नामजप का विज्ञान: भगवान नाम जाप से कीर्तन से क्या होता है 

Vaishnava

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mantra jaap se kya hota hai
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नाम या मंत्र जप का विज्ञान | भगवान नाम जाप से कीर्तन से क्या होता है

भगवान नाम जप या मंत्र जाप की शक्ति की पहचान केवल उन्हें है जिनकी बुद्धि इस दुनिया के झूठे तर्कों के बंधनों से परे जाकर विचार करती है | आम लोग जो हजार बातें सुनते है, हजार तरीके के प्रयोग करते है लेकिन नाम जप साधना को अव्यवहारिक रूप से देखते है क्योंकि उनकी की सीमा ही व्यवहारिक है |

अगर आप ‘अहम’ को या अपने ‘मानव जीवन’ को नाम या मंत्र से बड़ा और अधिक महत्व पूर्ण मान लेंगे तो नाम जाप से कोई सिद्धि नहीं हो सकती! ये सिर्फ समय का नुकसान है | लेकिन यही नाम जपकर ही भगवान के परमधाम को प्राप्त हुआ जा सकता है |

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अगर आप सोच रहें है की भगवान का नाम जपना समय की बर्बादी कैसे हो सकती है? और या अगर अपने ये मान भी लिया तो फिर भगवान के परमधाम को कोई भक्त नाम जपकर कैसे प्राप्त हो सकता है?

नाम जप दो तरह के होते है एक असली नाम जप और दूसरा नकली नाम जप | सिद्धि प्राप्त करने के लिए असली नाम जप चल जाता है | लेकिन नकली से कोई सिद्धि नहीं प्राप्त होती | असल में नाम जप का स्वरूप असली या नकली नहीं होता बल्कि इसे जपने वाले भक्त का भाव महत्वपूर्ण है |

भगवान नाम जप से भगवान के परमधाम को कैसे प्राप्त हुआ जा सकता है इस पर चर्चा करेंगे |

हमारा साधारण मानव जीवन केवल दुख से भरा है जब दुख का आभाव होता है तब उसे सुख कहते है लेकिन वह केवल दुख का आभाव है, वास्तविक सुख तो शाश्वत है |

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भगवान नाम जप से मन को बहुत ही शीघ्र एकाग्र किया जा सकता है | लेकिन यह भी साधक के भाव के कारण ही होता है | मान लीजिए कोई साधक नाम जप कर रहा है | नाम जप करते हुए पूरा ध्यान बाहर है कोन क्या बोल रहा क्या हो रहा उसे सब पता उसका ध्यान नाम नहीं; कहीं और ही है | और कोई कोई तो ऐसे भी लोग है जो टीवी पर मनोरंजन देखते हुए नाम जप करते है | ये मूर्खता नहीं तो क्या है?

नाम जप आपको मन पर नियंत्रण पाने के लिए एक साधन है | मन पर नियंत्रण पाकर ही साधक मोक्ष प्राप्त कर सकता है | नाम जप करने से मन नाम पर एकाग्र हो जाता है जिसकर बाहरी विषयों और वासनाओं से उसकी पकड़ छुटने लगती है | अन्यथा बाहरी सब माया है अच्छा-बुरा, सच्चा-झूठा, मान-अपमान, तुम, वह, वो, मैं और जो इन दोनों को भी ढक देता है यानी आलस, निद्रा|

परमात्मा उनमें कहीं नहीं मिलेंगे | परमात्मा तो भीतर ही प्राप्त होते है | मोह, माया, अज्ञान और परमात्मा दोनों को एक साथ नहीं पाया जा सकता | जैसे सूर्य उदय से अंधकार नष्ट होगा है वैसे ही ज्ञान यानी परमात्मा के साक्षात्कार से माया (अज्ञान) नष्ट हो जाता है |

मन पर नियंत्रण पाने के कई लाभ होते है इससे व्यक्ति स्वयं को भीतर से पहचानने लगता है कुछ ही दिन तक निरंतर नाम जप ध्यान किया जाएं तो जीवन मे सकारात्मक ऊर्जा और भीतरी शक्ति का संचार होने लगता है |

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परंतु नाम जप से सर्वोत्तम साध्य है स्वयं को सच्चा स्वरूप यानी ब्रह्म स्वरूप; मुक्त स्वरूप | वह नाम जप कीर्तन की सिद्धि है |

