मृत्यु क्या है श्रीमद भागवतगीता के अनुसार | Mrityu Kya Hai Bhagwat Geeta

मृत्यु किस स्थिति, स्थान और समय पर हो जाएं कोई नहीं कह सकता, जितना कोई साधारण व्यक्ति मृत्यु के बारे में सोच सकता है और जानता है, मृत्यु के पश्चात जीव संसार से चले जाते हैं,और वापिस कभी नहीं आते शरीर का नाश हो जाता हैं।

किसी व्यक्ति के मृत्यु के पश्चात उसके परिवार, मित्र और अन्य संबंधियों पर दुःख का पर्वत ही टूट पड़ता हैं।

श्रीमद्भागवत गीता में एक ऐसा ही प्रसंग हैं, जब कुरुक्षेत्र युद्धभूमि में पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध होने वाला था, अर्जुन के अपने सगे संबंधियों से युद्ध कर उनका वध करने के लिए हात कप-कपा रहें थे।

अर्जुन मृत्यु को लेकर अज्ञानता के कारण युद्ध करने से पीछे हट जाता हैं, भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के अज्ञानको को दूर करते हैं और मृत्यु की घटना का ज्ञान प्राप्त करवाते हैं.

Mrityu Kya Hai Bhagwat Geeta

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मृत्यु क्या है श्रीमद भागवत गीता | Bhagwat geeta ke anusar mrityu kya hai

शरीर की हानि, रोग, या समय के साथ वृद्धावास्था के कारण मृत्यु होने पर जीवों का शरीर व्यर्थ हो जाता है, और जीव मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।

गीता के अनुसार मृत्यु केवल शरीर का नाश है, लेकिन भौतिक शरीर को धारण पोषण करने वाला आत्मा शरीर का स्वामी होता हैं । आत्मा को शाश्वत ( सदा रहने वाला) कहां गया हैं, मृत्यु के पश्चात जीवात्मा व्यर्थ का शरीर का त्याग कर नए शरीर के साथ पुनः जन्म लेती हैं, जीवात्मा के इस शरीरों के परिवर्तन को ही मृत्यु माना जाता हैं।

श्रीमद भागवत गीता के दूसरे अध्याय सांख्ययोग में मृत्यु का वर्णन इस तरह है.

देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा |

तथा देहान्तर प्राप्ति धीरस्तत्र मुह्यति ||

भगवान श्री कृष्ण के इस श्लोक के अनुसार

जैसे आत्मा बाल्यावस्था से तरूणावस्था और वृद्धावस्था में अग्रसर होता हैं, वैसे ही शरीर में नाश या मृत्यु होने के बाद यह आत्मा नए शरीर के साथ पुनः जन्म लेता है। धीर व्यक्ति ऐसे परिवर्तन में मोह को प्राप्त नहीं होते।

नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः |

उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः ||

भौतिक शरीर (असत् ) का चिरस्थायित्व नहीं है, किन्तु सत् (आत्मा) अपरवर्तित रहता हैं, तत्त्वदर्शियोंने प्रकृति के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला हैं।

अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् | विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ||

आत्मा समस्त जीवों के शरीरों में व्याप्त हैं, आत्मा अविनाशी है इस अव्यव को नष्ट करने में कोई समर्थ नहीं हैं।

न जायते म्रियते वा कदाचिन् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः | अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे || 

आत्मा को किसी भी काल में न तो जन्म हैं और न ही मृत्यु , वह न तो कभी जन्मा है, न जन्म लेता हैं और न जन्म लेगा | वह अजन्मा, नित्य, शाश्वत तथा पुरातन है | शरीर के मारे जाने पर भी वह नहीं मारा जाता।

वांसासि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि | तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्य- न्यानि संयाति नवानि देहि ||

आत्मा को किसी काल में भी अंत नहीं है , जिस तरह व्यक्ति पुराने वस्त्र निकल कर नए वस्त्र धारण करता हैं, उसी तरह आत्मा व्यर्थ के शरीर का त्याग कर नए शरीर को धारण करती हैं।

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मृत्यु क्या है श्रीमद भगवद्गीता के अनुसार निष्कर्ष;

शरीर व्यर्थ हो जाने पर जीवात्मा नए शरीर को धारण करती हैं, जीवात्मा के इसी परिवर्तन को मृत्यु कहां जाता हैं। भौतिक शरीर नश्वर हैं किसी न किसी समय इसका नाश भी हो जाता हैं, ज्ञानी पुरुष मृत्यु की घटना का शोक नही करते,

 

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