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श्रीमद भगवत गीता के 121 अनमोल वचन | भगवान कृष्ण के अनमोल वचनों से जीवन को सार्थक बनाए


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जब वीर अर्जुन रणभूमि में अनिर्णय की स्थिति में था, तब भगवान कृष्ण ने उनके शिष्य अर्जुन को गीता ज्ञान उपदेश दिया था | वह उपदेश न केवल अर्जुन के लिए तारक था बल्कि हर मानव इससे अपना उद्धार कर पाता है | गीता जगत में आध्यात्मिकता, योग और भक्ति पर सभी ग्रंथों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण ग्रंथ | गीता को उपनिषद भी कहा जाता है; गीता वेदों का सार है | यह भगवान कृष्ण की वाणी है इसलिए इसकी महिमा हम कुछ शब्दों में नहीं बता सकते |

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गीता में भगवान कृष्ण ने कहें अनमोल वचन यहां पढ़िए ये गीता ज्ञान सागर के अंश है | गीता में भगवान कृष्ण के 121 अनमोल वचन इनसे आपको आत्मिक उन्नति और जीवन के वास्तविक अर्थ को प्राप्त करने में सहायता मिलेगी |

 

श्रीमद भगवत गीता के 121 अनमोल वचन

 

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मैं सभी जीवों में आसीन परमात्मा हूं, मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और विस्मृति होती हैं |

 

जो योगी कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है वह बुद्धिमान होता है |

 

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मैं ही समस्त भौतिक और आध्यात्मिक जागतों का कारण हूं|

 

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हे अर्जुन! तुम यह जान निश्चित ही सत्य जानों मेरे भक्त का कभी विनाश या पतन नहीं होता |

 

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यदि कोई बड़े से बड़ा दुराचारी भी अनन्य भक्ति से मुझे भजता है | तो भी वह साधु कहने के योग्य है उसकी शीघ्र ही मुक्ति हो जाती है और वह धर्मात्मा बन जाता है, और शांति प्राप्त करता है |

 

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मुझे न कोई जीव अप्रिय है और न प्रिय है, लेकिन जो श्रद्धा और भक्ति से मेरी उपासना करते है वे मेरे समीप होते है और मैं भी उनके समीप होता हूं |

 

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हे अर्जुन! तुम सदा मेरा स्मरण करो और अपना नियत कर्म करों, मुझे अर्पण किए बुद्धि और मन युक्त होकर तुम मुझमें वास करेंगे और मुझे प्राप्त करोंगे |

 

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जैसे प्रज्वलित अग्नि लकड़ी को जला देती है, वैसे ही ज्ञान कर्म बंधनों को नष्ट कर देता है |

 

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हमेशा संतुष्ट रहने वाला ईर्षा रहित, सफलता और असफलता में समभाव रहने वाला योगी कर्म करता हुआ भी कर्म से नहीं बंधता |

 

हे अर्जुन! जो आशा रहित है, जिसने चंचल मन और इंद्रियों को अपने वश में कर लिया है, जिसने सब प्रकार के स्वामित्व का परित्याग कर दिया है वह मनुष्य देह से कर्म करते हुए भी पाप को प्राप्त नहीं होता और कर्म बंधन से मुक्त हो जाता है |

 

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जो भक्त जिस किसी मनोकामना से अर्ध देवताओं की पूजा करते है मैं उनकी मनोकामना पूर्ण कर देता हूं और उनकी श्रद्धा को उसी देवता में स्थित करता हूं ताकि वह उसी देवता की पूजा कर सके ऐसे लोग मुझे प्राप्त नहीं कर पाते |

 

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मेरे जन्म और कर्म दिव्य है जो मेरा भक्त भली-भांति यह जान लेता है वह जन्म-मरण शोक से मुक्त होकर मेरे परम धाम को प्राप्त हो जाता है |

 

नर्क के तीन द्वार है काम, क्रोध और लोभ इसलिए इनका त्याग करों |

 

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अप्राकृतिक कर्म बहुत तनाव पैदा करते है |

 

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इंद्रियां शरीर से श्रेष्ठ है, और इंद्रियों से परे है मन, मन से श्रेष्ठ बुद्धि, और आत्मा बुद्धि से भी श्रेष्ठ है |

