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नेति-नेति | न ऐसा, न वैसा | क्या है समझिए

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नेति-नेति का अर्थ है “यह नहीं, वह नही” यह श्लोक साधक को आध्यात्मिक विकास और आत्मज्ञान साक्षात्कार करने में एक साधन का काम करता है | यह भ्रम को काटने की तलवार है सभी भ्रम से निकल कर ही ब्रह्म यानी जो वास्तविक है, सत्य है; उसे पाया जा सकता है | 

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नेति-नेति

नेति-नेति क्या है समझिए | किस तरह साधक नेति-नेति का अभ्यास कर सकते है

नेति-नेति यह वाक्य उपनिषदों और अवधूत गीता में भी पाया जाता है | यह ब्रह्म की निर्गुणता और निराकारता को दर्शाता है | ब्रह्म वाणी का या बुद्धि और मन द्वारा कल्पना किए जाने वाला विषय नहीं है यही नेति-नेति सूचित करता है |

इसके कुछ हिंदी अर्थ बताए जाते है (ऐसा भी नहीं-वैसा भी नहीं), (यह भी नहीं-वह भी नहीं), (न यह-न वह), (न यह सत्य है- न वह सत्य है)

साधकों हम जिस दुनिया में रहते है यहां सभी वस्तुओं का कोई आकार होता है कोई गुण होता है | परंतु ब्रह्म सभी आकार और गुणों के परे है इसी लिए इसे इस भौतिक दुनिया में नहीं पाया जा सकता परंतु उसे इस भौतिक दुनिया में परे जाकर अवश्य पाया जा सकता है |

भौतिक जगत से परे जाने का और ब्रह्म को पाने का मार्ग ही नेति-नेति दर्शाता है | और इस दुनिया के पार निकलने का रास्ता आपके अंदर से ही शुरू होता है | यह रास्ता इस मायारूपी दुनिया से शुरू होता है और सत्य ब्रह्म पर समाप्त हो जाता है | अगर यह आपको समझ से परे लग रहा है की ऐसा कोनसा रास्ता है जो इस दुनिया के पार तक जाता है तो जान लीजिए वह रास्ता ही ध्यान है | ध्यान आपको मन से अ-मन को और ले जाता है, विचार से निर्विचार की और ले जाता है आपकी जागरूकता मन और बुद्धि के परे है वह केवल जागरूकता है और वहीं ब्रह्म है आधुनिक भाषा में इसे हम ऐसा भी कह सकते की वह ब्रह्मांडीय चेतना है |

नेति नेति का मतलब है जो तुम्हें सत्य से दूर रखता है तुम उसे अपने से दूर करों! तो ऐसा क्या है जो हमें सत्य से दूर रखता है साधकों इस दुनिया में जो कुछ भी है जिससे आपका मन आसक्त है और आपकी बुद्धि हमेशा उसका ही विचार चलता रहता है, वही है जो आपको सत्य से यानी ब्रह्म से दूर रखता है | ये वह सबकुछ है जो आप अपना मान बैठे है वो आपका नहीं अगर आपका होता तो आपसे छीना नहीं जाता | कुछ भी स्थाई नहीं है आपके सुख, आपके दुख, परिवार, आपकी नौकरी, व्यवसाय, घर, गाड़ी, पत्नी, बच्चे ये सब आपको प्रकृति ने दिए है और वह इनको छीन भी लेंगी इसपर उसका ही अधिकार है, और मृत्यु के बाद तो आपका शरीर भी नहीं रहेंगा जिसे आप “मैं” मानते है |

जो पराया है उसे दूर करना और जो अपना है उसे पाना ही नेति-नेति का मतलब है | जो निर्गुण है निराकार है जगत से परे है वही अपना है वहीं ब्रह्म है | ऋषियों ने इसे भीतर ही पाया है |

नेति-नेति के बोध से ध्यान का अभ्यास भी किया जाता है | और कई साधकों ने ध्यान में सिद्धि प्राप्त कर ली ज्ञानयोगी भी नेति-नेति का प्रयोग करते है |