बाहरी दुनिया के विषय आपका सुख शक्ति आपसे छीन लेते है | लेकिन नाम जप से इन्हे वापिस पाया जा सकता है |

 

नाम जप करने का सही तरीका

नाम जप करते हुए मन को नाम पर या भगवान पर एकाग्र करना चाहिए, और निष्काम भाव से, श्रद्धा और भक्ति भाव नाम जप करना चाहिए, तभी नाम जप सफल हो सकता है | अगर एक और नाम ले रहे है और सब ध्यान बाहर है, नाम जप के उद्देश लौकिक या कोई परलौकिक स्वार्थ तो यह मन की एकाग्रता नहीं है | तो ये व्यर्थ ही हो सकता है|

नाम जप बोलकर करें या मन में करें कोई तरीका गलत नही है | लेकिन श्रद्धा भाव और आत्मसमर्पण आवश्यक है नहीं तो बस केवल नाम है | इसलिए नाम जप कीर्तन ही किसी को भवसागर से पार करा देता है और किसी के लिए यह केवल समय और ऊर्जा की बर्बादी है |

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इसीलिए नाम जप करने का सही तरीका अगर जानें तो सभी तरीके सही हो सकते है या कोई भी तरीका काम नहीं करेगा |

ऐसे कई संत हुए है जिन्होंने निरंतर भगवान नाम जप से भगवान को प्राप्त कर लिया उनकी भाव सच्चा था संत मीराबाई ने भगवान कृष्ण की भक्ति कर भजन, कीर्तन से जीवन को सार्थक कर लिया | चैतन्य महाप्रभु भगवान की भक्ति में हरे कृष्ण नाम जप कर इतने लीन हो जाते की अपनी सुध बुध को बैठते अचेतन ही गिर जाते और परमधाम में विश्राम कर पुनः नाम जप की महिमा का लोगों को दर्शन करवाते | उनकी श्रद्धा हार्दिक थी |

भगवान आपके तामझाम के नहीं भाव के भूखे है|

नाम जप कीर्तन में स्वयं को मिटा देना होंगा यानी ही अहम को नाम में ही लीन करना होंगा तब शरीर के रोम रोम से वह नाम बाहर आने लगेगा | माया जगत की बंधन टूट जायेंगे उस परमधाम का साक्षात्कार होंगा | जो सभी भूतों में स्थित है और सब भूत उसमे स्थित है वह स्वयं दिव्य-प्रकाश, दिव्य-आनंद, चैतन्य परब्रह्म है | वह अचिन्य है |

भगवान कृष्ण कहते है जो भक्त भक्ति भाव आत्मसमर्पण से निरंतर उनकी भक्ति में लीन रहते है वे उनके समीप होते है | वे भक्त जन्म-मरण के शोक से मुक्त होकर परमब्रह्म परमधाम को प्राप्त हो जाते है |

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भगवान के किस नाम का जाप करना चाहिए?

आप भगवान के किस नाम का जाप करते है ये पूरी तरह आप पर निर्भर करता है | हमारे सनातन धर्म में कई देवी देवता है कई अवतार है | आपकी परमात्मा के किस स्वरूप में श्रद्धा है इसके अनुसार आप नाम जप कीर्तन शुरू कर सकते है |

भगवान विष्णु के भक्त विष्णु मंत्र का जाप करते भगवान कृष्ण के भक्त “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण हरे हरे ” इस महामंत्र का जाप करते है या राधा नाम का जाप करते है राधा और कृष्ण अभिन्न है | वहीं राम में भक्त राम नाम का जाप कर स्मरण करते है |

आप कोई भी नाम जप कर सकते है लेकिन यह बात ध्यान रखनी जरूरी है की हमेशा एक ही नाम का जाप करते ऐसा नहीं की अभी कुछ और जाप कर रहें है और थोड़ी देर बाद कुछ और जाप करने लग गए | जाप करते हुए मन आपको भटका सकता है; एक नाम छोड़ दूसरे नाम में ले जा सकता है लेकिन ध्यान रहे आप मन को निर्मल और नियंत्रित कर ही मंत्र या नाम को सिद्ध कर सकते है|

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