है, तो वह मंत्र उसके मन के प्रभाव से चुना हुआ नहीं होता, जिससे एक मंत्र पर स्थिर रहने में सहायता मिलती है।

कई श्रद्धालु भक्त अपने इष्ट देवता के मंत्र का जाप करते हैं। जैसे शिव भक्त “ॐ नमः शिवाय” और “महा मृत्युंजय मंत्र” का जाप करते हैं, तो कृष्ण भक्त हरे कृष्ण महामंत्र का जाप करते हैं।

यह एक उत्तम विधि बनती है। श्रद्धा से व्यक्ति को बहुत सहायता मिलती है योग और आध्यात्मिक उन्नति करने में। वहीं श्रद्धाहीन व्यक्ति ज़्यादा समय तक अचल और प्रमाणिक नहीं रह पाता और दुनिया के मायाजाल की ओर आकर्षित हो जाता है।

किस मंत्र का जाप करना है, यह पूरी तरह से साधक के भाव पर निर्भर करता है। यदि वह भक्त है, तो अपने भगवान के मंत्र का जाप करना उत्तम होगा, या फिर गुरु से दीक्षा लेना श्रेष्ठ होगा।

यह बस इस बात पर निर्भर करता है कि वह साधक उस मंत्र पर कितना विश्वास रखता है। यदि उसका अटूट विश्वास है, तो वह अपना मंत्र स्वतः ही चुन सकता है, जो उसके लिए निश्चित ही उद्धारक सिद्ध हो जाता है और उसे अमरत्व की प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर करता है।

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नमस्ते दोस्तों! jivankishuddhta.in वेबसाइट के जरिये मैं निखिल जीवन के सभी मौलिक प्रश्नों का आध्यात्मिकता, दार्शनिकता, और विज्ञान के समन्वय के माध्यम से सरल भाषामें उत्तर देने का एक प्रयास किया है! उम्मीद है आपको मेरा यह प्रयास पसंद आएगा।

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