बालकृष्ण और कालियनाग की कथा | भगवान कृष्ण की लीला

Vaishnava

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Krishna aur Kaliya naag ki katha
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व्रज वासियों पर विषैला संकट…

मधुर और नटखट लीलाओं के कारण भगवान कृष्ण लीला पुरषोत्तम भगवान कहें जाते है | जब द्वापरयुग में भगवान कृष्ण देवकी और वसुदेव के पुत्र रूप में प्रकट हुए तब कंस के कारण संकट के घने बादल कृष्ण पर मंडरा रहें थे | कंस से शिशु को सुरक्षित रखने के लिए वसुदेव ने उन्हें नंद यशोदा को सौंप दिया |लेकिन जब कंस को कृष्ण के स्थान की सूचना मिली तो कंस ने कई मायावी राक्षसों को कृष्ण के वध के लिए भेजा | उन राक्षसों के कारण कई बार भगवान और उनके गांव ‘गोकुल’ पर संकट आया | परंतु सर्वशक्तिमान भगवान ने उन राक्षसों का वध कर गोकुलवासियों को हर बार संकटमुक्त किया |

एक बार एक प्रचंड और भयंकर विषैले सर्प के कारण गोकुल के वासी, गाय, बछड़े और अन्य जंगली पशु- पक्षियों के प्राण संकट में थे | उस सर्प का विष इतना जबरदस्त घटक था की यमुना किनारे के पेड़ पौधे घास भी प्राणहीन हो गई थी |
जब भगवान कृष्ण छह वर्ष की आयु के थे तब यमुना को एक विषैले सर्प ने अपना घर कर लिया उस सर्प का नाम था ‘कालीयनाग’ यह सर्प कंस का भेजा हुआ नहीं था परंतु फिर भी इससे कारण गोकुलवासी संकट में पड़ गए |

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जेठ-आषाढ़ की चिलचिलाती गर्मी से ग्वालबाल, गायों बछड़ों का गला सुखा जा रहा था | वे बहुत ही जल्दी यमुना किनारे पहुंचे और यमुना का जल पी लिया | वे इस बात से अनजान थे जिसे उन्होंने जल समझ कर पिया है वह भयंकर विष है | यमुना में रहकर कालीयनाग ने पूरी यमुना नदी को ही विष की नदी बना दिया था |

जब भगवान कृष्ण सभी के आखिर में अपनी सुरली बांसुरी बजाते हुएं वहां पहुंचे तो देखा सभी ग्वाले, गायें और बछड़े मृत की तरह यमुना के किनारे ही गिर पड़े थे |
भगवान कृष्ण ने अपनी अमृत बरसाने वाली दृष्टि से उन्हें देखा तो सभी ग्वाले, गायेँ और बछड़े उठ खड़े हुए, और आचार्यचकित होकर एक दूसरे की और देखने लगें |

कालियनाग का विष प्रचंड भयंकर था | यमुना नदी के पानी में उस विष के कारण लाल-पीली लहरें उठती थी | अगर पक्षी भी यमुना के ऊपर से उड़कर यमुना को पार करने जाते तो विष के प्रभाव से यमुना में ही गिर जाते | यमुना किनारे के वृक्ष, पौधे और घास सब मुरझा चुके थे | उस ओर से बहने वालीं हवा भी विषैली हो गईं थी, बादलों की और उड़ने वालें पक्षी भी जमीन पर पड़े दिखाई दे रहें थे |

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बाल कृष्ण यमुना में कूद पड़े कालियनाग से युद्ध करने…

भगवान कृष्ण ने देखा की कालियनाग के कारण उनके और गायों, ग्वालों के विहार का स्थान यमुना विषैली हो गईं है; त्राहि-त्राहि मच गई है | तब उन्होंने अपने कमर का फेटा कसा, कदंब के पेड़ पर चढ़ गए और ताल ठोककर कूद गए यमुना नदी में |

जब कालियानाग ने देखा की कोई एक बालक सावला-सलौना, मेघवर्ण के समान शरीर वाला, पीले वस्त्र धारण किए, मुख पर मन्द-मन्द मुस्कान,
और वह उसके निवासस्थान में निर्भयता पूर्वक मौज से घूम रहा है | तो कालीयनाग को सहन नहीं हुआ और क्रोधपूर्वक उसने कृष्ण को अपने नागपाश में बलपूर्वक जकड़ लिया |

यमुना किनारे खड़े ग्वालों ने यह देखा तो भय और शोक से वे फिर से अचेतन होकर जमीन पर गिर पड़े | गाय और बछड़े खड़े-खड़े ही स्तब्ध हो गए; उनके शरीर बिलकुल भी हिलडुल नहीं रहे थे |

जब गोकुल में कृष्ण के माता-पिता नंद और यशोदा को और अन्य गाववासियों को सूचना मिली तो वे बहुत ही भयभीत हो गए, दुखी हो गए वे अत्यंत दीन की तरह यमुना के तरफ भागने लगें |

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यशोदा और नंद बाबा कृष्ण पर अपने प्राण न्यौछावर करने से भी पीछे नहीं हटने वालें थे | इसलिए वे भी नदी में कूदने निकल पड़े परंतु बाकी गोपियों ने यशोदा को और बलाराम ने नंद बाबा को बलपूर्वक पकड़ लिया और नदी में कूदने से रोका |

अद्भुत तांडव नृत्य कर कालियनाग को किया परास्त…

भगवान कृष्ण ने देखा की माता पिता और अन्य बहुत दुखी है तो उन्होंने अपने शरीर को फूला दिया जिससे नाग का शरीर टूटने लगा , और नाग की पकड़ छूट गई |

