दुख का अनुभव हम सब को होता है, और सब दुख से मुक्ति पाने की चाह रखते है | दुख से छुटकारा भी शीघ्र हो जाता है | लेकिन वह सिर्फ तात्कालिक छुटकारा पा लेते है, ज्यादातर लोग दुख से मुक्ति नहीं पाते बल्कि उसे अपने भीतर ही छिपा देते है | दुख को छिपाना सुख नहीं है दुख को मिटाना सुख है…
दुख क्या है और दुख से मुक्ति कैसे पाएं?
दुख का अनुभव हमें तब होता है जब बाहरी दुनिया में ऐसी स्थिति बन जाती है जिसका प्रभाव हमारे मन पर पड़ता है और सुख का भी ऐसा ही हिसाब है |
दुख दूर करने के उपाय ज्यादातर लोग बाहरी दुनिया में ही खोजते है | जैसे किसी व्यक्ति से कोई खास प्यारभरा रिश्ता टूट गया होंगा तो वह दुखी होंगा, इस दुख से छुटकारा पाने के लिए वह उस रिश्ते को वापित जोड़ने का प्रयास करेगा या फिर ऐसा भी हो सकता है की वह उस रिश्ते के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को ही खोजेगा | किसी को विवाह न होने के कारण दुख है, तो सुख के लिए वह विवाह करने को लक्ष बनाएगा | किसी को धन चोरी हो जाने का दुख है तो इसका आभाव चोर की तलाश कर ही होंगा | और कुछ कठिन स्थितियां ऐसी भी होती है दुख दूर करने का कोई रास्ता ही नहीं जान पड़ता जैसे किसी बहुत करीबी की मृत्यु हो जाएं तब तो उसे नानी नहीं, भगवान ही याद आ जाते है |
दुख बाहर से नहीं, भीतर से आता है
दुखी हुआ व्यक्ति दुख से मुक्ति पा सकता है | वह इस बात को जानता भी है की अगर वह दुख से मुंह मोड़ लेगा या अपना मन पूरी तरह से उससे हटा लेगा तो दुख का अभाव हो जायेगा | लेकिन इसके बाद भी वह दुख से मुंह नहीं मोड़ता क्योंकि दुख का असली कारण बाहर नहीं दुख तो भीतर ही बैठा है | जब ऐसी स्थिति आती है; जिसे हम कठिन स्थिति या दुख की घड़ी कहते है, जिसमे भीतर छिपे दुख को बाहर निकलने का मौका मिलें |
इसका मतलब साफ है दुख बाहरी दुनिया से अंदर नहीं आता दुख पहले से ही अंदर छिपा होता है जब इसको मौका मिलता है तो ये बाहर निकल आता है | लेकिन दुख हमेशा व्यक्त नहीं होता, अगर यह हमेशा व्यक्त होने लगें तो व्यक्ति को इसे दूर करना बहुत आसान हो जायेगा | अगर मूल में जाकर देखें तो व्यक्ति स्वयं ही दुख को अपने पर हावी होने देता है बीमा अनुमति के दुख भी कुछ नहीं कर पाता |
दुख ऐसी ही किसी स्थिति का मौका पाकर ही व्यक्त होता है | और कमाल की बात तो ये है की उसका ये लुपा-छिपी का खेल हमारे सामने ही चलता है | और वह कहां से व्यक्त होता है और कहां जाकर छुप जाता है समझ नहीं आता |
दुख इस लुपा-छिपी के खेल में बहुत माहिर है, हम उसे नहीं हरा सकते है या पकड़ सकते है, लेकिन वह हमें सही मौका पाकर सहज ही पकड़ लेता है | तो दुख से छुटकारा पाने का भी यही एक उत्तम उपाय है की दुख से ये लुपा-छिपी का खेल खेलना ही बंद कर दो, इसके खेल से बाहर निकल आएंगे तो भी इसका खेल जब-तब जीवन है तब तक चलता ही रहेगा लेकिन इसका खास असर नहीं पड़ेगा |
सुख की खोज और दुख दूर करे…
जब हम उन चीजों से सुख चाहते है जिसमे सुख की मिलने की संभावना बहुत कम होती है या मिल भी जाएं तो भी सिर्फ थोड़ा सुख है और बहुत सारा दुख भी मिलता है | जैसे किसीको प्यारभरे रिश्ता बनाकर थोड़ा सुख मिलता है लेकिन वही रिश्ता टूट जानें पर बहुत सारा दुख नसीब होता है | किसी को धन कमाकर सुख मिलता है लेकिन अगर वही धन चोरी हो जाएं या समाप्त हो जाए तो दुख मिलता है | किसी को सम्मान पाकर सुख मिलता है अगर उसी का अपमान हो जाएं तो सबसे ज्यादा दुख उसी व्यक्ति को होता है |
सुख की कामना ही दुख की ओर ले जाती है | इसका उपाय यह नहीं की हम सुख की कामना करना छोड़ देना चाहिए, सुख की कामना करना तो हमारा स्वभाव ही है, जब-तक हम है तब-तक रहेंगी | इसका उत्तम उपाय है की हम केवल सुख के ही अधीन न हो जाएं | जो सुख के अधीन है, वह समझ जाए कि वह दुख के अधीन है, उसे होना ही है, क्योंकि सुख का महत्व जितना अधिक होगा, उतना ही बड़ा दुख का अस्तित्व होगा।
सुख की खोज तब पूर्ण है जब-तक दुख पूरी तरह से छुटकारा हो जाता है; यानी दुख भीतर से मिट जाता है, केवल दुख की थोड़ी कमी होनेको सुख नहीं कहते; यह सुख की छाया मात्र है | दुख को भीतर किसी कोने में तत्काल के लिए दबाकर छिपा देना, ये दुख से छुटकारा नहीं है बल्कि ये दुख को भीतर ही और पोषित कर और ज्यादा बड़ा करना है, किसीन किसी दिन ये बाहर जरूर आयेगा! और सब तबाही मचा देगा!
