आत्मा को लेकर ज्यादातर लोग अज्ञान के अंधकार में होते हैं, वे आत्मा को एक डरावना रूप देते हैं जिसे भूत, डायन और चुड़ेल आदि नामो से जाना जाता है, लेकिन ये असत्य हैं।
आत्मा क्या है, आत्मा का आकार तथा आत्मा का सत्य क्या है इस लेख में जानते हैं।
आत्मा का आकार कैसा होता है.
आत्मा का कोई आकर नही होता है आत्मा निराकार हैं अनंत है और सदैव एक जैसा रहने वाला हैं और सत् ( परमसत्य )है । आत्मा परमात्मा से अभिन्न है। तथा आत्मा को हम निराकार ब्रह्म भी कह सकते हैं।
आत्मा प्रकाश स्वरूप है इस प्रकाश को देखा नहीं जा सकता जो योगी आत्मज्ञान प्राप्त करता हैं, वो आत्मा रूपी दिव्य प्रकाश को स्वयं के अगल-बगल और संसार में व्याप्त जनता हैं। इस दिव्य प्रकाश के ही कारण जीवों में जीवन संभव जान पड़ता हैं।
आत्मा शाश्वत (अनादि, नित्य, अंतरहित) अव्यव हैं। इस किसी काल में भी अंत नहीं है। आत्मा को न जल गिला कर सकता हैं, न अग्नि जला सकती हैं और न वायु सूखा सकती हैं आत्मा भौतिक संसार से परे हैं।
आत्मा केवल एक है इसे अद्वैत ( दो नहीं ) कहां जाता है । एक आत्मा समस्त जीवों के शरीरों को धारण पोषण करती हैं। तथा समस्त संसार आत्मामे ही समाया हुआ हैं जो कुछ भी है आत्मा में ही हैं। एक ही आत्मा जीवों को धारण पोषण करती हैं। आत्मा सदैव एक जैसी रहेंने वाली हैं।
जीवात्मा क्या हैं.
परंतु जीव एक दूसरे से भिन्न जान पड़ते है इसका कारण शरीर, मन और इन्द्रिया है। शरीर मन और इन्द्रियों को धारण करने वाली आत्मा को जीवात्मा कहां जाता हैं।
जीवात्मा को जीवों को कहां जाता । आत्मा जीवात्मा से परे है किंतु आत्मा में ही जीवात्मा का अस्तित्व हैं। जीवात्मा संसार के विषयों पर गतिशील रहती है और संसार में शरीर धारण करती हैं। जीवात्मा भौतिक शरीर को अहम (मैं) मानती है यह अहंकार हैं, जिसे जीवात्मा (मैं) शरीर जानती है । वो उसे ब्रम्ह ने दिया हैं। जीवात्मा का जोभी है सब ब्रह्म का ही हैं।
जीवात्मा मन के आधीन होती हैं , मन को अगर नियंत्रित ना रखा जाए तो मन जीवात्मा को सांसारिक विषयों पर आसक्त बना देता हैं। इस आसक्ति का कारण इंद्रियों की तृप्ति और भोगों का सुख होता हैं, ये मन प्राप्त करना चाहता हैं.
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जो योगी सांसारिक विषयों का त्याग कर देता है तथा वह योगी मोक्ष के योग्य होता है मोक्ष क्या है और मोक्ष प्राप्ति के उपाय जानिए