बालक कृष्ण की यह चेष्टा देखकर कालियनाग का क्रोध और ज्यादा बढ़ गया | उसकी आंखों रक्त की तरह लाल और विष को ज्वाला उगल रही थी | उसने फनो से कृष्ण पर चोट करने को हमला किया किंतु कृष्ण फुर्ती से बच गए उसने बारंबार अपने अनेकाअनेक फनों से कृष्ण पर हमारा किया, लेकिन उसका एक भी दाव सफल नहीं हुआ | आखिर वह थक कर थोड़ा रुका तो भगवान कृष्ण उसके फन पर ही चढ़ गए |

कालिया नाग के अनेकाअनेक मस्तकों पर लाल-लाल मणियां थी जिससे भगवान कृष्ण के चरणों की लालिमा और भी बढ़ गई | नृत्य-गान समस्त कलाओं के आदिप्रवर्तक भगवान कृष्ण उसके फानों पर कलापूर्वक नृत्य करने लगे |

भगवान के भक्त देवता, गंधर्व, सिद्ध, चारण, और देवांगनाओं ने देखा की भगवान नृत्य कर रहें है | तब वे पड़े प्रेम से मृदंग, ढोल, नगाड़े बजाते हुए और सुंदर-सुंदर गीत गाते हुए पुष्पों की वर्षा करते हुएं और अनेक भेट लेकर वहां पहुंच गए |

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कालियनाग के एक सौ सिर थे | जब वह किसी सिर से भगवान कृष्ण पर काटकर चोट करने की चेष्टा करता तो भगवान उसके सिर को पैरों से कुचल देते | भगवान के नृत्य से कलियनाग की शक्ति क्षीण होने लगें उसके मुंह और नथुनों से रक्त निकलने लगा, और चक्कर काटते काटते कालिया अचेत हो गया | जैसे ही वह चेत होता तो अपनी आंखों से विशेला रक्त उगलने लगता और क्रोधपूर्वक फुफकार करता कृष्ण पर प्रहार करने की चेष्टा करता | लेकिन भगवान कृष्ण उस सिर को पैरों से कुचल कर दबा देते |

कालिया नाग की रक्त की बूंदे भगवान के पैरों पर पड़ रही थी तब ऐसा लगता की रक्त से भगवान के चरणों की पूजा की जा रही हों |

भगवान कृष्ण के इस अद्भुत तांडव नृत्य से कालियनाग का एक-एक सिर चूर हो गया उसकी शक्ति क्षीण हो गई | मुख और नथुनों से रक्त बहा जा रहा था | तब कालियनाग का घमंड चूर हुआ और उसे मन ही मन जगत के पालनहार भगवान नारायण स्मृति हुई |

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कालियनाग की पत्नियों व्दारा बालकृष्ण की लीला का गुणगान और कालियनाग को क्षमा की प्रार्थना…

कालियनाग की पत्नियां स्वभाव से साध्वी थी | वे अपने नाग पुत्रों के साथ अत्यंत दीन की तरह भगवान कृष्ण के शरण में गई और बोली

कालिया नाग को पत्नियां ने कहा – भगवान! आप पापियों को सजा देने के लिए ही अवतरित हुए है | हमारे पति सजा देना ही अच्छा होंगा | आपके लिए पुत्र और शत्रु भी समान है, इसीलिए आप किसीको दंड देते है तो वह उसके पापों का प्रायश्चित और उसका कल्याण के लिए ही होता हैं |

यह सर्प आपकी कृपा का प्रसाद ही है | आप जिसे दंड देते है उसके तो सभी पाप नष्ट हो जाते है यह सर्प अवश्य ही अपराधी है नहीं तो इसको सर्प को योनि ही क्यों मिलती | हम आपके क्रोध को भी हमपर आपकी कृपा ही समझते है |
हम यह नहीं जानते की इस सर्प को किस साधन का फल मिला है की यह आपके चरण कमलों के स्पर्श का अधिकारी हुआ | इसने सभी जीवों पर दया करते हुएं कोई बहुत बड़ा धर्म ही किया होंगा! इसलिए सर्वजीव स्वरूप आप इसपर प्रसन्न हुए |

बाद में कालिया नाग की पत्नियों ने भगवान की स्तुति की जिससे भगवान कृष्ण अत्यंत प्रसन्न हुए | कालियनाग की पत्नियों ने सर्प को क्षमा की प्रार्थना की | कृष्ण ने कालीयनाग के मस्तकों को भार से मुक्त किया जिससे वह अचेतन से चेतन होने लगा |

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कालियानाग और पत्नियों ने की भगवान की पूजा और भगवान के चरण चिन्हों की छाप लेकर कालियनाग लौटा सर्पों के निवास स्थान रमनक द्वीप…

भगवान कृष्ण ने कहा – सर्प ! अब तुम्हें यहां नहीं रहना चाहिए तुम अपनी भाइयों पुत्रों और पत्नियों के साथ वापस समुद्र में लौट जाओ | ताकि ये ग्वाल, पशु, पक्षी जीवित रहने के लिए यमुना का जल पी सके | मैं जानता हूं की गरुड़ के भय से तुम अपना रमनद्वीप छोड़कर यहां आ बसे हो लेकिन अब तुम्हें गरुड़ से कोई संकट नहीं होंगा क्योंकि मेरे चरणों के चिन्ह तुमरे मस्तकों पर तुम्हारे साथ जाएंगे |

बाद में कालियनाग, उसके पुत्र और पत्नियों ने पुष्पमाला, मणि, आभूषण, चंदन, कमलों की माला और परिक्रमा और वंदना के सह भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की | और समुद्र में रमनक द्वीप लौट गाएं | भगवान की इस लीला का बाद यमुना का जल विषहीन तो हुआ ही और उस समय अमृत के समान मधुर भी हो गया |

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