 

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मन, बुद्धि और इंद्रियां काम के निवासस्थान है | यह काम इन्हें वश ने कर मनुष्य के ज्ञान को ढक देता है, और मनुष्य भटक जाता है |

 

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जो मनुष्य बिना आलोचना किए श्रद्धा पूर्वक मेरे उपदेश का सदा पालन करते है, वे कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाते है |

 

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अशांत मन को नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे नियंत्रित और आत्मा के वश में किया जा सकता है |

 

कोई कर्म का त्याग कर कर्म बंधन से मुक्त नहीं हो सकता, न ही कर्मों के त्याग से सिद्धि प्राप्त होती है, कोई भी मनुष्य क्षण के लिए भी बिना कर्म के नहीं रह सकता |

 

जो मनुष्य सभी कामनाओं को त्यागकर इच्छा, अहंकार, ममता से रहित होकर विचरण करता है, वही शांति प्राप्त करता है |

 

जैसे तूफान तैरती नाव को लक्ष से दूर बहा ले जाता है, वैसे ही इन्द्रिय सुख व्यक्ति को गलत मार्ग पर ले जाता है |

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जो तुम करते हो उसके फल को भगवान को अर्पण करो, ऐसे करने से तुम जीवन मुक्ति का आनंद अनुभव करोंगे |

 

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शांति से सभी दुख समाप्त हो जाते है, और शांत चित्त योगी की बुद्धि शीघ्र ही स्थिर होकर परमात्मा से युक्त हो जाती है |

 

विषयों का चिंतन करने से विषयों में आसक्ति होती है, आसक्ति से कामना, कामना से क्रोध, क्रोध से सम्ममोहन और अविवेक, अविवेक से मन भुष्ट हो जाता है और बुद्धि का नाश हो जाता है, और बुद्धि नाश से मनुष्य का पतन होता है |

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हे कुंतीपुत्र! संयम का प्रयत्न करते हुए ज्ञानी का मन भी इंद्रियां बलपूर्वक हर लेती है, जिसकी इंद्रियां वश में होती है, उसकी बुद्धि स्थिर होती है |

 

जो मनुष्य जीवन आध्यात्मिक ज्ञान के चरणों के लिए दृढ़ संकल्प में स्थिर है, वह संकटों के आक्रमण को सहन कर सकते है, वे निश्चित ही आनंद और मुक्ति के योग्य है |

 

जब तुम्हारी बुद्धि मोहरूपी दलदल को पार कर जाएगी, उस समय तुम शास्त्र से सुने हुए और सुनने योग्य वस्तुओं से भी वैराग्य प्राप्त करोंगे |

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केवल कर्म करना तुम्हारे पास है, कर्म का फल नहीं, इसलिए तुम फल की आसक्ति में न फसों और कर्म का त्याग भी ना करो |

 

हे अर्जुन! तुम ज्ञानियों की तरह बात करते हों,और जिनके लिए शोक करने का कारण नहीं उनके लिए शोक करते हों, ज्ञानी जीवित या मृत के लिए शोक नहीं करते |

 

हे अर्जुन! विकट परिस्थितियों में कायरता को प्राप्त होना महापुरषों के आचरण के विपरित है, यह न स्वर्ग की प्राप्ति का साधन है और न इससे कृति प्राप्त होगी है |

 

व्यक्ति जो चाहे बन सकता है अगर वो निश्चित वस्तु का  चिंतन लगातार करता है |

 

कर्म उसे नहीं बांधता जिसने फल का त्याग कर दिया है|

 

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वह जो मेरे दिव्य जन्म और कर्म को समझता है, वह शरीर त्यागने पर पुनः जन्म नहीं लेता और मेरे परम धाम को प्राप्त हो जाता है |

 

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जो मेरा भक्त है वहीं मुझे प्रिय है, भक्ति का अर्थ केवल पूजा अर्चना नहीं, मन, वचन और कर्म से मेरे प्राप्ति समर्पण है |

 

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मैं धरती की मधुर सुगंध हूं, मैं अग्नि की ऊष्मा, सभी जीवों का जीवन, और संन्यासी का आत्मसंयम हूं |

 

जो बुद्धिमान है वह कामुक सुख में आनंद नहीं लेता |

 