ब्रह्म की अनंतता को दर्शाता है नेति-नेति :

जगत के सभी विषय वस्तुओं के परे ही ब्रह्म-स्व का अनुभव है | जगत के सभी विषय वस्तु अनित्य है काल के अधीन है | आकार के कारण वे सीमित है | गुणों के कारण जाने भी जाते हैं |

परंतु वह ब्रह्म जगत और काल के पार होने के कारण नित्य है, निराकार है | वह निर्गुण है उसे जाना भी नहीं जा सकता | अगर उसे जाना नहीं जा सकता तो कैसा पता चला वह है? इसका कारण आत्मज्ञान है आत्मज्ञान का अर्थ है स्व का ज्ञान जो इस जगत का दृष्टा है यानी जो इसे देखने वाला है; वह स्व है | जो माया का दृष्टा है; वह ब्रह्म है | जब कोई आत्मज्ञान प्राप्त करता है वह स्व में सम्पूर्ण माया रूपी जगत विद्यमान पता है इसी लिए जो भी इस ब्रह्मांड में जो अनित्य, कालाधीन, सगुण और आकर धारण किए है वह इन सबका दृष्टा है सबके परे है इसी लिए सब उसमें ही है | कई लोगों के लिए इसे समझना कठिन लग सकता है या कुछ को तो यह मजाक भी लग जाता है | परंतु आध्यात्मिक अनुभव से यह स्पष्ट समझ आ जाता है | इसीलिए आदि शंकर आचार्य ने कहा है “ब्राह्मण सत्यम जगत मिथ्या” यानी ब्रह्म ही सत्य है और ये जगत मिथ्या यानी भ्रम है |

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योग में नेति नेति का प्रयोग कैसे होता है:

नेति-नेति का हठयोग में प्रयोग :

हठयोग में उन्नति करने के किए भी नेति-नेति का प्रयोग सुझाया जाता है | इससे हठयोगी साधक अपने सच्चे स्व की खोज करता वह उन अनावश्यक अवराणों और अहंकार को हटाने का अभ्यास करता है | इसका प्रयोग खासकर आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए किया जाता है | सच्चा आत्म स्वरूप अभी बंधनों से परे है | वह शुद्ध चैतन्य है बिना मन के आवरण के

ध्यान में नेति-नेति का प्रयोग :

कई साधक ध्यान में भी इसका जाप करते है | कई साधकों का मानना है इसका जाप करने से मन के अज्ञान का नाश होता है | वह इसके अर्थ को अनुभव करते है | ध्यान में गहरा उतरने के लिए मन का अज्ञान दूर होना और उसका निर्मल होना आवश्यक है और उसका आत्म के प्रति समर्पण चाहिए | तभी निर्विचार को प्राप्त हुआ जा सकता है वहीं ध्यान की सिद्धि है |

ज्ञानयोगी को नेति-नेति से ज्ञान की प्राप्ति :

ज्ञानयोगी भी नेति-नेति को ज्ञान प्राप्त करने का एक उत्कृष्ट साधन मानते है | इसके अर्थ जानकर कोई ज्ञानयोगी अंतर्मुखी होकर ज्ञान प्राप्त कर सकता है | ज्ञान प्राप्त करने के लिए अज्ञान को दूर होना चाहिए | अज्ञान को दूर करना और ज्ञान तक पहुंचना यही नेति-नेति का अर्थ है |

अंतिम शब्द:

नेति-नेति (न इति न इति) यानी “ऐसा भी नहीं-वैसा भी नहीं” यह श्लोक ब्रह्म की अनंतता को दर्शाता है, ब्रह्म जगत से माया जगत के परे है वह परम् है माया और भौतिक जगत के परे और परम् होने के कारण वह निर्गुण, निराकार और कालातीत है | 

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I'm a devotional person, named 'Vaishnava', My aim is to make mankind aware of spirituality and spread the knowledge science philosophy and teachings of our Sanatan Dharma.

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