ध्यान में क्या सोचना चाहिए || ध्यान बीच की बाधा

Vaishnava

Updated on:

गहरे ध्यान में कैसे जाएं ? प्रभावशाली उपाय
Advertisement
5/5 - (1 vote)

जो लोग ध्यान की अवस्था नहीं जानते वे ध्यान में क्या सोचना चाहिए पूछते हैं। सबसे पहले तो हमे यह समझना है की ध्यान केवल वह नहीं है जिसे पूरी तैयारी से आसन लगाकर बैठ कर किया जाए। ध्यान एक प्राकृतिक घटना है जो दौड़ते, चलते, बैठते और लेटते भी घट सकती हैं। ध्यान कैसे करे यह जानने से पहले ध्यान क्या है इसे भी जानना आवश्यक हैं.

ध्यान क्या हैं.

अहंकार, कर्म और कर्म के फलों से एक दूरी निर्माण होने की अवस्था ही ध्यान हैं। इसे अच्छे से समझते हैं।

Advertisement

जीवन में जो इच्छाएं है वे कर्मों से जुड़ी हो सकती है या फलों की प्राप्ति से लेकिन इन इच्छाओं का त्याग करना और स्वयं से समस्त भौतिक कर्म और मानसिक विचार से मुक्त होना ध्यान हैं। यह अवस्था मन की होती है । और ध्यान में मन से ही मुक्त हुआ जाता हैं। तथा समाधि में जाकर सत्य में मिला जाता हैं।

ध्यान में क्या सोचना चाहिए || ध्यान बीच की बाधा 

ऐसा नहीं की ध्यान में कुछ सोचना नहीं, जब ध्यान की अवस्था प्राप्त होती है व्यक्ति निरंतर विचार ही करता है। ये विचार उनके जीवन से ही जुड़े होते है। इन विचारों को त्यागने के पश्चात ही ध्यान में गहरा उतरा जाता हैं।

लेकिन विचारो का त्याग कर पाना विचार करने जितना सरल नहीं है । विचारो का त्याग करने के लिए विचारो पर ही ध्यान देने की आवश्यकता हैं, लेकिन इन विचारों के प्रवाह में बहते नहीं चले जाना हैं।

जब ध्यान की ओर जाते है वही विचार आते है जो ध्यान से दूर ले जाते हैं और कर्म और फल से आसक्त कर देते हैं, यह काम मन करता है।

Advertisement

जब आप ध्यान करना चाहते हैं मन भी ध्यान करने की इच्छा करता हैं किंतु ध्यान शुरू होने पर मन को इस ध्यान की अवस्था को जनता है जहां कुछ भी नही जो वह प्राप्त कर सके और इसे ध्यान में इसे शून्य हो जाना है मन आपको लेकर ध्यान से दूर ले जाने का प्रयास करता हैं, अकसर इस अवस्था में डर लगता हैं, या विचारों पर नियंत्रण नहीं रहेता।

इस अवस्था में मन फस जाता हैं वो निरंतर वही प्रयास करता हैं जिनसे ध्यान भंग हो जाएं, अगर ऐसी स्थिति जिसमे विचार अनावश्यक लग रहे हैं यह अच्छा संकेत है यह समाधी में प्रवेश करने का द्वार हैं जो खुल चुका हैं। किंतु अहंकार, कर्म और आसक्ति प्रबल है तो ध्यान में जाकर मुक्त होने का द्वार भी बंद है जिसे मन ने बंद कर रखा हैं। 

मन से मुक्त कैसे हो सके 

विचार कोई भी हो वो ध्यान में होने वाली बाधा ही हैं, ध्यान तो विचारो से मुक्ति की ओर ले जाता हैं। ध्यान में विचारों से मुक्त होने का प्रयास भी करना ठीक नहीं है अगर आप इनसे मुक्त होने का प्रयास करेंगे तो इस प्रवाह में ही गिर कर बहते चले जायेंगे । ध्यान में जाने के लिए और विचारों से मुक्त होने के इन्हे मन से ही त्यागने का कर्म करना एक मूर्खता से कम नहीं हैं। क्योंकि कर्म (विचारों) को त्यागने समय भी कर्म बंधन और आसक्ति ही हो रही हैं

मन से मुक्त होने के लिए मन को साथ लेकर नही चलना हैं लेकिन मन को दूर करना हैं। इसे दूर करने के लिए मन को ही देखते हुए जाना है जो भी विचार आते हैं केवल इन्हे देखना हैं यही ध्यान का पथ है जो समाधि की और ले जाता है, इन विचारों प्रवाह में बह नहीं जाना हैं, बस इन्हे देखते रहने से आप स्वयं को विचारों से मुक्त कर पाते हैं और स्वयं को विचारों से विचार, कर्म , आसक्ति और मन भिन्न जानते हैं।

Advertisement

निष्कर्ष; 

ध्यान में कुछ अगर कुछ सोचा या विचार किया जा सकता है तो वह ध्यान नहीं हैं, वह मन हैं। विचारो से मुक्त होकर ध्यान की शुरवात करने के लिए विचारो को देखने की आवश्कता हैं, ये विचार कोई भी हो सकते है , विचार कौनसे है यह आवश्यक नही है। लेकिन इन विचारों के आगे के आगे या साथ नहीं चलना है।

अन्य पढ़े >>

Share This Article

– Advertisement –

[short-code2]
 PurityofLifeYOG Follow

Leave a comment

Exit mobile version