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मैं उन्हे ज्ञान देता हूं, जो सदा मुझसे जुड़े रहते है और जो मेरी प्रेमभक्ति करते है |

 

उससे मत डरो जो वास्तविक नहीं, जो वास्तविक है वह वह हमेशा था, है और रहेगा |

 

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असत्य की सत्ता नहीं, और सत्य का आभाव नहीं |

 

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हे अर्जुन! कोई कर्म मुझे नहीं बांध सकता क्योंकि मुझे कर्म के फल की इच्छा नहीं |

 

कभी ऐसा नही है जब तुम ना हो या मैं न हूं | जिस तरह से आत्म बाल शरीर से तरुण और वृद्ध शरीर बदलता है, उसी तरह मृत्यु के बाद यह आत्मा दूसरा शरीर धारण करता है |

 

जिस तरह से व्यक्ति पुराने वस्त्र का छोड़कर नया वस्त्र धारण करता है, यह आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करता है |

 

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हे भगवान कृष्ण! आपके सर्वलौकिक रूप का न आरंभ है, न मध्य और न अंत |

 

सदैव संदेह करने वालें व्यक्ति को न यहां सुख मिलता है न कहीं और |

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हे अर्जुन! सब मुझमें है और मैं सबमें हूं |

 

हे अर्जुन! जो भाग्यवान उन्हें युद्ध के अवसर प्राप्त होते है उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते है |

 

हे अर्जुन! अगर तुम युद्ध में जीत जाते हो तो पृथ्वी का साम्राज्य भोगोंगे और यदि तुम हार जाते हो तो तुम्हारे लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाएंगे, फल से मुक्त होकर दृढ़ संकल्प से युद्ध के लिए खड़े हो जाओ |

 

आत्मा का अस्तित्व अविनाशी और अनंत है, भौतिक शरीर नाशवान है |

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प्रबुद्ध व्यक्ति सदा ईश्वर के और किसी पर निर्भर नहीं करता |

 

ज्ञानी के लिए पत्थर और रत्न भी एक समान है |

 

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मैं सभी पापों से मुक्ति दूंगा, सभी शोक का त्याग करों, और मेरी प्रेम भक्ति में लीन हो जाओ |

 

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परम शांति उनके साथ होती है, जिनके मन और आत्मा में एकता हों, जो इच्छा और क्रोध से मुक्त हों, जो अपनी आत्मा को सही मायने में जनता हों |

 

अपना अनिवार्य कर्म करों, क्योंकि कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है |

 

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ऐसा कुछ भी नहीं चेतन और अचेतन जो मेरे बिना अस्तित्व में हो |

 

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मैं सभी जीवों के हृदय में आसीन परमात्मा हूं |

 

मैं भूत, भविष्य और वर्तमान के सभी प्राणियों को जानना हूं लेकिन मुझे कोई नहीं जानता,

 

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मुझे न कई तप से जाना जा सकता है, न यज्ञ से और न कर्म काण्ड से, लेकिन अपने भक्तों के लिए मैं सहज हूं |

 

वह जो इस ज्ञान के विश्वास नहीं करते मुझे प्राप्त किए बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगमन करते है |

 

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बुरे कर्म करने वाले राक्षसी प्रवृतियों से भरें है, जिनकी बुद्धि माया द्वारा हर ली गई है, वे मुझे प्राप्त नहीं करते भव कूप में गिर जाते है |

 

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मैं ऊष्मा देता हूं, मैं वर्षा करता हूं, मैं वर्षा रोकता हूं, मैं अमरत्व हूं, और मृत्यु भी |

 

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जो यहां कामनाओं की सफ़लता पाना चाहते है वे देवताओं की पूजा करते है, ऐसे लोग मुझे प्राप्त नहीं हो पाते |

 

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वह जो सभी इच्छाओं, अहंकार, का त्यागा करके मेरे भक्त है वह मेरे धाम को प्राप्त कर पाता है |

 

जब कोई अपने कर्म में ही आनंद प्राप्त करता है वे पूर्णता को प्राप्त करते है |

 

मैं समस्त भौतिक और आध्यात्मिक जागतों का कारण हूं  लेकिन इतने पर भी मैं कुछ नहीं करता मैं अव्यक्त, अकर्ता हूं |