इसलिए केवल दुख को छिपाने और दबाने को ही कभी सुख की खोज नहीं कहना चाहिए, लेकिन भीतर पड़े सभी तरह के दुख को हटाने को सुख की खोज कहा जाता है |
सहनशीलता दुख को दबाने की शक्ति रखती है लेकिन ये दुख से हमेशा के लिए मुक्ति नहीं दिला सकती है| दुख से मुक्ति पाने के लिए ज्ञान का आशय लेना उत्तम है |
जो ज्ञानी है वह ये बात समझते है की सुख-दुख बादलों की तरह है आते-जाते रहते है लेकिन आकाश पर बादलों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता | उन वस्तुओं और विषयों में आसक्त होना जिसमे सुख मिलने की संभावना लगती है लेकिन दुख की भी संभावना है | उनके अधीन होना ही भीतर के दुख को पोषित करना है |
सुख की कामना का मानसिक अभाव ही सुख की खोज है, बल्कि सुख की प्राप्ति और दुख की निवृत्ति है | भीतर के दुख को जानना और उसे दूर करना चाहिए | न की केवल सुख है तो सुख में ही मन लगाए; सुख के ही अधीन हो जाए और यदि दुख है तो दुख में ही रोते बैठे |
तात्कालिक दुख दूर करने के कुछ आसान उपाय :
दुख क्या है? कैसे व्यक्त होता है और दुख से कैसे मुक्ति कैसे मिलती है? यह तो मैने आपको बता दिया | लेकिन ज्यादातर लोगों के लिए यह एक लंबी प्रक्रिया या कठिन प्रक्रिया हो सकती है | ऐसे में तात्कालिक दुख से मुक्ति पाने के कुछ आसान उपाय यहां बताए गए है ज्यादतार लोगों का तात्कालिक दुख इनसे दूर हो सकता है…
दुख को दबाए नहीं – दुख को कोई भी तरीके से भीतर ही दबाने के प्रयत्न न करें जैसे नशीले पदार्थों का सेवन कर या कोई हिंसक कदम लेकर, इससे व्यक्तिको लग सकता है की दुख का अनुभव कम होंगा, लेकिन इससे दुख दूर तो नहीं होंगा बल्कि और ज्यादा बड़ा हो जाएगा |
सत्य को समर्पित रहें – सत्य को समर्पित होना महान दुख से व्यक्ति की रक्षा करता है | सत्य को समर्पित होकर ही दुख, तनाव से मुक्ति होती है और वास्तविक शांति प्राप्त होती है |
दुख अस्थाई है – दुख हमेशा के लिए नहीं रहता, बहुत जल्दी समाप्त भी हो जाता है, अगर मान लीजिए ऐसा भी हो की दुख हमेशा रहें तो भी यह हमेशा नहीं रह सकता क्योंकि अगर हमेशा दुख रहने लगा तो व्यक्ति स्वयं ही इससे मुक्ति पा लेता है | क्योंकि दुख से मुक्ति ही हमारा स्वभाव है | अगर गहराई में जाकर देखें तो दुख इसलिए है क्योंकि व्यक्ति स्वयं इसे स्वीकार करता है; इसे स्वयं पर हावी होने की अनुमति देता है, इसीलिए यह कुछ समय के लिए व्यक्त हो पाता है |
आपने धर्म के लिए आत्म समर्पण कीजिए – आत्म समर्पण करना ही सुख की प्राप्ति है, अपने निजी स्वार्थ को छोड़े और धर्म (कर्तव्य) कीजिए |
श्रद्धापूर्वक सही निर्णय लीजिए –
ध्यान लगाएं – ध्यान व्यक्ति को दुख और मानसिक तनाव से छुटकारा तो देता है बल्कि यह भीतर के दुख को भी शीघ्र समाप्त कर देता है | ध्यान लगाने के लिए नाम जाप कीर्तन या मंत्र जाप भी करना उत्तम है |
और दुख से मुक्त हो जाएंगे !