 

जो व्यक्ति आध्यात्मिक जागरूकता के शिखर तक पहुंच चुके है, उनका मार्ग ही निस्वार्थ कर्म, जो भगवान के साथ संजोयित हो चुके है, उनका मार्ग है स्थिरता और शांति |

 

बुद्धिमान व्यक्ति को समाज कल्याण के लिए आसक्ति से रहित होकर कर्म करना चाहिए |

 

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जब संसार सोता है तब योगी जागता है, और जब संसार जागता है तब योगी सोता है |

 

कर्म योग एक परम रहस्य है |

 

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जो हमेशा मेरा स्मरण और अनन्य भक्ति भक्ति करते है, मैं स्वयं उनका उद्धार करता हूं |

 

मन की गतिविधियां, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है और लगातार तुम्हें एक साधन की तरह प्रयोग कर सभी कार्य कर रहीं है |

 

हे अर्जुन हम दोनों ने कई जन्म लिए है, मुझें उन सब का स्मरण है लेकिन तुम्हे नहीं हो सकता |

 

हर व्यक्ति की श्रद्धा उसके प्रकृति के अनुसार होती है |

 

जो ज्ञान और कर्म को एकरूप देखते है वहीं सही मायने में देखते है |

 

दुःख से जिनका मन व्याकुल नहीं होता, सुख से जिसको आकांक्षा नहीं, तथा जिसके मन के राग, भय और क्रोध नष्ट हो गए है, ऐसा मुनि आत्मज्ञानी है |

 

श्रेष्ठ मनुष्य जैसा आचरण करता है, दूसरे लोग वैसा ही आचरण करते है |

 

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जब जब संसार में धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब साधुओं का उद्धार और दृष्टो का संहार और धर्म की स्थापना करने के लिए मैं अवतरित होता हूं |

 

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व्यक्ति का अपना मन ही किसी के लिए मित्र बन जाता है, और किसी के लिए शत्रु बन जाता है |

 

तुम अपने कर्तव्य से पीछे हट जाते हो, तो लोग तुम्हारा उपहास और अपना करेंगे, सम्मानित व्यक्ति के लिए अपमान मृत्यु से भी बढ़कर होता है |

 

वासना, क्रोध और मोह ये नर्क के तीन द्वार है |

 

आत्मज्ञान की तलवार से अज्ञान को काट दो, अनुशाषित रहों उठों!

 

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जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए मन शत्रु बन जाता है |

 

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वह जो मृत्यु के समय मुझे स्मरण करते हुए अपना शरीर त्यागते है, वह मेरे धाम को प्राप्त हो जाते है, इसमें संदेह नही|

 

अपने कर्म पर दिल लगाओ ना की उसके फल पर |

 

फल की आसक्ति छोड़ कर्म करने वाला पुरुष अपने ही जीवन को सफल करता है |

 

ऐसा कोई नहीं जिसने इस संसार में अच्छा कर्म किया और उसका बुरा अंत हुआ चाहें इस काल में या आगे आने वालें काल में |

 

हे अर्जुन! सभी प्राणी जन्म से पहले अव्यक्त थे मृत्यु के बाद भी अव्यक्त हो जाते है, जन्म और मृत्यु के बीच व्यक्त होते है, इसमे शोक कैसा

 

आत्मा को न शस्त्र काट पाते है, न अग्नि जल सकती है, न जल गिला कर सकता है और न वायु सुख सकती है |

 

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तुम आत्म को भगवान को समर्पित करों, तुम भय, चिंता और शोक से मुक्त हो जाओगे|

 

मेरी भक्ति में लगा हुआ मुझे सर्वत्र व्याप्त देखता है उस भक्त के लिए मैं कभी अप्रकट नहीं हूं और वह भी मेरे लिए अप्रकट नहीं |

 

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जो मुझे अपने हृदय में विराजमान करते है मैं उन्हें अपने हृदय में जानता हूं | वह भक्त मुझे अत्यंत प्रिय है, और मैं भी उसे अत्यंत प्रिय हूं |

 

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे!

जय श्री कृष्ण!

 

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हरे कृष्ण! जय श्री राधेश्याम!

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